Decline of Diary Sales in Digital Age Customization on the Rise कस्टमाइज डायरी और कलेंडर का दिख रहा क्रेज, स्मार्टफोन ने कारोबार को किया प्रभावित, Gorakhpur Hindi News - Hindustan
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कस्टमाइज डायरी और कलेंडर का दिख रहा क्रेज, स्मार्टफोन ने कारोबार को किया प्रभावित

Gorakhpur News - गोरखपुर में, नए साल के पहले महीने में डायरी और कैलेंडर की बिक्री में कमी आई है। डिजिटल युग में, कस्टमाइज्ड नोटबुक की मांग बढ़ रही है, जबकि पहले दो लाख से ज्यादा डायरियां बिकती थीं। अब लोग अपने...

Newswrap हिन्दुस्तान, गोरखपुरMon, 30 Dec 2024 09:30 AM
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कस्टमाइज डायरी और कलेंडर का दिख रहा क्रेज, स्मार्टफोन ने कारोबार को किया प्रभावित

गोरखपुर, वरिष्ठ संवाददाता। नये साल के दस्तक के महीने भर पहले से ही डायरी और कलेंडर की बिक्री प्रमुख चौराहों से लेकर बक्शीपुर में खूब दिखती थी। लेकिन डिजिटल दौर में डायरी और कलेंडर स्मार्ट फोन में समाहित हो गया है। अलबत्ता, अब कस्टमाइज डायरी और कलेंडर का क्रेज बना हुआ है। लोग अपने कारोबारी रिश्तों को मजबूती देने में इस्तेमाल कर रहे हैं। बक्शीपुर में स्टेशनरी और किताबों के बड़े कारोबारी श्रीप्रकाश उर्फ अनिल सिंह का कहना है कि बमुश्किल दस साल पहले बक्शीपुर से लेकर गोलघर में दो लाख से अधिक डायरियां बिक जाती थीं। अगस्त में ही ऑर्डर मिल जाते थे। नवम्बर महीने से ही डिलेवरी होने लगती थी। लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं। बैंक रोड पर आर्चिज गैलरी के प्रमुख मनीष श्रीवास्तव का कहना है कि डायरी के बजाए नोटबुक की बिक्री अधिक हो रही है। डायरी में साल ऊपर ही लिखा होता है। ऐसे में साल खत्म होने के साथ ही उस डायरी की उम्र पूरी हो जाती है। लेकिन नोटबुक का इस्तेमाल कभी भी हो सकता है। 149 से लेकर 499 रुपये कीमत की नोटबुक उपलब्ध है। जीवन बीमा में प्रतिष्ठित विनय राय का कहना है कि पहले लोग नवम्बर महीने से ही फोन कर डायरी और कलेंडर की डिमांड करने लगते थे। लेकिन अब स्थितियां बदल गईं हैं। कारोबारी विजय जायसवाल का कहना है कि कारोबारी रिश्ते को देखते हुए कस्टमाइज नोटबुक छपवाया है। जिसे नोटबुक और टेबल कलेंडर गिफ्ट करना है, उसका नाम भी प्रकाशित कराया गया है। प्रिंटिंग के कारोबार से जुड़े प्रमोद निषाद का कहना है कि अब डायरी और कलेंडर प्रकाशित करने वाले 5 लोग भी नहीं है। वर्ष 2000 में कई ऑर्डर को रद करना पड़ा था।

इक्का-दुक्का ही बचे हैं डायरी लेखन करने वाले

साहित्यकार आईएच सिद्दीकी पिछले 54 साल से नियमित डायरी लेखन करते हैं। वह बताते हैं कि पहली बार बक्शीपुर में पुलिस और छात्रों के बीच हुए विवाद में गोली चली थी। बात 20 अक्तूबर, 1962 की है। तब आठवीं का छात्र था। घर लौटकर डायरी के पन्नों में इसे दर्ज किया। वर्ष 1970 में नौकरी में आने के बाद नियमित डायरी लिखता हूं। एक भी दिन ऐसा नहीं है, जब डायरी पर कुछ शब्द नहीं लिखा हूं। साहित्यकार देवेन्द्र आर्य का कहना है कि यह सच है कि आज का समय डायरी लेखन का समय नहीं रहा है। पहले एक दिनचर्या के तरह से लोग अपना रोज नामचा लिखा करते थे। जिसमें खास घटनाएं होती थी। रचनाकार डायरी में कविताएं लेखन करते थे। छोटी डायरी हमेशा जेब में रखते। मोबाइल से सारी चीजे बदल गई हैं। डायरी लेखन एक तरह साहित्य था। डायरी में इतिहास झलकता था। दौर के सामाजिक और आर्थिक स्थितियों की गवाही हैं डायरियां। कई बड़े लोगों की डायरी प्रकाशित भी होती थी। शब्दों से जो लगाव पेज और कलम के सहारे बनता है, वह डिजिटल प्लेटफार्म पर नहीं दिखता।

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