ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News उत्तर प्रदेश गोरखपुरओडिशा में खासी लोकप्रिय हैं प्रो. विश्वनाथ तिवारी की कविताएं

ओडिशा में खासी लोकप्रिय हैं प्रो. विश्वनाथ तिवारी की कविताएं

साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की कविताएं ओडिशा में भी खासी लोकप्रिय हैं। यही वजह है कि उनके काव्य संकलनों के सर्वाधिक चार अनुवाद इस भाषा में प्रकाशित हुए हैं। ओडिशा के...

ओडिशा में खासी लोकप्रिय हैं प्रो. विश्वनाथ तिवारी की कविताएं
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरFri, 20 Dec 2019 02:01 AM
ऐप पर पढ़ें

साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की कविताएं ओडिशा में भी खासी लोकप्रिय हैं। यही वजह है कि उनके काव्य संकलनों के सर्वाधिक चार अनुवाद इस भाषा में प्रकाशित हुए हैं। ओडिशा के मशहूर कवि गंगाधर मेहर के नाम से दिया जाने वाला यह सम्मान देश प्रो. तिवारी को 8 जनवरी को दिया जाएगा। यह सम्मान हर साल गंगाधर मेहर के नाम से स्थापित संभलपुर विवि के स्थापना दिवस पर दिया जाता है।

साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. तिवारी के अब तक छह काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। पहला संग्रह ‘चीजों को देखकर 1970 में आया। ‘साथ चलते हुए 1976, ‘बेहतर दुनिया के लिए 1985, ‘आखर अनंत 1991, ‘फिर भी कुछ रह जाएगा 2008 तथा ‘सबने कुछ दिया अक्तूबर 2019 में लोकार्पित हुआ है। इन कविता संग्रहों के 16 भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। अंग्रेजी व रसियन जैसी विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। उड़िया में चार, मराठी व पंजाबी में दो-दो तथा गुजराती, तमिल, मलयाली, तेलगू, कन्नड़, असमी व राजस्थानी आदि में एक-एक अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। प्रो. तिवारी की काव्य रचानाओं पर बांबे विवि, बिहार विवि मुजफ्फरपुर, हिमांचल प्रदेश विवि शिमला, उत्कल विवि भुवनेश्वर, बीएचयू और दक्षिण भारत के कई विश्विवद्यालयों में शोध हुए हैं।

मिल चुका है ‘महत्तर सम्मान

प्रो. तिवारी को साहित्य का सबसे बड़ा महत्तर सम्मान मिल चुका है। हाल ही में उनकी आत्मकथा को मूर्तिदेवी सम्मान मिला। अब उनकी कविताओं को देश का सबसे बड़ा सम्मान मिलने जा रहा है। प्रो. तिवारी ने हर विधा में कविताएं लिखी हैं। उनकी कविताओं पर कई विद्वानों ने एक दर्जन से अधिक किताबें लिखी हैं।

देश भर में चर्चित हुई थी ‘दाना माझी कविता

देश के एक बड़े अस्पताल में ओडिशा के एक जनजाति समुदाय के दाना माझी की पत्नी की मौत हो गई थी। एंबुलेंस न मिल पाने के कारण दाना माझी को पत्नी की लाश कंधे पर ही लेकर जाना पड़ा था। जिस समय यह घटना सुर्खियों में आई थी, प्रो. तिवारी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष थे और गोरखपुर स्थित घर पर ही थे। अखबार उनके सामने आया तो लिखने को कलम निकाला, मगर दिल्ली जाने का समय हो गया था इसलिए नहीं लिख सके।

एयरपोर्ट पर जब जहाज में पहुंचे तो अंग्रेजी अखबार के पहले पेज पर भी दाना माझी की फोटो छपी दिखी। यहां से लिखना शुरू हुआ और साहित्य अकादमी के कार्यालय पहुंचने के बाद भी लगातार लिखने का क्रम जारी रहा। एक ही दिन में जब कविता पूरी हुई तब जाकर दूसरे काम किए। अगले दिन कुछ और संशोधन के बाद कविता प्रकाशन के लिए दे दी। यह कविता देशभर में चर्चित हुई थी।

1954 में स्कूल की पत्रिका में छपी थी पहली कविता : प्रो. तिवारी

प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने ‘हिन्दुस्तान को बताया कि पहली दो कविताएं 1954-55 में लिखी थीं। तब वह इंटरमीडिएट के विद्यार्थी थे। दोनों कविताएं स्कूल की पत्रिका में छपी थीं। उन्होंने कहा कि, कविताएं बेहद कच्ची थीं इसलिए उन्हें संग्रह में शामिल नहीं कर सका। यात्रा जारी है। यह जीवन पर्यंत चलेगा। प्रो. तिवारी ने बताया कि गंगाधर अवार्ड की जानकारी संभलपुर विवि के कुलपति प्रो. दीपक कुमार बेहरा ने फोन पर दी। सम्मान या पुरस्कार मिलने पर खुशी तो होती है मगर यह हर वक्त बड़ी जिम्मेदारी का भी एहसास कराते हैं। लिखने, पढ़ने और बोलने आदि के समय इन जिम्मेदारियों का बोध होता रहता है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें