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शारदीय नवरात्र: चंदे के पैसे से खरीदी रामलीला की एक एकड़ जमीन

शारदीय नवरात्र शुरू होते ही महानगर के विभिन्न क्षेत्रों में रामलीला का मंचन शुरू हो गया है। विभिन्न स्थानों पर रामलीला देखने के लिए दर्शकों की भारी भीड़ इकट्ठा हो रही है। श्री रामलीला समिति द्वारा...

शारदीय नवरात्र: चंदे के पैसे से खरीदी रामलीला की एक एकड़ जमीन
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरMon, 15 Oct 2018 06:43 PM
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शारदीय नवरात्र शुरू होते ही महानगर के विभिन्न क्षेत्रों में रामलीला का मंचन शुरू हो गया है। विभिन्न स्थानों पर रामलीला देखने के लिए दर्शकों की भारी भीड़ इकट्ठा हो रही है। श्री रामलीला समिति द्वारा विगत 102 वर्षों से धर्मशाला बाजार में रामलीला का मंचन किया जा रहा है। धर्मशाला स्थित जटाशंकर के पास होने वाली इस रामलीला की शुरुआत वर्ष 1916 में हुई थी। उस समय के स्थानीय लोगों ने मिलकर रामलीला का मंचन शुरू किया। इसमें मुख्य रूप से सूर्यबली राम चौरसिया, भगवती पांडेय ने रामलीला की शुरुआत की थी। इसके बाद सूर्यबली चौरसिया के बेटे अभयचन्द चौरसिया ने वर्ष 1948 से इसका जिम्मा उठाया। वर्ष 1958 से राम अधार गुप्ता व केसरी चंद गुप्ता ने रामलीला मंचन को आगे बढ़ाया।

कृष्णकांत गुप्ता ने बताया कि उस समय लोग आपस में चंदा इकट्ठा कर रामलीला का मंचन किया करते थे। कलाकार नहीं मिलने पर स्वयं ही अभिनय करना पड़ता था। मोहल्ले के बच्चे ही वानर व राक्षसी सेना का अभिनय करते थे। धीरे-धीरे रामलीला बड़े पैमाने पर आयोजित होने लगी। बाद में स्थानीय लोगों के सहयोग से रामलीला का भव्य आयोजन किया जाने लगा।

श्रीकांत ने बताया कि उस समय रामलीला करने के लिए मैदान नहीं हुआ करता था तो किसी के घर या हाते में रामलीला की जाती थी। बाद में चंदे की राशि को इकट्ठा कर रामलीला मंचन के लिए एक एकड़ जमीन खरीदी गई। उस समय एक एकड़ जमीन को खरीदने के लिए 500 रुपये खर्च करने पड़े थे।

दुर्गेश कुमार गुप्ता ने बताया कि ₹500-700 रुपये पूरी रामलीला हो जाती थी। आज यह खर्च सात लाख रुपए तक पहुंच गया है। स्थानीय श्रद्धालु सोनू ने बताया कि उस समय चंदे के रूप में लोग पांच पैसे से लेकर आठ आने तक दिया करते थे जबकि जो लोग बहुत अमीर थे वह चंदे के रूप में ढाई से तीन रुपये देते थे। इस समय रामलीला कमेटी के अध्यक्ष पूर्व मंत्री गणेश शंकर पांडेय हैं। इन्हीं की देखरेख में रामलीला संपन्न होती है।

इनकी नजर में

उस समय रामलीला स्थानीय कलाकारों द्वारा की जाती थी। सभी पात्र कमेटी के लोग ही हुआ करते थे। स्वयं ही पूरी व्यवस्था देखनी पड़ती थी। दर्शकों के बैठने तक की जगह नहीं थी।

दुर्गेश गुप्ता, श्रद्धालु

विगत तीस वर्षों से यहां पांडाल सजाने से लेकर अन्य व्यवस्था में लगा हुआ हूं। कलाकारों का अभिनय दर्शकों रोमांचित व भाव विभोर करने पर विवश कर देता है। भीड़ इतनी होती है कि दर्शकों को बैठने के लिए जगह नहीं बचता।

रामप्रसाद, कुसम्ही जंगल

रामलीला मंचन के लिए बिहार, अयोध्या, मथुरा आदि जगहों से कलाकार आ चुके हैं। पहले स्थानीय कलाकारों द्वारा मंचन किया जाता था। यह मंच श्रद्धालुओं का प्रमुख केंद्र है।

कृष्णकांत गुप्ता, श्रद्धालु

पुराने जमाने व अब के मंचन में काफी फर्क है। अब अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण व लाइटिंग के जरिए रामलीला मंचन को और सजीव रूप दिया जा रहा है। इससे दर्शक काफी उत्साहित नजर आते हैं।

महानन्द गिरी, कलाकार

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