डीडीयू में पीएचडी के प्रवेश में आरक्षण को लेकर अब नया सवाल खड़ा हो गया है। दो विभागाध्यक्षों ने कुलपति को पत्र लिखकर आरक्षण को लेकर उलझनें दूर करने की मांग की है। साथ ही यह भी मांग की है कि छह महीने का प्री पीएचडी कोर्स वर्क पूरा होने व इसका परीक्षाफल जारी करने के बाद ही गाइड अलॉट करने की मंजूरी दें। यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार पीएचडी कराने के लिए शोधार्थी को प्री पीएचडी कोर्स वर्क की परीक्षा पास करना भी जरूरी है।
सात साल बाद रेट (शोध पात्रता परीक्षा) कराने के बाद प्रवेश सूची जारी करने को लेकर कई विभाग उलझन में हैं। अब तक केवल अंग्रेजी, गणित व सांख्यिकी विभाग ही प्रवेश सूची जारी कर सके हैं। बॉटनी व राजनीति शास्त्र विभागों में विवाद के चलते विभागीय शोध समिति द्वारा जारी की गई प्रवेश सूची निरस्त करनी पड़ी है। राजनीति शास्त्र विभाग में दोबारा बुलाई गई डीआरसी की बैठक भी बेनतीजा रही है। अब दो विभागाध्यक्षों ने आरक्षण की स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है। उनका कहना है कि आरक्षित कोटे के अभ्यर्थी के लिए 50 फीसदी पर ही आवेदन की छूट है जबकि अनारक्षित कोटे के अभ्यर्थी को 55 फीसदी अंक पर ही आवेदन करना था। जिसने इसका फायदा लेकर आरक्षित कोटे से पहले ही आवेदन कर दिया हो, उसे क्या अब प्रवेश परीक्षा की मेरिट के आधार पर अनारक्षित कोटे में शिफ्ट किया जा सकता है। क्योंकि पहले ही अभ्यर्थी ने खुद को आरक्षित श्रेणी में घोषित किया है।
इसके अलावा यह भी कहा गया है कि जब यूजीसी के नियमों के अनुसार छह महीने का प्री पीएचडी कोर्स वर्क पूरा होने के बाद परीक्षा में उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को ही प्रवेश देने का नियम है तो इससे पहले ही गाइड एलॉट कराना कहां तक उचित है। ऐसे में यह परीक्षा कराने के बाद ही गाइड एलॉट करने की मांग की गई है। अभ्यर्थी यदि इस परीक्षा में फेल हो गया तो सीट खाली रहने की संभावना है।