छोटी-सी लापरवाही से गर्भस्थ शिशु हो रहे दिव्यांग
Gorakhpur News - -झोलाछाप से इलाज या बिना जांच एंटीबायोटिक सहित अन्य दवाओं के सेवन से दिक्कतें -अनियंत्रित

नीरज मिश्र गोरखपुर। गर्भवती महिलाओं की छोटी-सी लापरवाही से कोख में पल रहे शिशु दिव्यांग हो जा रहे हैं। गर्भावस्था में बीमार होने पर महिलाएं जाने-अनजाने में झोलाछाप के चक्कर में फंस कर दवाएं ले रही हैं, जो गर्भ में पल रहे शिशु पर दुष्प्रभाव डाल रहा है। बिना जांच के ही एंटीबायोटिक सहित अन्य दवाओं का सेवन भी ऐसी गर्भवतियों को आजीवन दर्द दे रहा है। यह समस्या 30 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में ज्यादा है। एम्स ऐसी गर्भवतियों का डाटा इकट्ठा कर रहा है, जिससे कि अन्य कारणों का भी पता लगाया जा सके।
एम्स में हर माह 300 से अधिक महिलाओं का प्रसव होता है। इनमें से पांच से सात नवजात दिव्यांग पैदा हो रहे हैं। इन बच्चों में कोई न कोई शारीरिक और मानसिक समस्या सामने आ रही है। एम्स की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. आराधना सिंह ने बताया कि एम्स में पूर्वांचल सहित बिहार और नेपाल के तराई से मरीज आती हैं। इनके फॉलोअप में यह बात सामने आई है कि कई बार गर्भावस्था में बीमार होने पर महिलाएं गांव-मोहल्ले के झोलाछाप से दवा लेकर उसका सेवन कर लेती हैं। उस वक्त तो दिक्कतें दूर हो जाती हैं, लेकिन बुरा उसका असर गर्भ में पल रहे शिशुओं पर हो जा रहा है। हैवी डोज की एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से भी गर्भ में पल रहे बच्चों को खतरा रहता है। ऐसे बच्चों को शारीरिक और मानसिक दिक्कतें हो रही हैं, जो प्रसव के तत्काल बाद पता भी नहीं चल पा रही हैं। इसे पता करने में करीब 45 दिन का समय लग जाता है। एम्स ऐसी महिलाओं का डाटा इकट्ठा कर रहा है, ताकि बच्चों की दिव्यांगता के अन्य कारण पता चल सकें।
अनियंत्रित शुगर वाली महिलाओं को ज्यादा खतरा
डॉ. आराधना सिंह ने बताया कि कई बार गर्भवती महिलाएं डायबिटीज को नजरअंदाज कर देती हैं, जबकि, इसकी वजह से भ्रूण में न्यूरल ट्यूब विकसित नहीं हो पाता। इस स्थिति में भ्रूण में मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी का निर्माण करने वाली कोशिकाएं विकसित नहीं हो पाती है। इसकी वजह से बच्चे का विकास गर्भ में नहीं होता है। कई बार समय से पहले बच्चे की मौत गर्भ में ही हो जाती है। इसके अलावा शुगर की दवाओं का असर गर्भ में पल रहे शिशुओं के हृदय पर होता है।
देर से शादी भी बच्चों के लिए अच्छा नहीं
डॉ. आराधना ने बताया कि बच्चों में दिव्यांगता का एक बड़ा कारण देर से शादी भी है। गर्भधारण के लिए सबसे अच्छा समय 25 से 30 साल के बीच है। इससे अधिक उम्र पर महिलाओं के अंडे और पुरुषों के शुक्राणु की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है। इसकी वजह से गर्भावस्था में जेनेटिक प्रभाव दिखने लगते हैं। ऐसी स्थिति में एक ही विकल्प है कि वे समय-समय पर जांच कराएं।
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