कामगारों ने तंगी, भूख और विस्थापन का दर्द झेला, मालामाल हो गए ठेकेदार
प्रवासी कामगारों पर कई तरफ से मार पड़ी है। लॉकडाउन में काम धंधा बंद हुआ, भूखों मरने की नौबत आ गई, पैदल या दूसरी दुश्वारियों के साथ घर पहुंचना पड़ा। यह सब तो सबने सह लिया पर ठेकेदार ने बरसो के भरोसे का...

प्रवासी कामगारों पर कई तरफ से मार पड़ी है। लॉकडाउन में काम धंधा बंद हुआ, भूखों मरने की नौबत आ गई, पैदल या दूसरी दुश्वारियों के साथ घर पहुंचना पड़ा। यह सब तो सबने सह लिया पर ठेकेदार ने बरसो के भरोसे का ऐसा कत्ल किया है कि उन्हें असहनीय पीड़ा से गुजरना पड़ रहा है।
ठेकेदारों ने महीनों काम करने की उनकी मजदूरी हड़प ली है। अब ये परदेश से अपने घर को लौट आए है। ऐसे में यह रकम मिलने का कोई तरीका या ज़रिया भी नहीं है। मुम्बई, पुणे व चेन्नई से वापस आए कामगारों का दर्द आंखों में साफ झलक रहा है। सफर में हुई मुश्किलें तो वे भूल चुके हैं पर जिस ठेकेदार ने उनसे काम कराकर मजदूरी हड़प ली, वे उसे नहीं भूल पा रहे हैं। आर्थिक तंगी से जूझने के दौरान उन्होंने ठेकेदारों से अपनी मजदूरी मांगनें को फोन भी किए पर वे काल उठाने से मुकरते रहे।
लॉकडाउन में जब भूखों मरने की नौबत आई तो ये कामगार घर वापस चले आए। सहजनवां इलाके में बाहर से आए प्रवासी कामगारों से ‘हिन्दुस्तान’ ने सफर की मुश्किलों पर बात करनी चाही तो यह नया दर्द उभरकर सामने आया।
दर्द एक-सहजनवा के लखनापार गांव का संदीप कहता है कि वह दो साल पहले पुणे गया। वहां एक ठेकेदार के नेतृत्व में टायल्स लगाने का काम करने लगा। हमारे साथ करीब 40 कामगार काम करते थे। ठेकेदार से हर महीने पगार लेने की बजाए सिर्फ खर्चेभर की रकम सभी लेते थे। एकसाल होने पर अच्छी-खासी रकम एकत्र हो गई। करीब 1.20 लाख रुपये घर भेजा था। हमारी तरह की अन्य कामगार भी अपनी बचत की रकम ठेकेदार के पास छोड़ देते थे। लॉकडाउन से पहले हमने ठेकेदार से 15 हजार रुपये लिए । सप्ताहभर बाद ही कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लाकडाउन हो गया। हमसभी कामगार 10 मंजिला भवन में कैद हो गए। धीरे-धीरे पैसा भी खत्म हो गया।
ठेकेदार को फोन करके हम सभी पैसा मांगते रहे। लेकिन उसने कोई मदद नहीं की। तीसरे लाकडाउन में उसने फोन उठाना भी बंद कर दिया। भूखों भरने की नौबत आ खड़ी हुई। ठेकेदार ने हमसभी के भरोसे को करारा झटका दिया। अब हमसभी ने वहां से निकलना ही मुनासिब समझा। पैदल ही निकल पड़े। रास्ते में ट्रक व लारी से किसी तरह 14 मई को अपने घर आ गए।
दर्द दो-मुम्बई में पेंट-पालिश करने वाले सहजनवा के नारंगपट्टी के रामजतन का कहना है कि सफर का दर्द तो चला जाएगा। ठेकेदार ने जो भरोसा तोड़ा है, उसे भूलना आसान नहीं है। ठेकेदार के साथ काम करते छह साल से अधिक समय हो गया। उससे हमने कभी भी पगार नहीं मांगा। महज खुराकी का पैसा लेता था। बाकी रकम उसके पास जमा होती रही। लाकडाउन के दौरान हम 55 कामगार एक विल्डिंग के बेसमेंट में फंस रहें। इस दौरान ठेकेदार दो बार आए तो राशन दे गए। हमसभी ने उनसे अपने बचत के पैसे मांगे तो उसने आश्वासन दिया कि जल्द ही व्यवस्था कर देंगे।
उसके बाद न तो उसने फोन उठाया और ना ही राशन भेजा। किसी तरह हमसभी ने आस-पास के लोगों के सहयोग से काम चलाया। स्थिति काफी भयावह होने पर हमसभी ने वहां निकलना ही बेहतर समझा। पैदल ही निकल पड़े। नहीं निकलते तो भूखों मर जाते। जान बचाने के लिए 80 हजार रुपये का मोह छोड़ना पड़ा। 15 मई को अपने गांव आ गए। यहां आकर घर-गृहस्थी चलाने के लिए गांव के लोगों से कर्ज लेना पड़ रहा है।
दर्द तीन- चेन्नई से लौटे लखनापार के लवकुश गौड़ के मुताबिक वह वहां पर एक फैक्ट्री में काम करता था। ठेकेदार के नेतृत्व में हमारे जैसे करीब 150 कामगार काम करते थे। लाकडाउन लगने के बाद काम-काज ठप हो गया। हम सभी किसी तरह भोजन का इंतजाम करते रहे। वहां के स्थानीय प्रशासन ने भी राशन मुहैया कराया। लेकिन ठेकेदार एक बार भी हमसभी का हालचाल लेने नहीं आया। काफी मुश्किल से लाकडाउन तीन बीता। हमसभी ने ठेकेदार से पैसा मांगा तो उसने हाथ खड़े कर लिए। हमारे साथ करीब 50 कामगार बिहार के थे। हम सभी वहां से पैदल ही चल पड़े। रास्ते में ट्रक व लारी के सहयोग से हम सभी 15 मई को सहजनवा आ गए। पैदल, लारी व ट्रक के सफर की पीड़ा तो समय के साथ भूल जाएगी। लेकिन ठेकेदार ने जो हमसभी के साथ संकट की घड़ी में किया। वह कभी नहीं हम भूल पाएंगे।
कामगार अपनी बचत का पैसा ठेकेदार के पास रखते थे
कामगारों का कहना है कि अधिकतर कामगार ठेकेदार के पास ही अपनी मजदूरी जमा रखते थे। छह महीने-साल भर पर इकठ्ठा रकम लेते थे। चूंकि लॉकडाउन में कामगार जगह-जगह कैद हो गए, तो ठेकेदारों की नीयत खराब हो गई। वे मौके से भाग निकले। ठेकेदारों को यह भरोसा था कि जो कामगार घर वापस जा रहा है वह साल भर से पहले लौटेगा नहीं । कई तो ऐसे भी कामगार हैं जो अब दोबारा परदेस जाकर कमाने का इरादा भी छोड़ चुके हैं।
