ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News उत्तर प्रदेश गोरखपुरभारतीय समाज में पोटेंशियल बम की तरह हैं मी टू और सबरीमाला: प्रो. डीआर साहू

भारतीय समाज में पोटेंशियल बम की तरह हैं मी टू और सबरीमाला: प्रो. डीआर साहू

पश्चिम से भारत में आया मीटू भविष्य में आम जनता के लिए आंदोलन का रुप ले पाएगा या नहीं, इसका निर्धारण भविष्य करेगा। मगर यह सच है कि यह भारतीय समाज में एक पोटेंशियल बम की तरह है, जो लंबे समय बाद फूट जाए...

भारतीय समाज में पोटेंशियल बम की तरह हैं मी टू और सबरीमाला:  प्रो. डीआर साहू
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरWed, 17 Oct 2018 07:38 PM
ऐप पर पढ़ें

पश्चिम से भारत में आया मीटू भविष्य में आम जनता के लिए आंदोलन का रुप ले पाएगा या नहीं, इसका निर्धारण भविष्य करेगा। मगर यह सच है कि यह भारतीय समाज में एक पोटेंशियल बम की तरह है, जो लंबे समय बाद फूट जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। कमोबेस सबरीमाला केस भी इसी तरह का है।

भारतीय समाज शास्त्र परिषद के महासचिव प्रो. डीआर साहू ने यह बातें हिन्दुस्तान से बातचीत में कहीं। उन्होंने कहा कि दबी कुचली इच्छाएं हमेशा से इंसानी दिमाग में उथल पुथल मचाती रही हैं। मीटू के जरिए महिलाओं को अतीत की ऐसी आपबीती, जिसे वह किसी न किसी भय के कारण सामने नहीं ला पा रही थी, को नए सिरे से कहने का एक मंच मिल गया है। यह चिनगारी है, जो उनके मन में लंबे समय से धधक रही थी। चिनगारी निकली है तो कहीं न कहीं आग भी लगाएगी। यह उस रिक्तता की भी परिणति है, जो हमारे में समाज में लंबे समय थी। समाज विज्ञान इसे बदलाव के रूप में देख रहे हैं।

सबरीमाला पर निर्णय व धारा-377 की समाप्ति के रूप में सुप्रीम कोर्ट ने दो ऐसे महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, जो यह स्पष्ट करते हैं कि समाज की दबी कुचली इच्छाओं को यदि लोकतांत्रिक संस्थाएं मंजूरी नहीं देती हैं तो न्यायिक व्यवस्था समाज की मंशानुसार अगुवाई के लिए तैयार है। यह समाज में संरचनागत बदलाव है। दरअसल लंबे समय से दबी कुचली इच्छाएं जब प्रबल हो जाती हैं तो उन्हें आवाज देना अनिवार्य हो जाता है। सदियों से समाज की जिन इच्छाओं को किसी ने तवज्जो नहीं दी, न्याय व्यवस्था ने उसे न केवल महसूस किया वरन सकारात्मक फैसले भी दिए।

समाज की खाई पाटने को जरूरी है एससी एसटी एक्ट

प्रो. डीआर साहू ने एक सवाल के जवाब में कहा कि एससी एसटी एक्ट पर आया फैसला स्वागत योग्य है। इसके पीछे मंशा समाज की खाई को पाटना था मगर अब भी वह खाई काफी गहरी है। इसलिए इसे जारी रखने का निर्णय अपरिहार्य था। यह सही है कि इसके दुरुपयोग की संभावना अब भी पहले की ही तरह बनी हुई है। देश के पॉलिसी मेकर्स को इस पर गंभीरता से मंथन करना होगा और इसकी नीति तय करनी होगी कि इसके दुरुपयोग न हों। यह काम सरकार है और उम्मीद है कि एक जिम्मेदार सरकार यह काम जरूर करेगी।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें