बाढ़ की मिट्टी में बगैर लागत तराई के खेतों में लहलहा रही सरसों की फसल
Gangapar News - घूरपुर के तराई के किसान बने प्रेरणास्रोत बगैर जोताई, खाद, पानी के सैकड़ों बीघे में

यमुना में बाढ़ के दौरान जहां तराई इलाकों के किसानों की फसले डूब क्षतिग्रस्त हो जाने से किसानों को भारी नुकसान होता है। वहीं घूरपुर तराई इलाकों के किसानों ने यमुना उफान के दौरान जमी मिट्टी में बगैर लागत सरसों की खेती कर नुकसान की भरपाई के साथ ही अच्छा मुनाफा कमा अन्य बाढ़ ग्रस्त तराई इलाकों के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए है। तराई की पूरी की पूरी भूमि पीताम्बरी हो गई है। नदियों के उफान में कीचड़ युक्त मिट्टी जमने से जहां अन्य किसान खेती से तौबा कर लेते है। वहीं घूरपुर के यमुना तराई इलाकों के किसानों के लिए उक्त मिट्टी संजीवनी का काम कर रही है। दो वर्ष पूर्व प्रयोग के तौर पर कंजासा के किसान सतीश निषाद ने यमुना बाढ़ के दौरान जमी नमी मिट्टी में बगैर जोताई के सरसों के बीज पांच बीघे बेजान परती पड़े खेत में बोआई कर दिया तो लोग उनकी हंसी उड़ा रहे थे। लेकिन देखते ही देखते सरसों की फसल लहलहा बालियों से लद गई जिन्हें देख हंसी उड़ाने वाले सतीश के कायल हो गए। जानकारी लेकर धीरे धीरे तराई इलाके के सैकड़ों किसानों ने सरसों की बाढ़ ग्रस्त इलाके की बेजान पड़ी खेतो में बगैर लागत की सरसों की खेती करना शुरू कर दिया। इस वर्ष तो घूरपुर क्षेत्र के तराई के देवरिया, कंजासा, भीटा, सारीपुर, बीकर, मोहनी का पूरा, बिरवल, कैनुआ, अमिलिया, पालपुर, बसवार इसी तरह इस वर्ष लालापुर क्षेत्र के बाढ़ ग्रस्त इलाके मझियारी, महेरा अमिलिया, प्रतापपुर, पडूवा आदि तराई इलाकों के भारी संख्या किसान बेजान पड़ी खेतो में सरसो की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे है।
बाढ़ के दौरान जमी मिट्टी में उर्वरा शक्ति भरपूर
तराई के किसान सतीश निषाद, दिनेश निषाद, राम चन्द्र पटेल, दिनेश मिश्रा बताते है कि नदी में बाढ़ के दौरान विभिन्न तत्वों से होकर बाढ़ ग्रस्त इलाके के खेतों व तराई में जमने वाली मिट्टी में प्राकृतिक उर्वरा शक्ति होती है। जिसमें बोई गई फसल को खाद की जरूरत नहीं पड़ती। खाद से कई गुना अधिक बाढ़ के दौरान जमी मिट्टी में प्राकृतिक उर्वरा शक्ति होती है। इस बीच एक दो बार यदि हल्की बारिश हो गई तो और अच्छी फसल हो जाती है।बताया कि जमी दलदल युक्त मिट्टी में थोड़ी नमी बची होने के दौरान सरसो बगैर जुताई के छीट दिया जाता है। अपने आप फसल तैयार हो जाती है और उत्पादन भी अन्य की अपेक्षा अधिक होता है।
जहां साधन नहीं वहां पर भी अच्छी खेती
यमुना नदी के किनारे खाई और नालो जहां पर जुताई आदि के साधन नहीं पहुंच पाते और ऊच नीच भूमि पर जहां कभी भी उन स्थानों पर कोई भी फसल नहीं की जाती थी वहां पर भी क्षेत्र के किसानों ने सरसो की खेती कर अच्छी खासी कमाई का जरिया बना लिए है।
सरसों की फसल नीलगाय से भी सुरक्षित
सरसो की फसल नीलगायों से भी सुरक्षित रहता है। तराई इलाकों में नीलगायो की संख्या अधिक होती है। किसान बताते है सरसो की पत्ते खारेपन व तीखे होने से सरसो की फसल नीलगाय नहीं चरती है जिससे इनसे भी सुरक्षित है।
सरसों के हरे पत्तों को बेचकर भी कमा रहे मुनाफा
सरसो का उत्पादन कर जहां किसान बाजारों में अच्छी किमातो बेच मालामाल होता है वहीं कुछ किसान सरसो की हरे पत्तों को तोड़कर सब्जी मंडियों में थोक मूल्य पर बेच रोजाना हजारों रुपए कमाई करते है बताते है थोक में दस से पंद्रह रुपए किलो तक बिक जाता है।
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