ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News उत्तर प्रदेश गंगापारलोक साहित्य एवं फिल्मी गीतों ने बढ़ाया सावन का महत्व

लोक साहित्य एवं फिल्मी गीतों ने बढ़ाया सावन का महत्व

सावन का पवित्र माह प्रारंभ हो चुका है। वर्ष का यह महीना जहां देवाधिदेव महादेव भगवान शिव की आराधना के लिए जाना जाता है वहीं यह फिल्मी एवं लोकभाषा के गीतों के लिए भी महत्वपूर्ण है। सावन की रिमझिम...

लोक साहित्य एवं फिल्मी गीतों ने बढ़ाया सावन का महत्व
हिन्दुस्तान टीम,गंगापारFri, 10 Jul 2020 02:59 PM
ऐप पर पढ़ें

सावन का पवित्र माह प्रारंभ हो चुका है। वर्ष का यह महीना जहां देवाधिदेव महादेव भगवान शिव की आराधना के लिए जाना जाता है वहीं यह फिल्मी एवं लोकभाषा के गीतों के लिए भी महत्वपूर्ण है। सावन की रिमझिम फुहारों के बीच गांवों में नीम के पेड़ पर डाले गये झूले पेंग मारकर कजरी गीत गाती हैं वहीं धान के खेतों में रोपाई करते समय लोकभाषा के गीत गाये जाते हैं।

सावन के महीने पर गाये जाने वाले गीतों ने फिल्मी दुनिया में भी गीतकारों के सम्मान को बढ़ाया है। सावन का महीना पवन करे शोर, सावन के झूले पड़े, आया सावन झूम के, रिमझिम गिरे सावन, तेरी दो टकिये की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए जैसे अनगिनत गीतों ने फिल्मी दुनिया का मान बढ़ाया है तो आम जनमानस पर भी अमिट छाप छोड़ा है।

ग्रामीण परिवेश में देखा जाय तो सावन की फुहार में कजरी का महत्व न केवल मानव प्रभावित है बल्कि समस्त जीवजंतु भी सावन की हरियाली में घुमड़ घुमड़ कर घेर रहे बादलों की उमंग से मदमस्त हो जाते हैं। कजरी लोकसाहित्य की एक सशक्त विधा है जो सावन के महीने में गायी जाती है। कजरी लगभग हर क्षेत्र में गाया जाने वाला गीत है लेकिन इसका उदय स्थल मिर्जापुर माना जाता है। दसमी रामनगर का मेला, कजरी मिर्जापुर सरनाम।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें