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सुनने के लिए आठ बच्चों को है काक्लियर इंप्लांट की दरकार

केस एक-

सुनने के लिए आठ बच्चों को है काक्लियर इंप्लांट की दरकार
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरMon, 09 Sep 2019 01:22 AM
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केस एक-

गोला निवासी शमसुद्दीन का चार वर्षीय पुत्र साहिल जन्म से ही सुन और बोल नहीं पाता। जांच में पता चला कि सुनने की क्षमता ठीक हो जाए तो मासूम बोल सकेगा।

केस दो-

बेलघाट ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय में पहली कक्षा में पढ़ने वाले सत्यवीर ठीक से बोल व सुन नहीं पाता है। जांच में उसके दोनों कान में सुनने की क्षमता नहीं मिली।

यह दोनों मामले बानगी भर हैं। दोनों बच्चों का राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम(आरबीएसके) की टीम ने चयन किया है। ऐसे आठ मासूम हैं जिनके सुनने की क्षमता खत्म हो चुकी है। इस वजह से वे बोलना भी नहीं सीख पा रहे हैं।

आरबीएसके की टीम ने सबसे पहले मासूमों का इलाज जिला अस्पताल में कराया। जहां से डॉक्टरों ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। जांच में सभी बच्चों के कान में काक्लियर तंत्रिकाएं खराब मिली जिसके कारण उनके सुनने की क्षमता खत्म हो गई है।

इस बीमारी के इलाज के लिए बच्चों के कान में ऑपरेशन कर छोटी सी मशीन लगाई जाती है। यह प्रक्रिया काक्लियर इम्पलांट कहलाती है। सिर्फ मशीन की कीमत करीब साढ़े पांच लाख रुपये है। इसके अलावा ऑपरेशन के खर्च जोड़ लें तो इसमें करीब छह लाख रुपये का खर्च आएगा। सभी बच्चों के पिता किसान और मजदूर हैं। इसलिए उनके लिए इतना खर्च कर पाना संभव नहीं।

एनएचएम ने बजट भेजा, मंजूरी नहीं : राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) ने आरबीएसके द्वारा चुने गए बीमार बच्चों का इलाज कराने का फैसला किया है। आरबीएसके टीम ने क्लब-फुट, मोतियाबिन्द, जनरल सर्जरी और बहरापन के 40 मरीजों की सूची बीआरडी प्रशासन को सौंपी है। इलाज के एवज में एनएचएम ने बीआरडी प्रशासन को 25 लाख रुपये भी दे दिए मगर इम्पलांट की मंजूरी नहीं दी। इसके कारण बच्चों का ऑपरेशन नहीं हो पा रहा है।

यह है काक्लियर इंप्लांट

काक्लियर इम्प्लांट एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है। इसे सर्जरी कर कान में लगाया जाता है। सर्जरी के बाद जख्म भर जाने पर स्विच ऑन किया जाता है। इससे सुनने की ताकत वापस आ जाती है और धीरे-धीरे मरीज पूरी बात सुनकर प्रतिक्रिया भी व्यक्त करने लगता है। ईएनटी के विभागाध्यक्ष डॉ. आरएन यादव के अनुसार यह ऐसे बच्चों में लगाया जाता है जो जन्मजात बहरेपन से ग्रसित होते हैं या फिर बचपन में किसी वजह से सुनने की क्षमता खो बैठते हैं।

बीआरडी में काक्लियर इम्पलांट हो रहा है। आरबीएसके द्वारा भेजे गए बच्चों में भी इम्पलांट किया जा सकता है। एनएचएम ने 25 लाख रुपये भी दिए हैं। अब तक मंजूरी नहीं दी है। इसके लिए निदेशक को पत्र लिखा जा रहा है।

डॉ. गणेश कुमार, प्राचार्य

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