किसान ने उगाई ऑस्टर मशरूम तो घर में बरसी लक्ष्मी
कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो सितारे भी साथ देते हैं। जनपद में भी एक युवा किसान ने ऐसा ही कुछ अलग करके सभी को चौंका दिया...
कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो सितारे भी साथ देते हैं। जनपद में भी एक युवा किसान ने ऐसा ही कुछ अलग करके सभी को चौंका दिया है। उसने परंपरागत खेती के साथ ही बेकार पड़े भूभाग पर प्रोटीन के प्रमुख स्रोत ऑस्टर मशरूम की खेती करके केवल तीन माह में लागत से दोगुनी कमाई करके सभी को चौंका दिया है।
अरांव ब्लॉक के ग्राम सींगेमई निवासी दीपांशु पुत्र एके सिंह ने ऑस्टर मशरूम की खेती शुरू की है। इसके लिए उसने खाली पड़ी जमीन में 10 बाई 15 फुट का एक डार्क रूम बनाकर ऑस्टर मशरूम की खेती शुरू की है। मशरूम की इस प्रजाति में करीब 47 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। इस कारण इसे शाकाहारी लोगों के लिए इसे काफी स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। आयुर्वेदिक दवा निर्माण करने वाली कंपनियों में ड्राई ऑस्टर मशरूम की काफी मांग है।
आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली कई कंपनियां इसे किसानों से हाथों हाथ खरीद लेती हैं। वर्तमान में देश में ऑस्टर मशरूम के उत्पादन से अधिक मांग है। यही कारण है कि किसानों की यह फसल हाथोंहाथ काफी ऊंची कीमतों पर बिक जाती है। वर्तमान में यह करीब 525 रुपया प्रति किग्रा के रेट से खरीदा जा रहा है।
कृषि विभाग से दीपांशु को पुरस्कृत
दीपांशु प्रगतिशील किसान है। इसने अपने करीब सात एकड़ कृषि फार्म पर इजराइल प्रजाति का केला, थाई एपल बेर, ताईवानी रेंड लेडी पपीता, ड्रेगन फ्रूट के पौधे लगाए हैं। इन प्रयोगों के लिए जिला और मंडल स्तर पर कृषि विभाग दीपांशु को पुरस्कृत भी कर चुका है। इस बार दीपांशु ने कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यान वैज्ञानिक सुभाष शर्मा से मिली जानकारी के बाद ऑस्टर मशरूम का उत्पादन शुरू किया है।
उगाना आसान, मुनाफा भी भरपूर
ऑस्टर मशरूम उगाना काफी सरल है। किसान किसी कृषि संस्थान में दो-तीन दिन का प्रशिक्षण प्राप्त कर इसकी सफल खेती कर सकते हैं। खास बात यह है कि इसे उगाने को बड़े खेत का होना आवश्यक नहीं है। छोटे स्तर पर घर के कमरों में भी यह उगा सकते हैं। दीपांशु ने बताया कि जो किसान ऑस्टर मशरूम उगाना चाहें वे उन्हें निशुल्क प्रशिक्षण दे सकते हैं। दो महीने की इस फसल से उत्पादन लागत का कम से कम दो गुना कमाया जा सकता है।
शीत़़ ऋतु की फसल
ऑस्टर मशरूम कम तापमान और अधिक आर्द्रता में उगाया जाता है। किसान अक्तूबर से मार्च माह तक इसकी खेती कर सकते हैं। इस दौरान 15 दिन के अंतराल पर बुवाई करके किसान कई चरणों की फसल ले सकते हैं। मात्र 5000 रुपये खर्च कर छोटे स्तर पर भी इसकी खेती की जा सकती है।