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Hindi Divas Special: ई भूसे के ढेर में गुम होता जा रहा अच्छा साहित्य

सोशल मीडिया और संचार क्रान्ति ने सम्प्रेषण को सुगम करने के साथ सामाजिक सुधार, मानवतावाद और राष्ट्रीय अखण्डता को बुरी तरह प्रभावित किया है। हम देख रहे हैं कि टेक्नोलॉजी का प्रयोग करते हुए यथार्थ की...

Hindi Divas Special: ई भूसे के ढेर में गुम होता जा रहा अच्छा साहित्य
मिथिलेश ि‍द्विवेदी,गोरखपुरSat, 14 Sep 2019 01:07 PM
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सोशल मीडिया और संचार क्रान्ति ने सम्प्रेषण को सुगम करने के साथ सामाजिक सुधार, मानवतावाद और राष्ट्रीय अखण्डता को बुरी तरह प्रभावित किया है। हम देख रहे हैं कि टेक्नोलॉजी का प्रयोग करते हुए यथार्थ की जगह काल्पनिक छवियां गढ़ी जाने लगी हैं। ई साहित्य में शब्दों को विकृत कर दिया जाता है। संकीर्ण सोच को प्रधानता दी जाने लगी है। सोशल मीडिया ने एक तरह से भाषा का अपहरण कर रखा है। हिन्दी शिक्षकों का मानना है कि ई-भूसे के बड़े ढेर में अच्छा साहित्य जल्दी खो जाता है। यहां कोई बड़ी जिज्ञासा नहीं बची है।

नई टेक्नोलॉजी ने वैयक्तिक स्व, अपनी मानवीय गरिमा और आत्मबोध की क्षमता को भूलते जाने का खतरा पैदा कर दिया है। साहित्य को फास्ट फूड जैसी चीज बना दिया गया। पोस्ट आया, खोला, पूरा-आधा पढ़ा, कुछ मजेदार और विवादास्पद है तो टिप्पणी की, फिर आगे बढ़ गये अथवा अंगूठा दिखाया। यहां चीजें ‘आईं-गईं की दशा में होती हैं। यह भी देखा गया है कि इन्टरनेट पर अधिकांशतः सीमित जरूरत के हिसाब से कुछ खोजा जाता है। बाकी से मतलब नहीं होता। नई टेक्नोलॉजी के आने से यह भी हुआ है कि साहित्यिक विधाओं की विविधता का क्षरण हो रहा है। इससे साहित्य की गहराई और व्यापक विजन पर भी असर पड़ रहा है। अब ज्यादातर हल्की-फुल्की, छोटी और तात्कालिक चीजें ही लिखी जा रही हैं और इन पर साहित्यिक फैसला भी तत्काल हो जा रहा है। यह सुनने में अच्छा लगता है कि सोशल मीडिया ने लेखक और पाठक का सम्पर्क आसान कर दिया है और वास्तव में तालमेल ज्यादा हुआ है मगर भाषा साहित्य पर इसका गहरा असर पड़ा है। उम्मीद है कि हिन्दी भाषा की समृद्धि के लिए साहित्यकार व सरकार कुछ कठोर प्राविधान लागू करेगी।

-प्रो. विमलेश मिश्र

हिन्दी के भविष्य को लेकर शंकाएं बहुत दिनों से व्यक्त की जाती रही है किंतु यह सभी आशंकाएं निर्मूल साबित हुई हैं। इसका विस्तार पहले से बड़े क्षेत्र में हुआ है। लोगों का यह मानना है कि जब लोग उपन्यास, कहानी की किताबें नहीं खरीद रहे हैं यानि साहित्य से कट रहे हैं अथवा बोलचाल में हिन्दी के इस्तेमाल से बच रहे हैं, ऐसे में हिन्दी का बने रहना दूरूह लगता है किन्तु ऐसे लोग मूल्यांकन करते समय इस तथ्य को ध्यान में नहीं रखते कि अब पढ़ने लिखने का काम साफ्टकॉपी की ओर केन्द्रित हुआ है। नयी पीढी खूब पढ़ रही है। विश्व भर की भाषाओं में रचे गए साहित्य का अनुवाद हिन्दी में उपलब्ध हो रहा है। बाजार ने अपनी आवश्यकताओं के लिए ही सही हिन्दी में अपने विज्ञापन दिये हैं। फिल्मों के साथ साथ राजनीति ने भी हिन्दी के प्रसार में अदृश्य सहयोग दिया है। गैर हिंदी भाषी क्षेत्र के नेताओं पर यह दबाव रहता है कि वे हिन्दी में अपनी बात रखने की क्षमता दिखायें। इस प्रकार कुल मिलाकर हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है। हिन्दी को खतरा केवल वर्चस्व की भाषा अंग्रेजी से है।

-डॉ. श्रीनिकेत शाही

सिनेमा व सोशल मीडिया की हिन्दी अलग है। यह समाज में हिन्दी को हल्का कर रही है। लगता था कि इससे हिन्दी का प्रचार प्रसार बढ़ेगा मगर हुआ इसके उलट। इससे हमारी हिन्दी विकृत हो रही है। साहित्य की हिन्दी व विज्ञान की हिन्दी गंभीर होती है। इसे समझने को दिमाग पर जोर लगाना पडता है। इंटरनेट का साहित्य हमारे पुस्तकीय साहित्य से अलग है। इंटरनेट के साहित्य में भाषा की वह ऊचाई नहीं मिलती, जिसकी अपेक्षा होती है। हिन्दी के सुनहरे भविष्य को लेकर बुहत सारे लोग प्रयासरत है मगर जिस तरह से हमारी मौजूदा सरकार मजबूत इच्छाशक्ति से तमाम कड़े कानून लागू कर रही है, उसी इच्छा शक्ति से हिन्दी को राजभाषा से ऊंचा उठाकर राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाना होगा। राजभाषा कार्यालयी भाषा तक सीमित होती है, उसे राष्ट्र भाषा बनाने के लिए सामूहिक गंभीर प्रयास की जरूरत है।

-प्रो. आरडी राय

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