ये हैं गोरखपुर के 'महावीर सिंह फोगाट', बेटियों को बना दिया नेशनल प्लेयर
अंतरराष्ट्रीय कुश्ती में बुलंदियों पर पहुंची गीता और बबिता फोगाट की कहानी का 'दंगल' फिल्मी पर्दे पर जिसने भी देखा वो उनके पिता महावीर सिंह फोगाट का कायल हो गया। लेकिन गोरखपुर में भी एक...
अंतरराष्ट्रीय कुश्ती में बुलंदियों पर पहुंची गीता और बबिता फोगाट की कहानी का 'दंगल' फिल्मी पर्दे पर जिसने भी देखा वो उनके पिता महावीर सिंह फोगाट का कायल हो गया। लेकिन गोरखपुर में भी एक ‘महावीर सिंह फोगाट' हैं जिन्हें कम ही लोग जानते हैं। पीडब्लूडी के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी श्रीराम विश्वकर्मा ने महावीर सिंह की तरह ही अपनी बेटियों को अपने अधूरे ख्वाब दिखाए और कड़ी मेहनत कर उन्हें नेशनल प्लेयर बना दिया।
ये कहानी है कि शालिनी और अनुश्री की। जिनके लिए उनके पिता का संघर्ष कामयाबी की बुनियाद बन गया। गोरखपुर के दीवान बाजार के रहने वाले श्रीराम विश्वकर्मा अपनी जवानी के दिनों में हाकी के राष्ट्रीय खिलाड़ी बनना चाहते थे। मेजर ध्यानचंद को आदर्श मान श्रीराम ने मैदान पर खूब पसीना बहाया लेकिन घर की जिम्मेदारियों ने उन्हें अपना ख्वाब पूरा करने नहीं दिया। थकहार कर पीडब्लूडी की चतुर्थ श्रेणी नौकरी तो कर ली लेकिन मन वहीं कहीं मैदान पर अटक सा गया था।
फिर एक दिन श्रीराम विश्वकर्मा ने अपनी बेटियों को मैदान पर उतारने का फैसला किया। उसके बाद शुरू हो गई शालिनी और अनुश्री की जबरदस्त ट्रेनिंग। सुबह चार बजे उठना, साइकिल से ग्राउण्ड पर पहुंचना, वहीं से स्कूल और फिर शाम को वापस ग्राउण्ड पर। श्रीराम ने इसी रूटीन को अपना सबकुछ बना लिया। एक कमरे और बरामदे में सिमटी उनकी जिन्दगी में दो बेटियों के अलावा पत्नी, मां और बहन भी थीं।
पीडब्लूडी से मिलने वाली तनख्वाह इतनी कम थी कि परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था। लेकिन श्रीराम ने कभी हिम्मत नहीं हारी। बेटियों को राष्ट्रीय खिलाड़ी बनाने के लिए रोज अपनी इच्छाओं को मारा। शालिनी बताती हैं, 'पापा के पास अपने जूते नहीं होते थे लेकिन वह हमेशा यह कोशिश करते थे कि अनुश्री और मेरे पास जूते और किट अच्छी रहे।' बेटियों के एनआईएस (नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ स्पोर्टस) से डिप्लोमा करने के दौरान उन्हें लोन तक लेना पड़ा। आखिरकार मेहनत रंग लाई।
बड़ी बेटी शालिनी यूपी टीम से साल 2012-13 में सीनियर नेशनल, 2011-12 में जूनियर नेशनल के अलावा आल इण्डिया यूनिवर्सिटी, फेडरेशन कप, सब जूनियर नेशनल और स्कूल नेशनल खेल चुकी हैं। ग्रेजुएशन के बाद एनआईएस डिप्लोमा कर चुकीं 25 वर्षीय शालिनी स्टेडियम में अंशकालिक कोच के पद पर तैनात हैं। वहीं उनकी छोटी बहन अनुश्री भी बैडमिण्टन में यूपी टीम से सीनियर, जूनियर और सब जूनियर नेशनल खेल चुकी हैं। खेल की बदौलत ही वह दिल्ली में पोस्ट एण्ड टेलीकाम विभाग में आडिटर के पद पर तैनात हैं। सबसे छोटा भाई आदित्य स्नातक की पढ़ाई करता है। शालिनी बताती हैं, 'कक्षा तीन में पढ़ने के दौरान ही पापा ने मैदान पर ले जाना शुरू किया। हम बड़ी हुईं तो पास-पड़ोस के लोगों ने टोका-टाकी भी की। लेकिन पापा ने सबको नजरअंदाज करके हमें इस मुकाम तक पहुंचाया। खेल के प्रति उनका लगाव इतना है कि आज भी एमएसआई ग्राउंड पर आकर जूनियर खिलाडि़यों को टिप्स देते रहते हैं।'