आधा सावन बीता, झूले पड़े न गीत मल्हार
सावन आते ही गली मोहल्लों में रौनक बढ़ जाती थी। लोकगीत, मल्हार और झूलों की पेंगगों में युवतियों व नवविवाहिताओं की भीड़ दिखाई देती थी। लेकिनव कोरोना काल में इस बार बाग बगीचे, गलियां और आंगन सूने...
सावन आते ही गली मोहल्लों में रौनक बढ़ जाती थी। लोकगीत, मल्हार और झूलों की पेंगगों में युवतियों व नवविवाहिताओं की भीड़ दिखाई देती थी। लेकिनव कोरोना काल में इस बार बाग बगीचे, गलियां और आंगन सूने हैं।
दोआबा में सावन और खास कर नागपंचमी का अपना महत्व हैं। गांव से शहर तक त्योहार का उत्साह दिखाई पड़ता हैं। त्योहार मनाने बहनें घर आती थी, झूले पड़ते थे और पंचमी के दिन रंग बिरंगे डंडों से बच्चे गुडियां पीटते हैं। महिलाएं लोकगीत मल्हार गाती थी। नवविवाहिताएं गीत गाते हुए झूलों में पेंग मारती थी। लेकिन कोरोना काल में सब कुछ बदला हुआ है। लेकिन इस बार न बहनें घर आईं न ही त्योहार को लेकर कोई उत्साह है। संक्रमण को लेकर देखते हुए लोग त्योहार की रश्म अदायगी निभाने की तैयारी कर रहे हैं।
बचपन से सावन लगते ही झूला पड़ जाते थे। मोहल्ले भर की बहन बेटियां झूला झूलती थी। लेकिन इस बात न झूला है न ही लोग जुटेंगे। अपने घरों में ही लोग त्योहार बनाएंगे।
रागनी गुप्ता
कोरोना काल में बंदिशों के कारण सारे त्योहार का उत्साह फीका पड़ गया। सावन में झूला व नाग पंचमी के दिन महिलाओं के साथ गाना बजाना बहुत भाता था लेकिन अब सब सूना है।
रिया गुप्ता