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कागज के किरदार, मौत ने साबित किया ‘जिंदा था विदेशी

गोरखपुर। वरिष्ठ संवाददाता फिल्म 'कागज' के 'किरदार' यहां भी हैं। 'कागज' के लालबिहारी की...

कागज के किरदार, मौत ने साबित किया ‘जिंदा  था विदेशी
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरWed, 20 Jan 2021 03:25 AM
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गोरखपुर। वरिष्ठ संवाददाता

फिल्म 'कागज' के 'किरदार' यहां भी हैं। 'कागज' के लालबिहारी की तरह कुछ लोग भाग्यशाली हैं जो खुद को 'जिंदा' साबित कर ले गए। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो 'जिंदा' होने से पहले दुनिया छोड़ गए।

फिल्म में लालबिहारी का किरदार निभाने वाले पंकज त्रिपाठी ने लेखपाल से लेकर प्रधानमंत्री और कोर्ट तक चक्कर लगाकर न्याय हासिल कर लिया लेकिन गोरखपुर के दौलतपुर गांव का विदेशी की असल मौत ने उसे ‘जिंदा साबित किया।

विदेशी को उसके भतीजों ने मृत दिखाकर खुद को वारिस घोषित करते हुए उसके हिस्से की जमीन बेच दी। अगस्त 2019 में विदेशी गांव आया तो गांव के लोगों से उसे जानकारी हुई। विदेशी ने छानबीन की तो पता चला कि 2 सितम्बर 2014 को कागज में वह मृत घोषित हो चुका है। खुद को जिंदा करने की कोशिशें शुरू करने के साथ ही 19 सितम्बर 2019 को उसने एसएसपी से शिकायत की। उसकी तहरीर थाने में दबी रही। अक्टूबर में जब उसकी असल जिंदगी में मृत्यु हुई तब कागज को पता चला कि विदेशी तो जिंदा था। पुलिस ने उसके बाद जालसाजी करने वाले भतीजों के खिलाफ केस दर्ज किया था।

दस साल बाद ‘जिंदा हुए रामेश्वर

गोरखपुर के ही कोनी गांव के रामेश्वर को भी ‘जिंदा होने में दस साल लग गए। जमीन के लिए उनके भाई लालजी ने उन्हें कागज में ‘मार डाला था। जिस जमीन के लिए लालजी ने अपने भाई रामेश्वर को कागज में मारा था उसे बाद में एक संस्था को रजिस्ट्री कर दी थी। जब लाल जी की असल जिंदगी यानी छह जून 2014 को मौत हुई तो रामेश्वर घर पहुंचे और उस वक्त उन्हें पता चला कि उनके भाई ने उन्हें वर्ष 2008 में ही कागजों में मार डाला था। वर्ष 2014 से ही उन्होंने खुद को जिंदा बताना शुरू किया। शिकायत की जांच और कागजी कार्रवाई के बाद वर्ष 2018 में वह कागज में 'जिंदा' हुए और उनकी जमीनों पर उनका नाम चढ़ा।

पुलिस ने छोटेलाल को साबित किया जिंदा

खोराबार के जंगल सिकरी गांव के 60 साल के छोटेलाल को उनकी बहू सुगिया ने पट्टीदारों पर हत्या करने का आरोप लगाते हुए मृत घोषित कर दिया था। छोटेलाल ने अपने पट्टीदार सुखलाल को जमीन बेची थी। इसी से नाराज होकर उसे गायब कर दिया गया। छह अप्रैल 2019 को जब पुलिस ने पिपराइच इलाके में एक मंदिर से छोटेलाल को बरामद किया तब सुगिया देवी की चाल पुलिस के सामने आई। पुलिस ने छोटेलाल का बयान कोर्ट में कराने के बाद यह साबित किया कि वह जिंदा है। उसके जिंदा होने से पट्टीदार हत्या के मुकदमें से बरी हुए।

अनिरुद्ध भी लड़ रहे जिंदा होने की जंग

बांसगांव के अनिल कुमार भी खुद को जिंदा करने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। पहले पट्टीदारों ने मिलीभगत कर उन्हें दस्तावेजों में मृत दर्शाया। इसके बाद फर्जी वसीयत बनाकर जमीन पर कब्जा कर लिया। जानकारी होने के बाद से अनिल खुद को जिंदा साबित करने के लिए राजस्व न्यायालय की शरण में हैं।

राजस्व कोर्ट में एक दर्जन से अधिक मामले

विदेशी, रामेश्वर और अनिल कुमार तो बानगी मात्र हैं। जीवित को मृत बताकर जमीन हथियाने के दर्जनों मामले राजस्व कोर्ट में चल रहे हैं। बेचारा पीड़ित खुद को जीवित साबित करने में पूरा जीवन निकाल देता है। हालांकि कुछ मामलों में लोगों को न्याय भी मिला है।

कोट

इस तरह के मामले राजस्व कोर्ट में हैं। हमलोगों को प्रयास रहता है कि जल्द से जल्द सुनवाई पूरी कर पीड़ित तो न्याय दिलाया जाए।

गौरव सिंह सोगरवाल, ज्वाइंट मजिस्ट्रेट सदर

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