अनपढ़ों की अपेक्षा पढ़े-लिखे लोगों में तलाक के मुकदमे ज्यादा
अनपढ़ और गंवार लोगों की तुलना में ऊंची डिग्रीधारी और नौकरीपेशा लोगों के बीच तलाक के मुकदमे ज्यादा हैं। परिवार न्यायालय में चल रहे पारिवारिक विवाद के 7,000 से अधिक मुकदमे इसकी गवाही दे रहे हैं। इनमें...
अनपढ़ और गंवार लोगों की तुलना में ऊंची डिग्रीधारी और नौकरीपेशा लोगों के बीच तलाक के मुकदमे ज्यादा हैं। परिवार न्यायालय में चल रहे पारिवारिक विवाद के 7,000 से अधिक मुकदमे इसकी गवाही दे रहे हैं। इनमें से ज्यादा संख्या पढ़े-लिखे दम्पत्तियों की है जिनकी औसत उम्र 21 से 30 साल है। पति-पत्नी के बीच विवाद के प्रमुख कारणों में सामाजिक बंधन का ढीला होना, दोनों के बीच वैचारिक तालमेल का अभाव और अहम की टकराहट है।
पारिवारिक न्यायालय में पति-पत्नी विवाद के सात हजार मुकदमे विचाराधीन हैं। इनमें तलाक के एक हजार मामले हैं। तलाक के ज्यादातर मुकदमे पढ़े-लिखे लोगों के द्वारा दाखिल किए गए हैं। इनमें कई पीएचडी हैं तो कई पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी भी, कुछ अन्य सरकारी नौकरियों में हैं। कुछ ऊंची डिग्री हासिल करने के बाद प्राइवेट कम्पनियों में बड़े ओहदे पर हैं। पति-पत्नी के बीच विवाद पर परिवार न्यायालय में तीन तरह के मुकदमे दाखिल होते हैं।
लड़की पक्ष द्वारा भरण-पोषण एवं तलाक तथा लड़के की ओर से विदाई एवं तलाक का मुकदमा दाखिल किया जाता है। इसके अतिरिक्त आपराधिक मुकदमो में लड़की की तरफ से दहेज उत्पीड़न एवं महिला उत्पीड़न का भी मुकदमा दायर किया जाता है। परिवार न्यायालय में मुकदमा दायर होने के बाद आवेदन प्रथमदृष्टया सुनवाई के लिए मिडिएशन सेंटर जाता है। मिडिएशन सेंटर के सदस्यों का प्रयास होता है कि दोनों पक्षों को समझा-बुझाकर मामले का निस्तारण किया जाए और पति-पत्नी गिले-शिकवे दूर कर आपस में समझौता कर पुन: खुशहाली का जीवन व्यतीत करें।
मीडिएशन सेंटर में मामला नहीं सुलझ पाता है तो उसकी सुनवाई अदालत करती है और गुण-दोष के आधार पर मुकदमें का निस्तारण करती है। कभी-कभी सुलह समझौते के मामले में लड़की पक्ष से अड़चने पैदा कर दी जाती जिससे समझौता नहीं हो पाता। अदालत में दाखिल कुछ मामले ऐसे हैं जिनमें विवाह के कुछ दिन बाद ही लड़कियां अदालत का दरवाजा खटखटाने लगती हैं। अभी हाल ही में अदालत में एक रिटायर्ड दारोगा का प्रकरण सामने आया जिन्होंने अपनी पत्नी को तलाक दिया। उनकी पत्नी के पास एक लड़की भी है।
भौतिकवादी सुख-सुविधा भी बन जा रही है वजह
दीवानी न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता केशरीचंद कहते हैं कि बहुत से मामलों में पति-पत्नी के बीच भौतिकवादी सुख-सुविधा के आकर्षण के नतीजे से भी तलाक की नौबत आ जा रही है। महिलाओं में अधिकरों को लेकर जागरूकता भी आई है। पहले के समय में सामाजिक बंधनों और कानूनी जानकारी के अभाव में पत्नी पति के जुर्म को सहन कर चुप रहती थी। मौजूदा समय में उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान हो गया है।