विवेक, वैराग्य, शांति, संतोष और क्षमा बुद्धि के पांच लक्षण: मोरारी बापू
मोरारी बापू कहते हैं कि रामचरितमानस में सभी रस हैं। रामचरितमानस का रस सम्पूर्ण समाज में व्याप्त है। कोई गीत गाता है तो उसमें भी रस है, कोई गुनगुनाता है तो वहां भी रस है। कुछ ऐसे ही मोरारी बापू ने...
मोरारी बापू कहते हैं कि रामचरितमानस में सभी रस हैं। रामचरितमानस का रस सम्पूर्ण समाज में व्याप्त है। कोई गीत गाता है तो उसमें भी रस है, कोई गुनगुनाता है तो वहां भी रस है। कुछ ऐसे ही मोरारी बापू ने बेहद सरल तरीके से रामायण कथा का बोध गोरखपुर के हजारों श्रद्धालुओं को कराया। चम्पादेवी पार्क में गोरखनाथ मन्दिर व श्रीराम कथा प्रेम यज्ञ समिति के तत्वावधान में ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ महाराज की स्मृति में चल रही नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन मोरारी बापू ने अपनी खास कथा शैली से व्यक्ति को जीवन बिताने की राह दिखाने का प्रयास किया।
हनुमान चालीस की चौपाई की धुन के साथ शुरू हुई श्रीराम कथा में मोरारी बापू ने कहा कि हम सभी यहां सात्विक रूप से कथा का संवाद कर रहे हैं। योगी शब्द रामचरितमानस में 32 बार आया है। इसी तरह स्वाध्याय करते हुए गणना की तो पाया कि नाथ शब्द भी 32 बार आया है। इसमें जोगी शब्द सिर्फ 32 बार आया है जबकि योगेंद्र शब्द एक बार आया है। इसी तरह भगवत गीता में भी योगी शब्द 32 बार आया है। यह हमारा और आपका मिलाया हुआ या बनाया हुआ संयोग नहीं है। इसके पीछे जरूर कोई विशेष संकेत है। वरना यह सभी 32 बार क्यों आते। कथा को विस्तार देते हुये मोरारी बापू ने प्रसाद की व्याख्या की।
बापू ने कहा कि प्रसाद तीन प्रकार के होते हैं। पहला ग्रंथ प्रसाद दूसरा ग्रंथ प्रसाद एवं तीसरा गुरू प्रसाद है। ग्रंथ प्रसाद चिंतन और गुरु के चरणों में बैठकर मिलता है। ग्रह प्रसाद एक विज्ञान है, नारद जी पर गृह की कृपा है। तीसरा गुरु प्रसाद है जो सर्वश्रेष्ठ है। जिसने गुरु प्रसाद ग्रहण कर लिया समझो उसने सफलता प्राप्त कर ली। इसके साथ ही बापू ने ग्रहों पर बात करते हुये कहा कि ग्रह एक विज्ञान है लेकिन मेरी रूचि ग्रहों में नहीं हैं। मेरी रूचि तो बस अनुग्रह में हैं। बापू ने कहा कि ग्रहों से बड़े-बड़े ज्योतिष भूतकाल बताते हैं, भविष्य बताते हैं लेकिन जब उनसे वर्तमान पूछो तो चुप हो जाते हैं।
शिक्षक हूं क्लास लेना जानता हूं
कथा के दौरान मोरारी बापू अपने श्रद्धालुओं को अपने पुराने दिनो से परिचित कराया। बापू ने कहा कि कथा वाचक से पहले साल 1965-66 में परिषदीय विद्यालय में शिक्षक हुआ करता था। तब चालीस छात्र हुआ करते थे, आज मेरे पास चालीस हजारा से ज्यादा छात्र है। क्लास कैसे चलानी ये मैं अच्छे से समझता हूं। उन्होंने कहा कि यहां इतने बुजुर्ग श्रद्धालुओं को छात्र कैसे कहूं। यह एक ऐसा वर्ग है। जहां अप वर्ग भी तुच्छ हैं। स्वर्ग में भी बैठे लोगों को जलन हो रही होगी की गोरखपुर में क्या हो रहा है वह भी खिड़कियां खोलकर यहां आने को लालायित होंगे। उन्होंने कहा कि एक आदमी को किडनैप करने में चार-पांच आदमियों की जरूरत होती हैं लेकिन इस पंडाल में तो मैं हजारों लोगों को किडनैप कर रामकथा का रसपान करा रहा हूं।
बाबा गोरखनाथ सिद्ध भी हैं शुद्ध भी हैं
रामकथा के दौरान सवाल-जवाब का भी दौर रोज की तरह चला। बापू से एक प्रश्न किया गया था कि मत्स्येन्द्रनाथ, गोपीचंद, भर्तृहरि और गोरखनाथ को आप किस क्रम में जोड़ना चाहेंगे। मोरारी बापू ने जवाब देते हुये कहा कि भर्तुहरि विषयी है, गोपीचंद साधक हैं, मत्स्येन्द्रनाथ सिद्ध हैं और गोरखनाथ शुद्ध व सिद्ध हैं। बापू ने कहा कि इस क्रम को कोई सत्य माने या न माने लेकिन मुझसे पूछा गया है तो ये मेरा क्रम है। इसी क्रम ने मत्स्येन्द्रनाथ एवं बाबा गोरखनाथ संवाद बताते हुये बापू ने कहा कि गोरखनाथ ने गुरु मत्स्येन्द्रनाथ से पूछा कि हे गुरु सत्या क्या है, धर्म क्या है तो गुरु उत्तर देते हैं सत्य ही धर्म है और धर्म ही सत्य है। इसके बाद गोरखनाथ फिर प्रश्न करते हैं कि हे गुरु बुद्धि के लक्षण क्या हैं। तो गुरु मत्स्येन्द्रनाथ बुद्धि के लक्षण बताते हैं और कहते हैं कि विवेक, वैराग्य, शांति, संतोष एवं क्षमा बुद्धि के ये पांच लक्षण हैं।
...और श्रीराम ने कर दिया धनुष भंग
श्रीराम कथा के दौरान धनुष भंग प्रसंग सुनाते हुये मोरारी बापू ने कहा कि राजा जनक ने विश्वामित्र जी को स्वयंबर के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने अपने साथ दोनों राजकुमारों को साथ लाने के लिए विश्वामित्र से प्रार्थना की। जनक ने स्वयंवर में सभी राजा महाराजाओं से घोषणा की। जो धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायेगा उसी से जानकी का विवाह होगा। प्रत्यंचा चढ़ाने की बात तो दूर कोई धनुष को जमीन से तिल भर नहीं हि्रला सका। इसके बाद प्रभु श्री राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई प्रत्यंचा चढ़ाते ही धनुष भंग हो गया। धनुष भंग होते ही मिथिला सियाराम की जयघोष से गूंज उठा।
बापू ने कहा कि हर रस को तुलसीदास जी ने मर्यादा में रखा है। धनुष टूटते ही वह मिट्टी का पिंड बन गया। धनुष तोड़ते ही पृथ्वी ऐसी घूमी की सागर भी छलक पड़ा। राक्षस भी अपने कानों पर हाथ रख लिया, ध्वनि इतनी तीव्र थी कि उनके कान ध्वनि की तीव्रता सहन न कर सके। भगवान ब्रह्मा जी ने शिव से पूछा की ये कैसी आवाज है। जिसकी ध्वनि से तीनों लोक हिल गये। ब्रह्मा जी ने साधना में लीन भगवान शिव को जगाया। उन्हें सारा वृत्तांत सुनाया। लखन जी मंच से सीधे मां जानकी के पास पहुंचे। धनुष भंग होने के बाद मां जानकी सखियों के साथ स्वयंबर सभा में पहुंचती है। इसी समय शिवावतारी भगवान परशुराम स्वयंवर सभा में पहुंचते हैं।
उनका फरसा देखकर पूरी सभा कांप उठती है। उनके नाम से तीनों लोक कापते हैं। उन्होंने जनक जी से पूछा कि यह धनुष किसने तोड़ा। इसे तोड़ने वाले को तुरंत मेरे सामने प्रकट करो, वरना मेरे कोप की भागी यह पूरी सभा होगी। भगवान परशुराम क्रोध में लाल हो रहे थे, पूरी सभा उनके क्रोध को देखकर सहम उठी। उसके बाद भगवान श्रीराम शील भावना से परशुराम जी को प्रणाम कर सारा वृत्तांत सुनाते हैं। इसके बाद में परशुराम महेंद्र गिरी पर्वत चले गए और मिथिला नरेश ने राजा दशरथ को विवाह के लिए आमंत्रित किया। जहां राजा दशरथ विवाह के लिए चारों पुत्रों सहित बाजे गाजे के साथ मिथिला पहुंचे। जानकी जी सभा में पहुंची इसके बाद जनक की अन्य तीनों पुत्रियां भी मंडप में पहुंची। जहां राजा जनक ने राजा दशरथ से अन्य तीनों बेटियों से विवाह का प्रस्ताव रखा एक ही मंडप में चारों भाइयों का विवाह हुआ।
विदाई पर हिमायल भी रो पड़ा
विवाह के बाद जिस दिन सीता मां की विदाई हो रही थी। पूरा मिथिला रो रहा था मिथिला में उस रात कोई नागरिक सोया नहीं। कहार मां सीता की डोली उठाएं आगे बढ़ रहे थे। उस दिन हिमालय भी रो रहा था। मिथिलेश जी रो रहे हैं, जिस बाप ने अपनी चारों पुत्रियों को लाड़ प्यार व दुलार से पाला था, उन्हें क्या पता कि उनकी बेटी को एक दिन जंगल में दर-दर भटकना पड़ेगा। उसे 14 वर्षों का वनवास काटना पड़ेगा।
साधु सम्राट की भक्ति देखता है
रामकथा में बापू ने साधु को परिभाषित करते हुये कहा कि सच्चा साधु कभी सम्राट की संपत्ति नहीं देखते बल्कि उसकी भक्ति देखते हैं। राजा की भक्ति व सम्मान कितना है, यह उसकी भक्ति को दर्शाता है। साधु कभी किसी भी राजा के मुंह पर उसके आवभगत की प्रशंसा नहीं करता।
जब बदल गया पंडाल का माहौल
मोरारी बापू कब श्रद्धालुओं को किसी भजन, गीत, गजल पर झूमने को मजबूर कर दे, ये किसी को पता नहीं रहता। शुक्रवार को व्यासपीठ पर बैठे बापू भक्तों के साथ काफी देर तक झूमते रहे। पहले ‘हर दिल जो प्यार करेगा वो गाना गायगा’ गीत बजा, श्रद्धालु उत्साहित होकर झूमते रहे। फिर गाना बजा ‘दिल के टुकड़े-टुकड़े कर के मुस्कुरा के चल दिये’, ‘हम मिले तुम मिले और जीने का क्या चाहिए’, ‘ठाड़े रहियो ओ बाके यार रे’ के साथ ही जय राम श्री राम जय जय राम पर पर श्रद्धालुओं को मग्न होने का पूरा समय दिया।
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