प्रवासियों की मजबूरी- बाग और पेड़ के नीचे बसेरा
जिदंगी सलामत रहे, कोई खतरा न रहे। इसको देखते हुए यहां जागरुक प्रवासियों की सतर्कता देखने को मिल रही है। कहीं क्वारंटाइन सेंटर में प्रवासी बाग मेंं तो कहीं पेड़ के नीचे झोपड़ी डालकर बसेरा डाले हैं। बाहर...
जिदंगी सलामत रहे, कोई खतरा न रहे। इसको देखते हुए यहां जागरुक प्रवासियों की सतर्कता देखने को मिल रही है। कहीं क्वारंटाइन सेंटर में प्रवासी बाग मेंं तो कहीं पेड़ के नीचे झोपड़ी डालकर बसेरा डाले हैं। बाहर से आए प्रवासियों के लिए क्वारंटाइन सेंटर पर भले ही सही और पर्याप्त इंतजाम नहीं है फिर भी प्रवासी कमियों को भी भूल रहे हैं।
मिशन अस्पताल के क्वारंटाइन सेंटर में 26 प्रवासी ठहराए गए हैं। शुरूआत से ही यहां पर अव्यवस्थाएं हावी दिखाई दे रही हैं। प्रवासियों की सहूलियत के कोई इंतजाम नहीं है। प्रवासी जहां रह रहे हैं, उन कमरों में पंखे नहीं चलते हैं। ऐसे में प्रवासी हवा लेने को बाहर निकल आते हैं। पानी की भी गंभीर समस्या है। प्रवासियों को पानी के लिए बाहर हैंडपंप के पास आना पड़ता है।
कंपिल क्षेत्र के गांव सवितापुर विहारीपुर के मजरा सिसईया नगला में गुजरात से आए भटटा मजदूरों के परिवार अभी भी गांव से अलग रह रहे है। उन्होंने पेड़ की छाव के नीचे झोपड़ी डाल ली है और अपने को क्वारंटीन कर रखा है। इसी गांव में बाहर से आए पति को उसकी पत्नी ने क्वारंटीन के लिए अलग रहने की व्यवस्था की। वह पति के खाने पीने का भी ध्यान रख रही है। इन मजदूरों के आने से उनके घरों में जगह छोटी पड़ गई। इससे भी समस्या पैदा हो रही है।