जुबां खामोश है तो क्या, इस हुनरमंद के हाथ बोलते हैं
परिंदों को मंजिल मिलेगी यकीनन ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं।
परिंदों को मंजिल मिलेगी यकीनन ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं।
वही लोग रहते हैं खामोश अक्सर, ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं।।
ये पंक्तियां गोरखनाथ के रहने वाले 10 वर्षीय वेदांश पर सटीक बैठती हैं। वेदांश न बोल पाता है और न ही सुन पाता है। वेदांश के जुबां भले ही खामोश हैं इसके हाथों के हुनर का लोहा घर वालों के साथ ही कम्युनिटी रिहेबिलिटेशन सेंटर के प्रशिक्षक भी मानते हैं। वेदांश की याददाश्त जितनी तेज है उससे कहीं ज्यादा तेज उसके हाथ की उंगलियां हैं। एक बार जिसे देख ले उसकी हू-ब-हू तस्वीर बना देता है।
सीतापुर आई हॉस्पिटल स्थित सीआरसी की प्रशिक्षक डॉ. श्रुति का कहना है कि आज से चार महीने पहले वेदांश जब सीआरसी आया था तो किसी को यह अंदाजा नहीं था कि वह इतना तेजी से और चीजों को पकड़ लेगा। महज एक महीने में ही वह साइन लैंग्वेज का अभ्यस्थ हो गया और अब वह कुछ बच्चों को इसका अभ्यास भी कराता है। उसकी याददाश्त इतनी अच्छी है कि एक बार किसी को चीज को देख ले तो उसे कोरे कागज पर उकेर देता है। सीआरसी के कमरों में अधिकतर पोस्टर व मॉडल उसी के बनाए हुए हैं।
जन्म के बाद डेढ़ साल बाद पता चली दिव्यांगता
गोरखनाथ के रहने वाले विनोद तिवारी ने बताया कि उनका बेटा वेदांश जब डेढ़ साल का हुआ तब जाकर पता चला कि वह न तो सुन सकता है और न ही बोल सकता है। गोरखपुर के साथ ही लखनऊ, दिल्ली, मुम्बई, शिलांग, बेंगलुरू, हैदराबाद और चेन्नई जैसे शहरों में इलाज कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। थक हार कर घर बैठ गए।
दिनों दिन निखरती गई कला
भले ही वेदांश बोल और सुन नहीं पाता था लेकिन वह तीन साल की उम्र से ही काफी सक्रिय था। पांच साल की उम्र से वह फोटो देखकर कोरे कागज पर तस्वीर बनाता था। उसकी यह कला दिनों दिन निखरती गई। करीब पांच महीने पहले सीआरसी में प्रशिक्षण की जानकारी हुई। यहां वह रोज आता है। यहां आने के बाद उसकी सक्रियता और बढ़ गई है।