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पुलवामा की कराहों में दब गई हवलदार रामनौमी की शहादत

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में पिछले साल 14 फरवरी को हुई घटना के कारण गोरखपुर के एक जवान की शहादत दब गई। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में तैनात रामनौमी की मौत पुलवामा की घटना से सिर्फ सात घंटे पहले हुई। वह...

पुलवामा की कराहों में दब गई हवलदार रामनौमी की शहादत
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरFri, 21 Feb 2020 07:56 PM
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जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में पिछले साल 14 फरवरी को हुई घटना के कारण गोरखपुर के एक जवान की शहादत दब गई। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में तैनात रामनौमी की मौत पुलवामा की घटना से सिर्फ सात घंटे पहले हुई। वह चीन सीमा की अग्रिम चौकी चुंगटांग के पीगांग में तैनात थे। सैनिक की मौत के एक साल बाद भी पत्नी को अब तक पेंशन नहीं मिल रही है। इतना ही नहीं शहीद सैनिक का सामान भी परिवार को आज तक नहीं मिला। परिवार आज भी आईटीबीपी से मदद की गुहार लगा रहा है।

जंगल कौड़िया के सिंगहा निवासी रामनौमी गौड़ भारत-तिब्बत सीमा पुलिस(आईटीबीपी) के 11वीं बटालियन में हवलदार पद पर तैनात थे। वह पांच भाईयों के बीच चौथे नंबर पर थे। पिछले वर्ष फरवरी से बटालियन उत्तरी सिक्किम में तैनात है। रामनौमी की ड्यूटी अग्रिम चौकी चुंगटांग ब्लॉक के पीगांग में तैनात थे। बताते हैं कि फरवरी में लगातार बर्फबार होने के कारण चौकी तक के रास्ता अवरूद्ध हो गया। उंचाई अधिक होने व बर्फबारी के कारण 13 फरवरी की रात ऑक्सीजन का स्तर कम हो गया। इससे उनकी हालत बिगड़ गई। साथी उन्हें लेकर चुंगटांग स्थित अस्पताल पहुंचे। जहां देर रात उन्होंने दम तोड़ दिया।

14 फरवरी को मिली जानकारी: आईटीबीपी के अधिकारियों ने 14 फरवरी को तड़के रामनौमी की मौत की सूचना परिजनों को दी। इस सूचना के बाद परिवार में हाहाकार मच गया। पत्नी सरोज देवी, मां जीतना देवी, पुत्र अनुज व अनुराग के साथ ही चारों भाई बिलखने लगे। तीन दिन बाद शहीद का शव घर पहुंचा। 17 फरवरी को अंतिम संस्कार हुआ।

नहीं पहुंचे अधिकारी: पिछले साल 14 फरवरी को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमला हुआ था। इसमें 40 से अधिक जवानों की मौत हो गई। देश पुलवामा घटना से स्तब्ध रह गया। पुलवामा के शहीदों के लिए देशवासियों की भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा। रंजो-गम के माहौल में प्रशासन ने ड्यूटी पर शहीद हुए रामनौमी के शव को तवज्जो नहीं दी। 17 फरवरी को आईटीबीपी के जवान शव लेकर घर पहुंचे। घर पर कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं पहुंचा। पीपीगंज के तत्कालीन थानेदार ही अंतिम संस्कार में पहुंचे।

आज तक न पेंशन मिली न सामान: रामनौमी का परिवार महानगर के गोरखनाथ के दिग्विजय नगर कालोनी के आवास में रहता है। तीन कमरों के मकान में ही पांचों भाइयों का परिवार रहने को मजबूर है। परिवार को आईटीबीपी की तरफ से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली। रामनौमी की मौत के बाद जीवन बीमा की करीब 20 लाख की रकम परिवार को मिली। जिसे उधार व दूसरे खर्चे को पूरा करने में खर्च कर दिए। आज तक पत्नी को कोई पेंशन नहीं मिली। इतना ही नहीं आईटीबीपी की तरफ से शहीद का सामान भी परिवार को नहीं सौंपा गया।

मजदूरी करते हैं भाई: रामनौमी सरकारी नौकरी करने वाले परिवार में इकलौते सदस्य थे। वह परिवार की धुरी थे। छोटे भाई विरेन्द्र ने बताया कि सभी भाईयों का परिवार एक साथ एक ही मकान में रहता है। खेती कराने के लिए रकम वहीं भेजते थे। उनकी मौत के बाद चारों मजदूरी करने लगे। सभी एक ही साथ रहते हैं।

फोन करने पर नहीं देते जवाब: पत्नी सरोज देवी ने बताया कि आईटीबीपी से मदद के नाम पर सिर्फ आठ हजार रुपये आज तक मिले हैं। पेंशन न मिलने से परिवार की माली हालत खराब हो गई है। बच्चों को स्कूल में पढ़ाना कठिन हो गया है। पेंशन व दूसरी आर्थिक सहायता के लिए कई बार आईटीबीपी के सिक्किम व दिल्ली स्थित मुख्यालय पर फोन किया। हर जगह से सिर्फ आश्वासन मिलता है, मदद नहीं।

सीएम तक पहुंचेगा मामला: शहीद सैनिक के परिवार का मामला सीएम योगी आदित्यनाथ तक पहुंचेगा। इसकी पहल की है पार्षद ऋषिमोहन वर्मा ने। उन्होंने कहा कि शहीद का परिवार को मदद की दरकार है। परिवार के सदस्यों की सीएम से मुलाकात कराई जाएगी। परिवार को हर संभव मदद की जाएगी।

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