सवालों की भूख खत्म कर रही है ऑनलाइन क्लास
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन किया गया। लॉकडाउन में काम-धंधों के साथ स्कूल भी बंद हो गए। पढ़ाई ठप हो गई। परीक्षाएं भी स्थगित हो गईं। बिना परीक्षा बच्चे अगली क्लास में प्रमोट कर दिए गए। पर यह...
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन किया गया। लॉकडाउन में काम-धंधों के साथ स्कूल भी बंद हो गए। पढ़ाई ठप हो गई। परीक्षाएं भी स्थगित हो गईं। बिना परीक्षा बच्चे अगली क्लास में प्रमोट कर दिए गए। पर यह कब तक चलता। ऐसे में स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास पर फोकस किया। इसके जरिए पढ़ाई तो शुरू कर दी गई लेकिन अब इसके नकारात्मक पहलू सामने आने लगे हैं। यह नया पैटर्न छात्र-छात्राओं में सवालों की भूख खत्म कर रहा है। इसमें इकतरफा संवाद ज्यादा हो रहा है।
यह सामने आया है दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय (डीडीयू) के एक सर्वे में। यह सर्वे मनोविज्ञान विभाग की प्रो. अनुभूति दुबे और शोध छात्रा निशा कुमारी व वंदना सिंह ने गोरखपुर और देवरिया के 74 छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों पर किया है। इसमें 43 छात्राएं और 31 छात्र हैं। यह सभी ऑनलाइन क्लास के जरिए पढ़ाई कर रहे हैं। यह छात्र व्हाट्सएप और जूम एप की मदद से पढ़ाई कर रहे हैं।
एकतरफा हो रहा है संवाद
सर्वे में शामिल छात्र-छात्राओं की उम्र 11 से 18 वर्ष के बीच है। नतीजों का विश्लेषण किया गया तो शिक्षा का सबसे चिंताजनक पहलू सामने आया। ज्यादातर छात्रों ने बताया कि ऑनलाइन क्लास में सिर्फ श्रोता बन कर रह गए हैं। क्लॉस में सवाल पूछने के मौके नहीं हैं। ऐसे में सवाल पूछने की आदत छूटती जा रही है। अभिभावक भी बच्चों की चिंताओं से इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है कि यह तो सिर्फ सिलेबस पूरा कर लेने जैसा हो रहा है। छात्राओं के अभिभावकों में नंबर सार्वजनिक होने से सामाजिक सुरक्षा की भी चिंता सामने आई।
नेट की स्पीड व मोबाइल की भी दिक्कत
करीब 50 फीसदी छात्रों ने माना कि इंटरनेट की स्पीड ठीक न होने से भी पढ़ाई में दिक्कत आ रही है। स्पीड कम होने से वीडियो लेक्चर बार-बार रुक जाता है। इससे समझने में मुश्किल आती है। इस कारण का कोर्स छूट जा रहा है। इसके अलावा घर में मोबाइल सेट की संख्या सीमित होने से भी बच्चों को दिक्कत हो रही है। कुछ परिवार में एक से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं। घरों में स्मार्टफोन एक ही है जबकि क्लास का समय दोनों बच्चों का एक ही है। ऐसे में यह भी एक दिक्कत है। इतना ही नहीं बड़ी तादाद ऐसे छात्रों की भी है जिनके घरों में स्मार्टफोन नहीं हैं।
छात्रों की परेशानी
- शिक्षक से संवाद न कर पाना
- नेटवर्क के कमजोर होना
- मोबाइल नंबर का सार्वजनिक होना
- लंबे समय तक इस्तेमाल से आंखों में दर्द
- इंटरनेट डाटा पर रकम खर्च होना
छात्रों की सुविधा
- स्कूल बंद होने के बाद भी घर से पढ़ाई
- लॉकडाउन में कोर्स पूरा होना
- बोर्ड परीक्षा की तैयारी में मददगार
- अपलोड होने के बाद देख सकते हैं बार-बार
अभिभावकों की चिंता
- बच्चों की सेहत के लिए ठीक नही
- छात्राओं की निजता को खतरा
- इंटरनेट खर्च बढ़ेगा
- स्मार्टफोन औरर इंटरनेट के आदी
अभिभावकों की राहत
- लॉकडाउन में बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं
- वर्किंग कपल बच्चों की शैतानी से बचे हैं
- कोर्स में पिछड़ने का डर नहीं है
शिक्षकों की परेशानी
- नई शिक्षा पद्धति
- इसकी कोई ट्रेनिंग नहीं मिली
- छात्रों से संवाद कठिन
- फीडबैक मिलना जटिल
- सभी छात्रों के पास स्मार्ट फोन नहीं
शिक्षकों की सुविधा
- घर बैठे पढ़ाए विषयवस्तु
- ज्यादा खर्चिला नहीं
बोले विशेषज्ञ
यह नई शिक्षा पद्धति है। इसमें ढेरों खामियां हैं। ज्यादातर छात्रों ने माना कि विषयवस्तु समझ में नहीं आ रहा है। इसमें निजता का भी खतरा है। छात्राओं के अभिभावक इसको लेकर ज्यादा चिंतित हैं।
प्रो. डॉ.अनुभूति दूबे, मनोविज्ञान विभाग, डीडीयू