पथरी के इलाज में कारगर निकलीं ‘पथरचूर’ की पत्तियां
आखिरकार लैब में एक लोकमान्यता की पुष्टि हो गई। इस रिसर्च ने साबित कर दिया है कि पूर्वांचल के जंगलों में उगने वाले एक पौधे का नाम यूं ही पथरचूर नहीं पड़ गया। लैब में पथरचूर की पत्तियों ने कुलथी के...
आखिरकार लैब में एक लोकमान्यता की पुष्टि हो गई। इस रिसर्च ने साबित कर दिया है कि पूर्वांचल के जंगलों में उगने वाले एक पौधे का नाम यूं ही पथरचूर नहीं पड़ गया। लैब में पथरचूर की पत्तियों ने कुलथी के बीजों के साथ मिलकर इंसानी शरीर से निकाली गई पथरियों को गला दिया। गोरखपुर के बॉट्नी और केमिस्ट्री विभागों की 15 साल की संयुक्त रिसर्च में इसकी पुष्टि हो गई है। यह दोनों पौधे पथरी के इलाज में उपयोगी पाए गए हैं। इस रिसर्च के चार शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय जर्नल क्रिस्टल ग्रोथ में छप चुके हैं। अंतिम शोध पत्र 2016 में छपा है।
रिसर्च
गोरखपुर के दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के बॉटनी
केमिस्ट्री विभागों की 15 साल की संयुक्त रिसर्च
पथरचूर की पत्तियों और कुलथी के बीजों के
एक्सट्रैक्ट में डाली गईं आपरेशन से निकली पथरियां
कुछ ही दिन में कई टुकड़ों में बंट गई पथरियां
और अंतत: घुल कर समाप्त हो गईं
ग्रामीण इलाकों में सदियों से यह मान्यता है कि एक पौधा पत्थर को भी गला देता है, इसीलिए इसका नाम पथरचूर पड़ा। ऐसी ही मान्यता कुलथी के बीज के बारे में भी है। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में बॉटनी के विभागाध्यक्ष प्रो. वीएन पांडेय और केमिस्ट्री के एमेरिट्स प्रोफेसर ईश्वर दास ने शोध छात्र डॉ. एसके गुप्ता व शोएब अंसारी के साथ इन दोनों पौधों पर 15 साल में रिचर्स पूरी की है। इसमें बीएचयू के पूर्व वीसी प्रो. आपी रस्तोगी का भी सहयोग रहा है, पहले प्रो. रस्तोगी गोरखपुर विश्वविद्यालय में ही तैनात थे।
ऐसे की रिसर्च
रिसर्च टीम ने पहले पथरी (कैल्शियम ऑक्जीलेट और कैल्शियम फास्फेट) का लैब में अध्ययन किया। फिर पथरचूर (ट्राईएंथमा मोनोगाइना) की पत्तियों और कुलथी (मैक्रोटाइलोमा यूनिफ्लोरम) के बीज के वैज्ञानिक गुणों का अध्ययन किया। बीआरडी मेडिकल कॉलेज से आपरेशन कर निकाली गई स्त्री-पुरुषों की पथरियां मंगाई। इसमें 30 से 55 साल तक की महिलाओं व 25 से 40 साल तक की उम्र के पुरुषों की पथरियां शामिल थीं। लैब में अलग-अलग इन पथरियों को दोनों आयुर्वेदिक पौधों के एक्सट्रैक्ट में रखा गया। एक से तीन महीने में पथरियां पहले खंडित हुई और अंत में गल कर पानी घोल में मिल गई। यह प्रयोग अलग-अलग तापमान और मौसम में किया। हर बार यही परिणाम मिला। बाद में कंडक्टोमेट्रिक, नेफ्लोमेट्रिक टाइट्रेशन, यूवी विजुअल, आईआर पोटेशोमेट्रिक मेजरमेंट, ऑप्टिक फोटोग्राफी, फ्लेमफोटोमीटर आदि विधियों से जांच की। इसमें पता चला कि दोनों आयुर्वेदिक पौधों के एक्सट्रेक्ट के इस्तेमाल से आक्जीलेट व फास्फेट का निर्माण नहीं हुआ यानी पथरी नहीं बनी। इस शोध में सीएसआईआर दिल्ली ने डीडीयू को सहयोग दिया। अलग-अलग शोध परिणामों के आधार टीम ने चार शोध पत्र जर्नल ऑफ क्रिस्टल ग्रोथ को भेजे। संस्था ने परीक्षण के बाद सभी शोध पत्रों का प्रकाशन किया।
ऐसे बनती है पथरी
मेडिकल साइंस के मुताबिक महिलाओं की किडनी में सामान्यतया कैल्शियम ऑक्जीलेट और पुरुषों में कैल्शियम फास्फेट का स्टोन होता है। किडनी में पहले एक छोटा कण जमता है फिर बायो क्रिस्टलाइजेशन से पथरी बन जाती है। गॉलब्लैडर और पैंक्रियाज की पथरियां दोनों ग्रंथियों से निकलने वाली पित्त और रस के गाढ़ा होने से बनती हैं।
‘‘पाचन ठीक है तो यह पथरी का रामबाण इलाज साबित होगा। जिन्हें पथरी होने का डर हो, वह इन दोनों पौधों का इस्तेमाल करें तो उन्हें भविष्य में यह रोग होने की संभावना न्यूनतम होगी। अभी सर्जरी से पथरी निकाल दी जाती है मगर इसकी गारंटी नहीं कि दोबारा यह शरीर में नहीं बनेगी। अब आगे का परीक्षण चिकित्सा वैज्ञानिकों को करना है, जिसमें मानव शरीर के अंदर इसका असर देखा जाना है।’’
प्रोफेसर वीएन पांडेय और प्रोफेसर ईश्वर शरण दास
(प्रो. वीएन पांडेय विवि में बॉटनी के विभागाध्यक्ष हैं। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की 27 अकादमिक संस्थाओं के सदस्य व फेलो हैं। उनके 147 शोध पत्र प्रकाशित हैं, जबकि 18 शोध करा चुके हैं)
(यूजीसी के एमेरिट्स प्रो. ईश्वर दास रसायन विभाग के अध्यक्ष रहे हैं। विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम के लिए उन्हें प्रो. आरडी देसाई अवार्ड से नवाजा चुका है। उनके 120 से अधिक शोध पत्र छप चुके हैं। वह 25 शोध करा चुके हैं। मौजूदा समय वह राष्ट्रीय पर्यावरण संगठन के अध्यक्ष हैं)
सुश्रुत संहिता में इसका वर्णन है। पथरचूर व कुलथी के बीजों के इस्तेमाल से पथरी गल सकती है। पथरचूर नाम के पीछे भी इसकी पथरी तोड़ने की क्षमता है। मेरी जानकारी में कोई आयुर्वेदिक फार्मेसी इन वनस्पतियों से पथरी की दवा नहीं बनाती। कुछ अन्य रसायन मिलाकर पथरी की दवा कुछ कंपनियां बनाती हैं, जिनमें इन दोनों का भी एक्सट्रैक्ट भी होता है। आयुर्वेदाचार्य लोग अपनी प्रयोगशाला में इनके प्रयोग से पथरी की औषधियां बनाते हैं।
अमर कुमार श्रीवास्तव, आयुर्वेदाचार्य
असहनीय दर्द और महंगा इलाज
सामान्यत: पथरी किडनी, गाड ब्लैडर और पैंक्रियाज में होती है। एलोपैथी में इसका एक मात्र उपचार सर्जरी ही है। आपरेशन में 30 हजार से एक लाख रुपए तक खर्च आता है। बिना चीरा लगाए लीथोट्रिप्सी से पथरी तोड़ने की तकनीक भी प्रचलित हो रही है। इसमें लेजर से शरीर के बाहर से ही किरणों को फोकस कर पथरी तोड़ देते हैं, जो यूरिन से बाहर निकल जाती है। यह केवल किडनी की पथरी में ही इस्तेमाल होने वाली तकनीक है। हर तरह की पथरी में मरीज को असहनीय दर्द होता है।