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समुद्र मंथन की कथा सुनने को उमड़ी श्रोताओं की भीड़

कस्बे में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन शनिवार को कथावाचक पं. सत्येंद्र शास्त्री द्वारा समुद्र मंथन व कृष्णजन्म की विस्तार से कथा सुनाई गई। जिसको सुनने के लिए श्रोताओं की खासी भीड़ रही।...

समुद्र मंथन की कथा सुनने को उमड़ी श्रोताओं की भीड़
हिन्दुस्तान टीम,फतेहपुरSat, 19 Oct 2019 11:27 PM
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कस्बे में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन शनिवार को कथावाचक पं. सत्येंद्र शास्त्री द्वारा समुद्र मंथन व कृष्णजन्म की विस्तार से कथा सुनाई गई। जिसको सुनने के लिए श्रोताओं की खासी भीड़ रही। कथवाचक ने श्रोताओं को सुनाया कि समुद्र मंथन के लिए मन्द्रान्चल पर्वत को मथानी व वासुकी नाग का प्रयोग रस्सी के स्थान पर किया गया। एक तरफ देवताओं व दूसरी ओर असुरों द्वारा समुद्र को मथा गया। सर्व प्रथम कालकूट विष का प्रादुर्भाव हुआ। जिसे किसी के अंगीकार न करने पर भगवान शिव ने स्वीकार किया और कंठ नीला पड़ने पर उनका नाम नीलकंठ पड़ गया। मंथन में वारूणी, ऐरावत, लक्ष्मी, शंख, धनवंतरि सहित चौदह रत्न निकले। पर अमृत को पाने के लिए देवताओं व असुरों में संग्राम छिड़ गया। तभी भगवान विष्णु ने मोहनी रूप धारण कर असुरों को मदिरापान व देवताओं को अमृतपान कराया। कथावाचक श्री शास्त्री जी द्वारा कृष्ण जन्मोत्सव की मोहक झांकी प्रस्तुत की गई। बधाई गीतों के स्वर संगम में श्रोता जमकर झूमें। कथा के केन्द्र में यजमान रामकृपाल सिंह रहे। वहीं क्षेत्र व आसपास के लोगों ने कथाश्रवण का लाभ उठाया।

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