राप्ती तट पर लाखों श्रद्धालुओं के उदित होते भगवान सूर्य को अर्घ्य के साथ श्रम, श्रद्धा और आस्था का त्योहार सम्पन्न
Gorakhpur News - गोरखपुर में छठ महाव्रत का त्योहार सामाजिक समरसता का संदेश देता है। व्रति महिलाएं राप्ती नदी के सर्द जल में खड़ी होकर भगवान सूर्य की आराधना कर रही हैं। यह त्योहार संयुक्त परिवार की संस्कृति को बढ़ावा...
गोरखपुर। मुख्य संवाददाता लोक को सामाजिक समरसता का संदेश देता छठ महाव्रत के त्योहार पर शुक्रवार की रात 02 बजे से व्रतियों की अपनी छठ बेदियों पर वापसी होने लगीं थी, धीरे-धीरे जगमग एकला बाध, श्री राम घाट, श्री राज घाट, श्री गोरक्ष घाट, तकिया घाट, श्री हनुमानमढ़ी घाट बसंतपुर, लालडिग्गी, डोमिनगढ़, उधर डोमवा का ढाला, बड़गो में परिवार संग पहुंचे व्रति छठ बेदियों पर बैठ चुके थे।‘पूरब ओरिया से अइलें आदित्य मल/ सुनह हो प्यारी चाची , लाली फूटल बा/ सुनह हो प्यारी भाभी अइल आदित्य मल/ चढाव फल नारियल लाली फूटल बा, सुनह हो प्यारी दादी आइल आदित्य मल। राप्ती नदी के सर्द जल में खड़ी व्रति महिलाएं उदित होते भगवान भुवन भास्कर की राह देख रही हैं। जैसे ही भगवान सूर्य अरुण रश्मियों पर सवार उदित होते पूरा तट जयकार से गूंज और मंगल शंख ध्वनियों से गूंज उठता है। यहां दिल्ली से व्रत करने आई सुनिता कहती हैं कि यह त्योहार गांव-जवार से जुड़े रहने का बड़ा माध्यम है।● एकल परिवार के दौर में संयुक्त परिवार की संस्कृति की सीख भी इस लोकपर्व पर मिलती हैं। श्रीराम घाट पर प्रसाद वितरित कर रही बंगलोर से आई शालिनी कहती हैं कि रोटी-रोजगार के लिए दूर देश रहने वाले लाखों लोग इस पर घर लौटते हैं। सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलता है। व्रति सविता उपाध्याय छठ घाटों पर राजा रंक का भेद मिट जाता है। प्रसाद से लेकर परिधान तक एक तरह का होता है। पवित्रता का पैमाना एक हो जाता है। छूत अछूत का भेद मिट जाता है। सब स्वयं और लोकमंगल की कामना के साथ घरों को परिवार संग वापस लौटते हैं। लोक आस्था के महापर्व छठ की छटा अपने उत्कर्ष पर है। हर घर में मंदिर के जैसी स्वच्छता और हर मन में भगवान भास्कर के प्रति कृतज्ञता का बोध। घाट पहुंचे अधिशासी अभियंता संजय चौहान कहते हैं कि छठ व्रत कठिन साधना का उत्कर्ष है।
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