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2011 में आबादी में तबाही मचा रही बड़ी गण्डक

बड़ी गंडक नदी के सीधे निशाने पर आ गए कुशीनगर के अहिरौलीदान के लोगों का हाल बेहाल है। वर्ष 2011 में इस बड़े गांव की आबादी की ओर नदी ने रुख किया और तब से तबाही का जो सिलसिला शुरू हुआ वह आज तक बदस्तूर...

2011 में आबादी में तबाही मचा रही बड़ी गण्डक
हिन्दुस्तान टीम,कुशीनगरThu, 31 Aug 2017 04:13 PM
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बड़ी गंडक नदी के सीधे निशाने पर आ गए कुशीनगर के अहिरौलीदान के लोगों का हाल बेहाल है। वर्ष 2011 में इस बड़े गांव की आबादी की ओर नदी ने रुख किया और तब से तबाही का जो सिलसिला शुरू हुआ वह आज तक बदस्तूर जारी है। वर्ष 2011 से लेकर 2015 तक लगातार नदी का कहर इस गांव पर बरपा हुआ है। एक साल नदी शांत रही, लेकिन इस वर्ष फिर गांव लगातार तबाह हो रहा है।
तमकुहीराज क्षेत्र के पिपराघाट और अहिरौलीदान के कई टोले नदी व बंधें के बीच में बसे हैं। अहिरौलीदान के ग्रामीण इस समय प्रशासन पर काफी खफा हैं। इन ग्रामीणों का कहना है कि पिछले वर्षों पिपराघाट के कुछ टोलों की तबाही के बाद विभाग ने गंडक नदी से बड़ी आबादी के प्रभावित होने के भय से पिपराघाट-नरवाजोत बांध एक वर्ष के अंदर तैयार करा दिया। इससे पिपराघाट के अन्य टोले आज सुरक्षित हैं, लेकिन अहिरौलीदान के टोलों को बचाने के लिए ऐसा नहीं किया गया। इसके पीछे ग्रामीण बिहार सीमा से सटा होना बता रहे हैं।
इस परिवार ने तो कटान प्रभावितों के लिए बसा दिया चिरइया टोला
अहिरौलीदान निवासी एक व्यक्ति अपने पूरे परिवार के साथ कटान प्रभावित लोगों के दुख-सुख में बराबर उनका हमदर्द बनकर खड़ा है। पूर्व जिला पंचायत सदस्य गोरखनाथ यादव अपने परिवार के सभी पुरुष सदस्यों के साथ कटान प्रभावितों के पुनर्वास के लिए बंधे के किनारे साफ-सफाई कराकर उनके गुजर-बसर के लिए सुरक्षित स्थान दिलाने में जुटे हैं। वर्ष 2012 से अहिरौलीदान में शुरू हुए कटान से प्रभावित लोगों के लिए गोरखनाथ व उनके परिवार के लोगों ने सहयोग कर बांध किनारे एक चिरइया टोला ही बसा दिया है। इस अस्थाई टोले में सैकड़ों कटान प्रभावित ग्रामीण अपना ठिकाना बनाकर गुजर-बसर कर रहे हैं।
बस इमदाद की आस, पीड़ितों की सूची तक तैयार नहीं
नदी के कटान से प्रभावित सैकड़ों परिवार बंधे व अन्य सरकारी भूमि में अस्थाई ठिकाना बनाकर खानाबदोश की जिन्दगी बिता रहे हैँ। इनके लिए शासन-प्रशासन ने बड़े-बड़े दावे किए, लेकिन आलम यह है कि आज तक कटान प्रभावितों की अंतिम सूची तक नहीं बन सकी है। यही वजह है कि बाढ़ पीड़ितों की समस्याएं कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही हैं।   

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