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पूर्व थानेदार को पांच साल के कठोर कैद की सजा, भेजा जेल जानिये क्यों

संतकबीरनगर के अपर जनपद एवं सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक द्वितीय संदीप जैन की कोर्ट ने शनिवार को बस्ती जनपद के मुण्डेरवा थाने के तत्कालीन थानाध्यक्ष परमानन्द यादव (अब सेवानिवृत्त) को पांच साल के कठोर...

पूर्व थानेदार को पांच साल के कठोर कैद की सजा, भेजा जेल जानिये क्यों
हिन्दुस्तान टीम,संतकबीरनगरSat, 30 Mar 2019 10:58 PM
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संतकबीरनगर के अपर जनपद एवं सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक द्वितीय संदीप जैन की कोर्ट ने शनिवार को बस्ती जनपद के मुण्डेरवा थाने के तत्कालीन थानाध्यक्ष परमानन्द यादव (अब सेवानिवृत्त) को पांच साल के कठोर कैद की सजा सुनाई। उनके खिलाफ विधि विरुद्ध तरीके से एक व्यक्ति को तीन दिन तक थाने में बन्द रखने, सरकारी कार्य में लापरवाही बरतने व सरकारी अभिलेखों में झूठा साक्ष्य देने का आरोप सिद्ध हुआ है। सजा सुनाने के बाद जेल भेज दिया गया।

इस प्रकरण में तत्कालीन थानाध्यक्ष परमानन्द यादव पुत्र शिवकुमार यादव ग्राम जौही थाना हल्दी जिला बलिया व तीन पुलिस कर्मियों को आरोपित किया गया था। मुण्डेरवा थाना क्षेत्र के ओड़वारा बाजार निवासी हीरालाल गुप्ता पुत्र ओरी लाल ने दिनांक 19 फरवरी 1987 को एसपी बस्ती को प्रार्थना पत्र दिया था। आरोप लगाया गया कि दिनांक  18 फरवरी 1987 को उसके भाई जवाहर लाल को उपरोक्त पुलिस कर्मी 12 बजे दिन में घर से पकड़ ले गए। साथ में लाईसेंसी बन्दूक और कारतूस की पेटी भी लेते गए। भाई जवाहर को थाने के लाकप में बन्द कर दिया। 

उसी दिन शाम को बस्ती के एक अधिवक्ता तथा पिता और एक अन्य भाई चिरौंजी लाल के साथ थाने में गया था। जवाहर को थाने में बन्द देखा था। बीस फरवरी को गृह मंत्री, गृह सचिव समेत डीआईजी और एसपी बस्ती को प्रार्थना पत्र दिया। आशंका जताई थी कि पुलिस फर्जी मुकदमे में फंसाना चाहती है। मामले में  पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कई धाराओं में मुकदमा कायम हुआ। इस मामले में पुलिस खलीलाबाद कोतवाली में दर्ज मुकदमा संख्या 47/87 धारा 395 भादवि के मुकदमे में उसे नामजद करना चाहती थी। इसकी भनक लगते ही खलीलाबाद ले जाते समय जवाहर पुलिस अभिरक्षा से भाग कर खलीलाबाद के डाकबंगले के सामने से गुजर रहे ट्रक के सामने कूद गया और मृत्यु हो गई। प्रकरण की विवेचना सीबीसीआईडी ने की थी।
 
दीवानी न्यायालय की स्थापना के पश्चात यह मुकदमा 14 फरवरी 2008 को संतकबीरनगर जनपद को अन्तरित हुआ। अपर जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी दुर्गा प्रसाद उपाध्याय ने अभियोजन का पक्ष रखते हुए तर्क दिया कि थाने के अभिलेख में जवाहर लाल की कोई प्रविष्टि नहीं है। यही नहीं फंसाने के लिए फर्जी प्रविष्टि करने का प्रयास किया गया है। एक पुलिस अधिकारी द्वारा किया गया यह अपराध गम्भीर प्रकृति का है। यह अपराध किसी प्रकार क्षम्य नहीं है। तीन दिन तक थाने के लाकप में बन्द रखने के बाद 21 फरवरी 1987 को खलीलाबाद ले आने का कोई औचित्य नहीं बनता था।

साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद अपर जनपद एवं सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक द्वितीय संदीप जैन की कोर्ट ने तत्कालीन थानाध्यक्ष को दोषी करार देते हुए विधि विरुद्ध रोकने, सरकारी सेवा लापरवाही में दो वर्ष और सरकारी अभिलेख में झूठा साक्ष्य देने के आरोप में पांच साल के सश्रम कारावास की सजा से दण्डित किया है। अन्य धाराओं और शेष आरोपितों को कोर्ट ने बरी कर दिया। सजा के साथ एक लाख रुपए का अर्थदंड भी कोर्ट ने लगाया है। जुर्माना अदा न करने पर छह माह के अतिरिक्त सश्रम कारावास की सजा भुगतनी होगी। अर्थदंड की धनराशि जवाहर लाल की पत्नी कलावती को देने का फैसला भी अदालत ने दिया है। सजा सुनाने के बाद जेल भेज दिया गया।

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