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नोएडा के मुकाबले दौड़ नहीं लगा सका अपना गीडा

नोएडा की तर्ज पर 27 साल पहले स्थापित गीडा का औद्योगिक विकास सरकारों की कोशिशों के दावों की पोल खोलती है। पूर्वांचल की तस्वीर बदलने के दावे के बीच स्थापित गीडा फिलहाल बदहाल है। वर्ष 1991 में...

नोएडा के मुकाबले दौड़ नहीं लगा सका अपना गीडा
कार्यालय संवाददाता,गोरखपुर Sun, 18 Feb 2018 04:22 PM
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नोएडा की तर्ज पर 27 साल पहले स्थापित गीडा का औद्योगिक विकास सरकारों की कोशिशों के दावों की पोल खोलती है। पूर्वांचल की तस्वीर बदलने के दावे के बीच स्थापित गीडा फिलहाल बदहाल है। वर्ष 1991 में  स्थापित गीडा में अभी 10 फीसदी भी औद्योगिक विकास नहीं हुआ है। हालांकि योगी सरकार की पहल से करीब 20 उद्यमियों ने 1400 करोड़ से अधिक रुपये खर्च कर उद्योग स्थापित करने की पहल की है। 

27 वर्षों में लक्ष्य का बामुश्किल 10 फीसदी उद्योगों की ही हो सकी स्थापना
सड़क, बिजली, पानी, सीईटीपी से लेकर दर्जनों समस्याओं से जूझ रहा है गीडा

20 हजार एकड़ में प्रस्ताविक औद्योगिक विकास ढाई दशक में महज 2 हजार एकड़ में ही हो सका है। इसमें से भी बड़ा हिस्सा एजुकेशनल संस्थाओं और आवासीय परियोजनाओं में चला गया है। सरकारों द्वारा जहां हजारों करोड़ रुपए निवेश के दावे हो रहे हैं वहां 27 वर्षों में बामुश्किल 2000 करोड़ का निवेश हुआ है। गीडा प्रशासन ने अभी तक 773 उद्यमियों का प्लॉट का आवंटन किया है। कागजी आकड़ों में 372 भू-खंडों पर उद्योग संचालित हैं। जमीनी हकीकत यह है कि 100 से अधिक इकाईयां बंद हो चुकी हैं या फिर दूसरे राज्यों में शिफ्ट हो गई हैं। बड़े उद्योगों को उंगली पर गिना जा सकता है। शराब बनाने की फैक्ट्री आईजीएल को छोड़ दें तो गीडा में एक भी उद्यमी गोरखपुर से बाहर के नहीं नजर आते हैं।

बड़े उद्योगों में उद्यमी चन्द्र प्रकाश अग्रवाल की गैलेंट सरिया में करीब 500 तो शराब बनाने वाली कंपनी में 300 करोड़ का पूंजी निवेश हुआ है। एआरपी चप्पल, गुटखा बनाने वाली शुद्ध प्लस और इक्का दुक्का प्रोसेसिंग यूनिट को छोड़ दें तो गीडा का औद्योगिक विकास सिफर ही नजर आता है। एनडीए सरकार में लोकसभा चुनाव से ऐन पहले तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री शहनवाज हुसैन ने करीब 500 करोड़ से प्रस्तावित टेक्सटाइल पार्क का शिलान्यास किया था। इसके बाद 15 करोड़ की पूंजी से प्रस्तावित फूड पार्क भी अधर में हैं। अब पंतजलि द्वारा फूड पार्क की कवायद की जा रही है लेकिन गीडा के पास जमीन ही नहीं है। वहीं आईटी पार्क के लिए जमीन आवंटित होने के बाद भी प्रगति शून्य दिखती है। 

बामुश्किल 8000 लोगों को मिला रोजगार
कहां गीडा के बहाने पूर्वांचल में औद्योगिक क्रान्ति और बेरोजगारी दूर करने के दावे हो रहे थे वहीं यहां के उद्योग बामुश्किल 8000 लोगों को रोजगार दे सका हैं। इनमें से करीब 95 फीसदी मजदूर की कटेगरी में हैं। जो 10 हजार रुपए भी वेतन नहीं पाते हैं। जिन किसानों की भूमि अधिगृहित हुई थी उन्हें भी गीडा प्रशासन नौकरी नहीं मुहैया करा सका। मजदूरी को लेकर फैक्ट्रियों में कई बार विवाद हो चुका है। 

पलायित हो रहे हैं उद्यमी
सुविधाओं की कमी और इस्पेक्टर राज के चलते तमाम उद्यमी दूसरे प्रदेशों का रूख कर रहे हैं। पिछले दो वर्षों में दो दर्जन इकाईया बंद हुई हैं। वहीं 30 से अधिक उद्यमियों ने दूसरे प्रदेशों का रूख किया है। बोरा और सूत बनाने की दो कंपनियों ने बीते दिनों गुजरात का रूख किया है। वहीं कई उद्योग उत्तराखंड चले गए हैं। गोरखपुर के एक उद्यमी ने अपनी नई इकाई गुजरात में स्थापित की हैं। 

गीडा की समस्यायें-
-गीडा के स्थापना के 27 वर्षों के दौरान आधे समय तक सीईओ का पद खाली ही रहा। किसी आईएएस की बतौर सीईओ तैनाती हुई भी तो वह तबादले के जुगाड़ में लगा रहा या फिर भ्रष्टाचार में घिर गया। गोरखपुर के कमिश्नर रहे एनएन उपाध्याय गीडा में तैनाती के वक्त निष्क्रिय ही रहे। वहीं पिछले दिनों पूर्व सीईओ ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे। पूर्व कमिश्नर पी गुरू प्रसाद द्वारा गठित जांच कमेटी ने ज्ञान प्रकाश और उनके सहयोगियों को करीब 100 प्लॉट के आवंटन में गोलमाल का दोषी पाया था। 
-लैंड बैंक के नाम पर गीडा प्रशासन कंगाल नजर आ रहा है। गीडा के पिपरा-तेनुहारी में 270 एकड़ अधिग्रहण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्टे कर दिया है। कोर्ट ने गीडा के अफसरों और किसानों से अपना-अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है। मामले में मार्च में सुनवाई होने की संभावना है। 
-गीडा प्रशासन ने आवंटियों को लो-लैंड का आवंटन किया है। जिसमें मिट्टी का भराव करना जरुरी है। प्रशासन द्वारा खनन पर लगाई गई बंदिश के चलते उद्यमियों को मिट्टी नहीं मिल पा रहा है।
-गीडा क्षेत्र में सड़क, नाली, बिजली से लेकर सफाई व्यवस्था की स्थिति बदहाल है। कमोवेश सभी सेक्टरों की सड़कें टूटी हैं। महंगी बिजली दर के बीच उद्यमियों को लो-बोल्टेज की समस्या से जूझना पड़ रहा है। 

उद्यमियों का कहना है-
उद्यमी बिजली, सड़क और पानी जैसी मूलभूत सूविधाओं के लिए तरस रहे हैं। चंद घंटों की बारिश में पानी फैक्ट्रियों के अंदर घुस जाता है। सेक्टर 15 में दो वर्ष पूर्व 200 उद्यमियों को प्लॉट का आवंटन हुआ था। बिजली, सड़क और पानी की सुविधा मिली नहीं अब गीडा प्रशासन उद्योग न लगाने के लेकर उद्यमियों को आवंटन निरस्त करने की नोटिस दे रहा है। 
आरएन सिंह, उपाध्यक्ष, चेंबर ऑफ इण्डस्ट्रीज

उद्यमियों को 10 से 25 लाख रुपए ब्याज भरने की नोटिस भी दी जा रही है। नई सरकार ने पड़ोसी राज्य बिहार और उत्तराखंड़ में उद्यमियों को मिलने वाली सहूलियतों की तर्ज पर सुविधा देने की घोषणा की है। गीडा में उद्यमियों का शोषण नहीं हो। उद्यमियों को बिजली, सड़क और पानी जैसी सुविधाएं मिले तो गीडा पूर्वांचल की तस्चीर बदल सकता है। 
प्रवीण मोदी, उद्यमी

सिंगल विडो का दावा सिर्फ कागजों में दिखता है। छोटी-छोटी जरूरतों के लिए उद्यमियों का शोषण हो रहा है। गीडा प्रशासन ने औद्योगिक कचरे के निस्तारण के लिए कामन इन्फलूएंस ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का दावा किया था लेकिन 27 वर्ष बाद भी इसकी स्थापना नहीं हो सकी है। बड़े उद्योगों पर एनजीटी की तलवार लटक रही है। गीडा को लैंड बैंक भी बढ़ाना होगा। 
एसके अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष, चेंबर ऑफ इण्डस्ट्रीज

पिछले पांच वर्षों में देश की सभी प्रमुख फैंचाइजी से गोरखपुर का रूख किया। कई मॉल बनें और अभी भी आधा दर्जन प्रस्तावित है। रेडिसन और लोटस सरीखी  चेन गोरखपुर में फाइव स्टॉर होटल खोल रही हैं। कपड़ों के साथ खाने-पीने की सभी प्रमुख कंपनियां गोरखपुर पहुंच चुकी हैं। लेकिन उद्योगों के आभाव में गोरखपुर सिर्फ ट्रेडिंग सेंटर बनकर रह गया है। यहां से पूंजी दूसरे प्रदेशों में जा रहा है। 

उद्योग नहीं लगाने वाले उद्यमियों का दर्द-
अक्तूबर 2016 में गीडा के सेक्टर 15 में जमीन का आवंटन हुआ था। 1376 वर्ग मीटर भूखंड में इंटरलाकिंग के ईंट का प्लांट प्रस्तावित था। पिछले दिनों प्लांट के लिए मानचित्र गीडा में जमा किया। नवम्बर 2017 में फाइल फायर विभाग को रेफर हुई है। विभाग द्वारा बेवहज की आपत्तियां दर्ज की जा रही हैं। सिंगल बिंडो समाधान की बात सिर्फ कागजों में ही है। 
कमलेश सिंह, उद्यमी

चार साल पहले गीडा ने भू-खंड का आवंटन किया था। जून 2016 में आधा-अधूरा विकास कार्य करने में बाद जमीन पर कब्जा दिया गया। काम कराने की शुरूआत की तभी नोटबंदी हो गई। थोड़ा संभलने में काम शुरू कराया तो पता चला जमीन को समतल करने के लिए 500 ट्राली मिट्टी की आश्वयकता है। मिट्टी नहीं मिल रही है, ऊपर से गीडा प्रशासन ने लाखों के ब्याज की नोटिस भेज दी है। 
एबी सिंह, उद्यमी

गत्ते की फैक्ट्री स्थापित करने के लिए जमीन लिया था। कब्जा लेने गया तो किसी दूसरे ने अवैध कब्जा कर लिया था। काफी दौड़ने के बाद पिछले वर्ष 19 दिसम्बर को जमीन पर कब्जा मिला है। उद्यमी को जब अधूरी सुविधाओं के साथ जमीन का आवंटन होगा तो वह कैसेउद्योग स्थापित करेगा। उद्योग स्थापना के लिए गीडा को सुविधाएं बढ़ानी होगी। 
संजय जायसवाल, उद्यमी

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