तारामंडल क्षेत्र में 150 एकड़ जमीन आवंटन की जांच शुरू
रामगढ़ताल परियोजना क्षेत्र में प्रमुख उद्यमी और एक बिल्डर को आवंटित 150 एकड़ भूमि में जीडीए के अधिकारियों की संदिग्घ भूमिका को लेकर शासन ने जांच शुरू कर दी है। सोमवार को प्रमुख सविच आवास द्वारा गठित...
रामगढ़ताल परियोजना क्षेत्र में प्रमुख उद्यमी और एक बिल्डर को आवंटित 150 एकड़ भूमि में जीडीए के अधिकारियों की संदिग्घ भूमिका को लेकर शासन ने जांच शुरू कर दी है। सोमवार को प्रमुख सविच आवास द्वारा गठित तीन सदस्यीय टीम ने प्रकरण से जुड़े दस्तावेजों की पड़ताल की। उम्मीद है कि प्रकरण में जल्द ही विजिलेंस जांच भी शुरू होगी।
तीन सदस्यीय अफसरों की कमेटी ने सोमवार की देर शाम तक जीडीए दफ्तर में मामले से जुड़े अभिलेख देखे। कमेटी मंगलवार को भी कुछ फाइलों की जांच के बाद लखनऊ लौटेगी। जीडीए सचिव ने आवंटन में पूर्व के अफसरों द्वारा गड़बड़ी का हवाला देते हुए शासन से उच्च स्तरीय जांच की मांग की थी। इसपर 17 जनवरी को प्रमुख सचिव आवास ने उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) को जांच देने के साथ ही शासन स्तर पर भी जांच के लिए एक कमेटी गठित कर दी थी।
प्राधिकरण ने साल 1997 में 150 एकड़ भूमि मेसर्स जालान कॉम्प्लेक्स प्राइवेट लिमिटेड और मेसर्स भव्या कॉलोनाइजर्स को नीलामी में दी थी। मेसर्स जालान ने 8 करोड़ 31 लाख रुपये और भव्या कॉलोनाइजर्स ने लगभग 5 करोड़ रुपये चुकाए थे। बाद में ब्याज का मामला फंसा जिसपर उद्योगपति और बिल्डर कोर्ट चले गए थे। हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट दोनों ही जगह जीडीए को कोई राहम नहीं मिली थी। कोर्ट ने उद्यमी और बिल्डर के पक्ष में जमीन की रिजस्ट्री कराने का आदेश दिया था। इसका पालन नहीं होने पर उद्यमी और बिल्डर की तरफ से हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच में अवमानना याचिका भी दाखिल की जा चुकी है। अभी रजिस्ट्री नहीं हो पाई है।
जीडीए के सचिव राम सिंह गौतम का कहना है कि इस मामले में जीडीए को करोड़ों के ब्याज का नुकसान हुआ है। इसमें प्राधिकरण के ही पूर्व के अफसर की भूमिका संदिग्ध है। शासन की टीम को सभी दस्तावेज मुहैया करा दिये गए हैं। जल्द ही विजिलेंस जांच भी शुरू होगी।