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कारगिल विजय दिवस: शहीदों को श्रद्धांजलि देने उमड़े लोग, बलिदानियों के शौर्य  को किया याद

कारगिल विजय दिवस यानी 26 जुलाई स्वतंत्र भारत के लिए एक खास दिन है। लगभग 60 दिनों तक चलने वाला कारगिल युद्ध 26 जुलाई को समाप्त हुआ और इसमें भारत की विजय हुई। इस दिन को कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों...

कारगिल विजय दिवस: शहीदों को श्रद्धांजलि देने उमड़े लोग, बलिदानियों के शौर्य  को किया याद
हिन्‍दुस्‍तान टीम ,गोरखपुर Sun, 26 Jul 2020 12:13 PM
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कारगिल विजय दिवस यानी 26 जुलाई स्वतंत्र भारत के लिए एक खास दिन है। लगभग 60 दिनों तक चलने वाला कारगिल युद्ध 26 जुलाई को समाप्त हुआ और इसमें भारत की विजय हुई। इस दिन को कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान के रूप में मनाया जाता है। देश के मान और सम्मान में गोरखपुर के सपूतों ने भी अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। हर गोरखपुर वासी अपने शहीद जवानों के बलिदान पर गर्व करता है।

मुफलिसी में मर गए कारगिल शहीद मार्कंडेय के माता-पिता
गोरखपुर के चौरीचौरा क्षेत्र के अवधपुर निवासी शिवपूजन मिश्र के पुत्र मार्कंडेय मिश्र गरीबी व मुफलिसी में पढ़े-लिखे। मेहनत की और सेना में भर्ती हो गए। वर्ष 1999 में वह कारगिल में ही तैनात थे। पाकिस्तानी सेना से युद्ध के दौरान वे शहीद हो गए। उनकी शहादत सभी की आंखें नम हो गईं लेकिन सीना गर्व से फूल गया। शासन-प्रशासन ने तमाम वायदे किए लेकिन कुछ ही महीने बाद सब कुछ भुला दिया। हालात यह हो गई कि शहीद के माता-पिता मुफलिसी में ही अंतिम सांसें लीं।

शहीद मार्कंडेय मिश्र के चचेरे भाई गिरिजाशंकर मिश्र ने शनिवार को ‘हिन्दुस्तान’ से बातचीत में कहा कि उनके चाचा शिवपूजन मिश्रा तरकुलहा देवी मंदिर पर पूजा-पाठ व सत्यनरायन भगवान की कथा कहकर परिवार को चलाते थे। खेती-बारी कम थी। उनके दो पुत्र थे। बड़े बेटे मार्कंडेय सेना में भर्ती हो गए थे। उनके छोटे बेटे योगेंद्र की 14 वर्ष की आयु में इंसेफेलाइटिस से मौत हो गई थी। मार्कंडेय ही बूढे़ माता-पिता के सहारा थे। कारगिल युद्ध में वे शहीद हुए तो परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया। शहीद की तीन बेटियां थीं। शहीद की पत्नी मंजू को जो कुछ सहायता मिली थी उसे और तीनों बेटियों को लेकर वह अपने मायके चली गईं। पत्नी सेना के अस्पताल में सरकारी नौकरी कर रही हैं और उन्हें पेंशन भी मिल रही है। 

गिरिजाशंकर ने बताया कि शहीद की पत्नी के मायके चले जाने से परिवार पूरी बिखर गया। परिवार मुफलिसी का शिकार हो गया। वर्ष 2006 में पिता शिवपूजन मिश्रा स्वर्ग सिधार गए। दो वर्ष बाद शहीद की बूढ़ी माता फूलमती देवी भी चल बसीं। ससुराल को छोड़कर अपने माता-पिता के पास रह रही बहन मीरा भी अर्द्धविक्षिप्त हो गई। वह इसी हाल में गांव में  होकर घूमती रहती थी। इसी वर्ष उसकी तबीयत खराब हुई। उंसका इलाज कराने के लिए वाराणसी ले जाया गया जहां उसकी मौत हो गई।अब उस घर में न तो कोई चूल्हा जलाने वाला है और न ही संझवत। 

शहीद के गांव अवधपुर का हाल
शहीद के गांव में अवधपुर में पिच सड़क बनी थी लेकिन वर्षों से मरम्मत न होने से वह जर्जर हो गई है। वर्तमान में पिच सड़क पर मिट्टी गिरवा दी गई है जिससे स्थिति और बदतर हो गई है। गांव में प्राथमिक विद्यालय है लेकिन उसका लेबल नीचे है। अधिक बारिश व फरेन नाले के उफान में स्कूल पानी से घिर जाता है। जलनिकासी के लिए नाली की व्यवस्था है लेकिन वह भी टूट गई है। लोगों के घरों का पानी सड़क पर बहता है। इससे चारों ओर गंदगी फैली हुई है। शहीद के चचेरे भाई गिरिजाशंकर मिश्रा का कहना है कि शहीद के नाम पर गांव में कोई विकास नहीं कराया गया। गांव में सुविधा के नाम पर सिर्फ पिच सड़क बनी है। वह भी टूट गई है।

आश्वासनों तक ही सिमट कर रह गया संतोष का सम्मान
गोरखपुर के हरदिया गांव निवासी देवशरण पांडेय के पुत्र संतोष पांडेय कारगिल में तैनात थे। आधी रात को सीआरपीएफ का यह जवान ड्यूटी पर तैनात था कि दुश्मन की फौज ने हमला कर दिया। संतोष ने दुश्मन की फौज को ललकारा और उन पर ताबड़तोड़ गोलियां दागनी शुरू कर दीं। 

दुश्मन के कई सैनिकों को संतोष ने मार गिराया। उसका शरीर गोलियों से छलनी हो गया लेकिन वह मरते दम तक दुश्मनों से लोहा लेता रहा। कारगिल के इस शहीद पर न केवल हरदिया बल्कि पूरा गोरखपुर गर्व करता है। गोरखपुर-वाराणसी फोरलेन पर स्थित कसिहार तिराहे पर शहीद की प्रतिमा स्थापित की गई है। आते-जाते लोग जब अपने इस वीर सपूत की प्रतिमा को देखते हैं तो उनका सीना गर्व से फूल जाता है। हाथ बरबस ही सलाम करने को उठ जाते हैं। 

14 अप्रैल 1978 को हरदिया में जन्मे संतोष पांडेय स्नातक करने के बाद 1993 में सीआरपीएफ में भर्ती हो गए। महज 22 वर्ष की उम्र में ही वह डलगेट की कारगिल सीमा पर दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए। संतोष पांडेय के पिता देव शरण पांडेय ने शनिवार को ‘हिन्दुस्तान’ से बातचीत में कहा कि अगर उनके पास दो-चार बेटे और होते तो वह उन्हें भी भारत माता की सेवा में अर्पित कर देते। शहीद के पिता देव शरण पांडेय खुद 35 साल सीआरपीएफ में सेवा करने के बाद वर्ष 2000 में उप निरीक्षक पद से रिटायर हुए हैं। उन्होंने कहा कि उनके साथ-साथ क्षेत्र व देश के सभी लोगों का मेरे बेटे ने मान और सम्मान बढ़ाया है। मुझे अपने बेटे पर गर्व है। शहीद की शहादत के बाद उनके सम्मान में शासन-प्रशासन ने कई घोषणाएं की थी लेकिन ज्यादातर हवा-हवाई ही साबित हुईं। 

यह मिला था आश्वासन 
संतोष पांडेय के परिवारीजनों का कहा है कि बेटे की शहादत के बाद पिता देव शरण पांडेय को गैस एजेंसी अथवा पेट्रोल पम्प, शहीद के नाम पर पार्क, गांव के विद्यालय को शहीद के नाम दर्ज करने, परिवार के एक सदस्य को नौकरी, शहीद के घर से मुख्य मार्ग तक संपर्क मार्ग बनाने तथा गांव का नाम शहीद के नाम पर दर्ज किए जाने जैसी अनेक घोषणाएं की गईं लेकिन वह धरातल पर नहीं उतरीं।

कसिहार तिराहे पर स्थापित है प्रतिमा
कसिहार चौराहे पर शहीद की प्रतिमा स्थापित की गई है। गांव के प्राथमिक विद्यालय की दीवारों पर शहीद संतोष पांडेय का नाम अंकित कर दिया गया है किंतु अभिलेखों में आज तक शहीद का नाम दर्ज नहीं हो सका है। शहीद के नाम पर बड़े प्रयासों के बाद विद्यालय के बगल में एक छोटे से पार्क का निर्माण किया गया था। ग्रामीणों का कहना है कि इस समय वहां सार्वजनिक सुलभ शौचालय बनवाने की कवायद चल रही है। 

शहीद के गांव हरदिया का हाल
मुख्य मार्ग से शहीद के घर तक जाने के लिए संपर्क मार्ग आज तक नहीं बन पाया है। शहीद के गांव में जल निकासी के लिए नाली की भी व्यवस्था नहीं है। उनके छोटे भाई ने कसिहार चौराहे पर छोटी सी दुकान खोल रखी है। परिवार के भरण-पोषण का जरिया है। बेटे की शहादत के बाद पिता देव शरण पांडेय अपनी पत्नी के साथ मुश्किलों भरा दिन बिता रहे हैं। उनका कहना है कि यदि सरकार द्वारा की गई घोषणाओं में से शहीद के भाई अथवा पत्नी को नौकरी या परिवार के किसी सदस्य को गैस या पेट्रोल पंप का लाइसेंस दे दिया गया होता तो भी कुछ सम्मान रह जाता। 

पिता ने की कारगिल लड़ाई में दुश्मनों के दांत खट्टे किए अब पुत्र दे रहा सेवा
कारगिल युद्ध में सहजनवा निवासी और 158 मीडियम रेजिमेंट के नायब सूबेदार राजेश सिंह ने वीरता से लड़ते हुए दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। राजेश सिंह द्वारा बताया गया कि उनके द्वारा पाकिस्तानी सेना को द्रास सेक्टर से पीछे खदेड़ते हुए पाक सेना का भारी नुकसान पहुंचाया गया था।

नायब सूबेदार राजेश सिंह का परिवार अब सहजनवा स्थित केशवपुर गांव में रहता है। 1960 मे जन्मे राजेश सिंह 12 मई 1981 में 158 मीडियम रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए उन्हें भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय और ऑपरेशन रक्षक के तहत जम्मू कश्मीर के द्रास सेक्टर में तैनात किया गया। वहां 10 दिन के भीतर पाकिस्तानी घुसपैठियों से मीडियम रेजिमेंट की तीन मुठभेड़ें हुईं। उनके रेजिमेंट ने पाकिस्तानी फौज को सबक सिखाया। राजेश सिंह ने बताया कि इसके लिए उन्हें सेना के कई मेडल से नवाजा गया। एक जुलाई 2007 को वह सेवानिवृत्त हो गए।

पति की बहादुरी से प्रेरित पत्नी प्रेमलता सिंह ने अपना पूरा ध्यान बच्चों की परवरिश पर लगाया। नायब सूबेदार राजेश सिंह का सपना था कि उनके बेटे भी फौज में भर्ती हो जाए। प्रेमलता  ने भी अपने बेटे को फौज में शामिल करने का मकसद बनाया। पिता के देश प्रेम की भावना को देखते हुए नायब सूबेदार राजेश सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह ने फौज में जाने का निर्णय लिया। अभिषेक सिंह पठानकोट स्थित 172 मीडियम रेजिमेंट में रहकर देश सेवा कर रहे हैं। 

पिता के संघर्षों को बेटे के अंदर आया जज्बा
नायक अभिषेक सिंह द्वारा बताया गया की कारगिल युद्ध के समय पिता के संघर्षों को देखकर ही उन्होंने बचपन को गुजारा। जैसे-जैसे समय बीतता गया, मेरे अंदर देश सेवा की भावना और प्रबल होते गई, पिता के कार्यों को आदर्श मानकर मुझे देश के प्रति फौज में रह कर सेवा देने का अवसर प्राप्त हुआ। उन आदर्शों का निर्वहन पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ आगे भी करता रहूंगा।

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