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नेपाल की सुख शांति के लिए महारोट का प्रसाद भेज रहा गोरखनाथ मंदिर

नेपाल की सुख-शांति के लिए मकर संक्रांति पर महारोट का प्रसाद गुरु गोरखनाथ मंदिर सदियों से भेज रहा है। नेपाल में राजशाही की समाप्ति व गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद भी यह गुरु...

नेपाल की सुख शांति के लिए महारोट का प्रसाद भेज रहा गोरखनाथ मंदिर
गोरखपुर राजीव दत्त पाण्डेय,गोरखपुरMon, 13 Jan 2020 11:49 AM
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नेपाल की सुख-शांति के लिए मकर संक्रांति पर महारोट का प्रसाद गुरु गोरखनाथ मंदिर सदियों से भेज रहा है। नेपाल में राजशाही की समाप्ति व गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद भी यह गुरु शिष्य की परम्परा आज भी जारी है। आज भी नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र वीर विक्रमशाह देव को महारोट का प्रसाद भेज राजपरिवार व नेपाल को सुख, शांति एवं समृद्धि की गुरु गोरखनाथ से कामना की जाती है।

सोमवार को गोरक्षपीठ से गुरु गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ के आचार्य कलाधर पौड़याल नेपाल की राजधानी काठमांडू के महराजगंज निर्मल आवास के लिए रवाना हो जाएंगे। इसी आवास में नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र वीर विक्रमशाह देव के सचिव शंकर नकर्मी को महायोगी भगवान श्री गोरखनाथ को चढ़ाए रोट का महाप्रसाद सौंपेंगे। मंदिर के लिए मकर संक्रांति का नकद दान लेकर 15 की अल सुबह गोरखनाथ मंदिर लौट आएंगे। ताकि गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ मकर संक्रांति पर श्रीनाथ गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने के बाद नेपाल राजपरिवार से भेजी गई रकम से परम्परा मुताबिक खिचड़ी चढ़ाई जा सके।

नेपाल के राजा ने शुरू की खिचड़ी की परम्परा : गोरखनाथ मंदिर के प्रधान सचिव द्वारिका तिवारी का कहना है कि ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ बताते थे कि नेपाल से खिचड़ी की परम्परा की शुरुआत 1774-75 से हुई। नेपाल के छोटे से भूभाग के राजा नरभूपाल शाह और रानी कौशल्यावती के पुत्र राजकुमार पृथ्वी नारायण शाह थे। राजमहल के निकट ही गुरु गोरक्षनाथ की गुफा थी। राजा ने राजकुमार को मना किया था कि गुफा में न जाना लेकिन गए तो वहां के योगी जो भी कहें उसे मना न करना। एक दिन उत्सुकतावश राजकुमार गुफा में पहुंच गए। गुरु ने दही की मांग की। राजकुमार अपने मां-पिता संग दही लेकर गुरु के पास पहुंचे। योगी ने दही का आचमन कर युवराज की अंजुलि में उल्टी कर दी। कहा कि पी जाओ। युवराज की अंजुलि से कुछ दही उनके पैरों पर गिर गई। बालक को निर्दोष मान गुरु गोरक्षनाथ ने नेपाल के एकीकरण का वरदान दिया। यह वरदान फलीभूत हुआ और नेपाल के गोरखाली राजा पृथ्वी नारायण शाह ने अपने 1722 से 1775 तक के कार्यकाल में हिन्दू नेपाल अधिराज्य की स्थापना की। तभी से गुरु गोरक्षनाथ को मकर संक्रांति पर खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा शुरू हुई।

गुरु गोरक्षनाथ को राजवंश का देवता मानने लगा नेपाल

गोरखनाथ मंदिर के बारे में एक और कहानी प्रचलित है। इतिहासकार डॉ. प्रदीप राव कहते हैं कि नेपाल में कई वर्षों से बारिश नहीं हो रही थी। नेपाल नरेश ने इसका कारण पता किया तो बताया गया कि मच्छेन्द्रनाथ जी नेपाल में सारी घटाओं को रोक लिए हैं, इसलिए बारिश नहीं हो रही। उसके बाद नेपाल राजवंश गुरु गोरक्षनाथ को आग्रह कर उन्हें नेपाल ले गया। गुरु गोरक्षनाथ को देखते ही मच्छेन्द्रनाथ ने उन्हें प्रणाम किया। उनकी मेघमालाएं ढिली हो गईं। नेपाल में बारिश शुरू हो गई। तभी ने नेपाल का गोरखा राजवंश गुरु गोरक्षनाथ को अपना कुल देवता मानने लगा।

भारत-नेपाल संबंधों में भी विशेष भूमिका

नेपाल व भारत के संबंधों को लेकर ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की विशेष भूमिका रही है। नेपाल के साथ मंदिर और राजनीति के बीच गुरु-शिष्य का रिश्ता है। नेपाल की मुद्रा में गुरु गोरक्षनाथ की कटार अंकित है। यह कटार उन्होंने पृथ्वी नारायण शाह को दी थी। इसके पूर्व मुद्रा पर गुरु गोरक्षनाथ का खड़ाऊं अंकित रहता था। इसके अलावा गुरु गोरक्षनाथाय नम: अंकित रहता है। गुरु गोरक्षनाथ नेपाल में राष्ट्रगुरु के रूप में प्रतिष्ठित हैं। कई स्थानों पर गोरक्षनाथ का मंदिर भी है। नेपाल में हिन्दूराष्ट्र को लेकर चल रहे आंदोलन में भी मंदिर उनके साथ खड़ा था।

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