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एक चौथाई घट गया बकरीद में चमड़े का व्यापार

गोरखपुर। निज संवाददाता

एक चौथाई घट गया बकरीद में चमड़े का व्यापार
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरTue, 13 Aug 2019 02:28 AM
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गोरखपुर। निज संवाददाताकुर्बानी के जानवर का चमड़ा कभी मदरसों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने का बड़ा जरिया हुआ करता था। मदरसों वालों की मानें तो मौजूदा समय में चमड़े की कीमत एक चौथाई तक कम हो गई है।विगत तीन से चार वर्ष पहले मदरसे में चमड़े से आमदनी जहां डेढ़ से दो लाख हुआ करती थी अब यह महज 40 से 45 हजार रुपये ही रह गई है। इस कारण मदरसों की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है। इस बार लोगों ने एक मुहिम शुरू की जिसमें चमड़े के साथ मदरसों में उचित रकम दिए जाने की बात कही गई। लोगों ने मदरसे में चमड़े के साथ पचास से पांच दो सौ रुपये तक सहायता के रूप में दिए। इस वर्ष अभी तक चमड़े का रेट नहीं जारी किया। जानकारों का कहना है कि चमड़े के रेट में इस बार भी कमी आयेगी। कुर्बानी के जरिए चमड़ा उद्योग को बड़ी मात्रा में एक साथ जानवरों का चमड़ा मिल जाता है। यहां के स्थानीय व्यापारी चमड़ा खरीदते हैं। इसके बाद इसे फैजाबाद, चौरीचौरा व कानपुर भेजा जाता है। कुछ जानवरों का चमड़ा कोलकाता भी भेजा जाता हैं। चमड़े की बिक्री से मदरसों का खर्च चलता है। इससे मदरसे में पढ़ने वाले बाहर के बच्चे दीनी-तालीम हासिल करते हैं।अन्य जानवरों के चमड़ों से होती है बड़ी आमदनीकुछ जानवरों के चमड़े मंहगे दामों में बिकते हैं। जिससे मदरसों की आमदनी सबसे ज्यादा होती है। ऐसे जानवरों के चमड़े 150 से 200 रूपये तक बिकते हैं। बकरें के चमड़े की तुलना में लगभग चार गुने दामों में इसकी बिक्री होती है। इससे एक बड़ी रकम मदरसे को साल भर खर्च चलाने के लिए मिल जाता है।

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