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‘सिस्टम’ से अब भी लड़ रहा है प्रेमचंद का घर

58 वर्षों की छोटी सी जिंदगी में प्रेमचंद ने जो कुछ रचा वो सदियों तक दुनिया को मनुष्यता के करीब रखेगा। लमही की तरह गोरखपुर को गर्व है प्रेमचंद की विरासत पर। इस शहर ने प्रेमचंद को रचने में अपनी भूमिका...

‘सिस्टम’ से अब भी लड़ रहा है प्रेमचंद का घर
अजय कुमार सिंह  ,गोरखपुरTue, 31 Jul 2018 08:46 PM
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58 वर्षों की छोटी सी जिंदगी में प्रेमचंद ने जो कुछ रचा वो सदियों तक दुनिया को मनुष्यता के करीब रखेगा। लमही की तरह गोरखपुर को गर्व है प्रेमचंद की विरासत पर। इस शहर ने प्रेमचंद को रचने में अपनी भूमिका निभाई। लिहाजा, प्रेमचंद की कलम से निकले पात्र आज भी यहां की मिट्टी में रचे बसे हैं। उन पात्रों की तलाश दुनियाभर के कलमकारों को प्रेमचंद के घर आने को प्रेरित करती रहेगी। 


जीवन भर अन्याय और सामाजिक विषमता के खिलाफ लड़े कथा सम्राट प्रेमचंद का घर आज भी ‘सिस्टम’ से लड़ रहा है। यह इस घर की जिजीविषा ही है कि आजादी के पांच दशक बाद तक कबाड़ रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने के बावजूद आज भी विचारों की सुगन्ध फैला रहा है।

साहित्यकारों ने अपनी कोशिशों से लाइब्रेरी का स्वरूप दिया
रखरखाव के अभाव में दीवारों में आ गई सीलन, रिसकर कमरों में आ रहा पानी
1916 से 1921 तक इसी घर में रहकर कथा सम्राट ने कई कहानियों को दिया था जन्म 
1996 तक कबाड़ रखता था जीडीए, साहित्यकारों ने प्रेमचंद साहित्य संस्थान में बदला
तत्कालीन कमिश्नर हरिश्चन्द्र ने की थी मदद, तबसे लम्बी दूरी तय की है संस्थान ने
प्रेमचंद के विचारों से युवा पीढ़ी को रूबरू कराने के लिए लगातार कार्यक्रम कराता है संस्थान 

कलम को हथियार बनाने वालों के लिए यह किसी तीर्थ से कम नहीं। रसूख ऐसा कि हिन्दी का शायद ही कोई बड़ा साहित्यकार यहां न आया हो। लेकिन जिस घर की इतनी शोहरत हो उसके पहले ही कमरे में घुसकर आपको ‘सिस्टम’ की मार का अंदाज हो जाएगा। दीवारों से रिसकर फर्श पर फैलते पानी के बीच न के बराबर वेतन पर वर्षों से खुशी-खुशी सेवाएं दे रहे लाइब्रेरियन बैजनाथ आपको प्रेमचंद की कहानियों का कोई पात्र नज़र आएंगे। गनीमत है कि बैजनाथ यहां हैं।  22 साल पहले यदि आप यहां आते तो दुनिया भर में पूजे जाने वाले महान साहित्यकारों में से एक प्रेमचंद की इस रिहाईश पर ताला ही लटकता मिलता। फिर आप सुनते रह जाते कि रूस के लोगों ने लियो टॉल्सटॉय के घर को साहित्य का स्वर्ग बना दिया या विलियम शेक्सपियर, जॉन मिल्टन, थॉमस हार्डी, बेन जॉन्सन और माक्सिम गोर्की जैसे दुनिया के दूसरे महान साहित्यकारों की यादों को उनके अपने देशों ने कितनी खूबसूरती से संरक्षित रखा है। इन साहित्यकारों के समकक्ष या कुछ लोगों के लिए उनसे भी ज्यादा रहे प्रेमचंद का ये घर इस हालत में भी है  तो उसके पीछे गोरखपुर से जुड़े प्रो.परमानंद श्रीवास्तव, प्रो.सदानंद शाही, प्रो.रामचंन्द्र तिवारी, लालबहादुर वर्मा, प्रो.अनिल राय, कपिलदेव त्रिपाठी, राजेश मल्ल, शुभा राव और मदनमोहन जैसे बड़े साहित्यकारों का ही योगदान है। वर्ना  सिस्टम तो प्रेमचंद की इस विरासत पर पांच दशकों तक धूल चढ़ाता ही रहा था। 

वीर बहादुर सिंह ने 1989 में बनवाया पार्क 
प्रेमचंद इस घर में 1916 से 1921 तक रहे। लेकिन पहली बार इस पर सरकार का ध्यान तब गया जब वीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने इस घर के ईद-गिर्द की जगह को खूबसूरत पार्क की शक्ल दी। लेकिन 1990 में उनके असामयिक निधन के बाद पार्क जस का तस पड़ गया और घर पहले जैसे ही जीडीए का गोदाम बना रहा। 

डा.सदानंद ने शुरू की कोशिशें 
वीर बहादुर सिंह के निधन के कुछ समय बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय में विद्यार्थी से शिक्षक बनने की ओर अग्रसर युवा साहित्यकारों का एक गुट प्रेमचंद को अपना आदर्श मानने लगा था। बचपन में छात्र और जवानी में शिक्षक के रूप में प्रेमचंद ने गोरखपुर से गहरा रिश्ता बनाया। उर्दू के अलावा हिन्दी में लिखना यहीं शुरू किया। ईदगाह और सेवा सदन जैसे उपान्यास यहीं गढ़े और यहीं बाले मियां के मैदान में महात्मा गांधी का भाषण सुन देश सेवा के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी। प्रेमचंद से जुड़े ये सारे किस्से युवा साहित्यकारों की जुबां पर थे। गोरखपुर विवि हिन्दी विभाग के वरिष्ठ शिक्षक प्रो.अनिल राय बताते हैं, ‘डा.सदानंद शाही ने प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की। प्रो.परमानंद श्रीवास्तव इसके संस्थापक अध्यक्ष बने। इसके बाद प्रो.रामचंद्र तिवारी, नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, मैनेजर पांडेय, राजेश मल्ल, लालबहादुर वर्मा, नीलकांत सरीखे नाम जुड़ते चले गए। संयोग था कि 1996 में साहित्यप्रेमी हरिश्चन्द्र यहां कमिश्नर बनकर आए। साहित्यकारों की इस टोली ने उनके सामने प्रस्ताव रखा जिसे स्वीकार कर उन्होंने इस घर के आठ में पांच कमरे प्रेमचंद साहित्य संस्थान के नाम आवंटित कर दिए। संस्थान ने जनसहयोग से यहां लाइबे्ररी बना दी।’ बताते हैं कि उस वक्त लाइब्रेरी में करीब पांच हजार किताबें थीं। लाइब्रेरी आज भी चल रही है लेकिन बिना किसी सरकारी मदद के जैसी चल सकती है वैसी ही। 1996 के बाद प्रशासन ने प्रेमचंद पर थोड़ा ध्यान 2005 में तब दिया जब कवि और आईएएस डा.हरिओम गोरखपुर के डीएम बने। वह प्रेमचंद की 125 वीं जयंती का साल था। पार्क में ‘पंच परमेश्वर, कफन’ सरीखी प्रेमचंद की कहानियों पर आधारित भित्ति चित्रों को बनवाने के साथ एक अर्द्धविकसित ओपेन थियेटर उसी साल बना। 2005 के बाद से अब तक प्रशासन की ओर से कोई नया काम यहां नहीं हुआ है। सिवाए, प्रेमचंद जयंती के मौके पर रंग-रोगन कराने के। 

चंदा जुटाकर कराते हैं नाटक, कविता और कहानियों के पाठ 
प्रेमचंद साहित्य संस्थान की तारीफ यह है कि इसने बिना सरकारी मदद के नाटक, कविता, कहानियों के पाठ और राष्ट्रीय स्तर के सेमिनारों का सिलसिला जारी रखा है। यह सब आपसी सहयोग और चंदे के बल पर किया जाता है। त्रैमासिक पत्रिका ‘साखी’ और अनियतकालीन ‘कर्मभूमि’ का प्रकाशन भी संस्थान करता है। प्रेमचंद के मानवतावादी विचारों को फैलाने और युवा रचनाकारों/ कलाकारों को मंच देने के लिए पर्चे छपवाने और बंटवाने के अलावा जनसंस्कृति मंच, प्रगतिशील लेखक संघ, भारतीय जननाट्य मंच (इप्टा),  ‘अलख कला समूह’ और इन जैसे विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर लगातार कार्यक्रम करता रहता है।

संस्थान और इंटेक ने दे रखा है ये प्रस्ताव  
प्रेमचंद साहित्य संस्थान और इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटेक) ने दो साल पहले जीडीए को इस घर को ठीक कराने का प्रस्ताव दिया था। संस्थान के प्रस्ताव में घर में बंद पड़े जीडीए के कब्जे वाले कमरों को शहर में आने वाले साहित्यकारों के ठहरने की जगह बनाने, घर के आंगन में लाइट एंड साउंड शो कराने, लाइब्रेरी को समृद्ध बनाने और डिजिटल लाइब्रेरी स्थापित करने की बात थी। इंटेक के सह समन्वयक मुमताज खान के अनुसार घर के पुराने स्वरूप को कायम रखते हुए मरम्मत कराने और थोड़ा बहुत सौन्दर्यीकरण कराकर बेहतर स्वरूप देने का प्रस्ताव जीडीए को दिया गया था। लेकिन अभी तक यह बात प्रक्रियाओं में उलझी है। 

सेवा सदन की जयंती मनेगी
प्रेमचंद साहित्य संस्थान के निदेशक प्रो.सदानंद शाही ने बताया कि उन्होंंने प्रेमचंद कला वीथिका की स्थापना का प्रस्ताव किया है। इसके लिए थोड़े-बहुत संसाधन मिल गए हैं। प्रेमचंद का हिन्दी का पहला उपान्यास ‘सेवा सदन’ 1918 में इसी घर में रहकर लिखा गया और छपा। ‘सेवा सदन’ के 100 साल पूरे होने पर यहां राष्ट्रीय स्तर का सेमिनार कराने की योजना है। 

प्रेमचंद की कहानियों में जीवन की सच्चाई महसूस होती है। वह बहुत बड़ी शख्सियत हैं। उनके लिए जो भी किया जाए वो कम है। 
शुभम कुमार निगम 

इतने महान कथाकार की किताबों के बीच रहकर बहुत अच्छा लगता है। मैं और मेरे साथियों ने ‘अलख कला समूह’ नाम से थियेटर गु्रप बनाया है जो उनके नाटकों का मंचन करता रहता है।
बैजनाथ, लाइब्रेरियन, प्रेमचंद्र साहित्य संस्थान 

मैं इस पार्क में रोज टहलने आती हूं। प्रेमचंद जी के बारे में ज्यादा नहीं जानती लेकिन दीवारों पर उनकी कहानी के चित्रों को देखकर अच्छा लगता है। 
उर्मिला पाठक

मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूं। प्रेमचंद की कहानियों ने मुझे संघर्ष करना सिखाया है। उनका घर धरोहर है। इसे अच्छा स्मारक बनाना चाहिए। 
मनीष सिंह  

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