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लॉकडाउन में लाशें भी नहीं निकल पा रहीं

लॉकडाउन में जिंदा इंसान जहां घरों में कैद है, वहीं लाशें भी श्मशान घाट तक नहीं पहुंच रही हैं। घरों के आसपास की नदियों व घाटों पर लोग आखिरी नींद सोने को मजबूर हैं। कमोबेश जिले के सभी श्मशान घाटों में...

लॉकडाउन में लाशें भी नहीं निकल पा रहीं
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरMon, 30 Mar 2020 02:04 AM
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लॉकडाउन में जिंदा इंसान जहां घरों में कैद है, वहीं लाशें भी श्मशान घाट तक नहीं पहुंच रही हैं। घरों के आसपास की नदियों व घाटों पर लोग आखिरी नींद सोने को मजबूर हैं। कमोबेश जिले के सभी श्मशान घाटों में अंतिम संस्कार के लिए पहुंचने वाले शवों की संख्या पांच गुना कम हो गई है।

लॉकडाउन के चलते श्मशान तक शवों को ले जाने के लिए वाहन नहीं मिल पा रहे हैं। लोगों के घरों में कैद होने से अंतिम यात्रा में शामिल होने वाले लोगों की संख्या भी सीमित हो गई है। गोरखपुर के राजघाट पर जहां 25 शव तक पहुंचते थे, वहां अब यह संख्या पांच तक रह गई। यही हाल मुक्तिपथ बड़हलगंज का भी है। वहां भी पहले 15 से 18 तक की संख्या होती थी, अब महज तीन-चार शव ही पहुंच रहे हैं। इसके अलावा पहले जहां अस्थियां वाराणसी ले जाई जाती थीं, उन्हें भी अब आसपास के श्मशान घाटों पर ही विसर्जित की जा रही हैं।

सामान का भी पड़ा अकाल : अंतिम यात्रा में लगने वाले जरूरी सामान भी मुश्किल से ही मिल पा रहे हैं। पहले लोग वाहनों पर लादकर घर से ही कुछ सामान श्मशान घाट तक पहुंचते थे। लेकिन वाहनों व लोगों की कमी के चलते अब वह व्यवस्था भी बंद हो गई। किसी तरह से इधर-उधर से बंदोबस्त करके काम चलाया जा रहा है। इन सब व्यवहारिक दिक्कतों की वजह से लोग घरों के आसपास नदियों व घाटों के किनारे ही दाह संस्कार की रस्म निभा रहे हैं।

राजघाट

गोरखपुर में राप्ती तट पर स्थित राजघाट पर रविवार की शाम केवल दो शवों का ही अंतिम संस्कार हुआ। जबकि शनिवार को तीन शवों का अन्तिम संस्कार हुआ था। शुक्रवार को भी यही स्थिति थी। 22 मार्च से पहले 20 से 25 शव तक रोजाना आते थे अब यह संख्या 3 से पांच तक रह गई है। शव के अन्तिम संस्कार की प्रक्रिया कराने वाले आनंद गिरि ने बताया कि लॉकडाउन और कोरोना की दहशत का असर घाटों पर दिख रहा है।

मुक्तिपथ

मुक्तिपथ पर 22 मार्च को पांच, 23 को सात, 24 को सात, 25 को दो, 26 को आठ तथा 27 मार्च को तीन और 28 मार्च को तीन व 29 मार्च की शाम तक चार शव ही आए। जबकि सामान्य दिनों में यह संख्या 15 से 18 तक की होती है। मुक्तिपथ के व्यवस्थापक महेश उमर ने बताया कि लॉकडाउन से हो रही परेशानी के चलते लोग शवों को जलाने के लिए अपने घर के नजदीक नदियों व घाटों पर ही जा रहे हैं।

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