
पति नाबालिग तो भी भरण पोषण के लिए केस कर सकती है पत्नी, इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला
संक्षेप: नाबालिगों के विरुद्ध अर्जी उनके अभिभावकों के जरिए से ही दाखिल करना जरूरी है। CRPC की धारा 125 के अनुसार कोई भी सक्षम व्यक्ति अपनी पत्नी या बच्चे (वैध/अवैध) का भरण पोषण करने से इनकार करता है तो वह मजिस्ट्रेट के समक्ष अर्जी दे सकता है, जो तथ्यों पर विचार करने के बाद एक निश्चित राशि प्रदान करेगा।
नाबालिग पति भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि नाबालिग पति से भरण पोषण की मांग करने वाली सीआरपीसी की धारा 125 और 128 की अर्जी विचारणीय हैं। ऐसी अर्जी स्वीकार करने पर कोई रोक नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह ने दिया है। कोर्ट ने बरेली के पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए भरण पोषण की राशि लगभग आधी कर दी है।
बरेली निवासी अभिषेक सिंह यादव का विवाह शीला देवी के साथ 10 जुलाई 2016 को हुआ था। 21 सितंबर 2018 को उनके संतान हुई। विवाद की स्थिति पर पत्नी ने विशारतगंज थाने में दहेज उत्पीड़न की एफआईआर दर्ज कराई। शादी के समय याची की आयु 13 साल बताई गई। जब वह लगभग 16 वर्ष का था, तब पत्नी ने उससे भरण-पोषण की मांग करते हुए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अर्जी दाखिल की। अपर प्रधान न्यायाधीश बरेली ने पत्नी के लिए पांच हजार और बच्चे के लिए चार हजार रुपये प्रतिमाह भरण पोषण का आदेश दिया। याचिका में यह कहते हए चुनौती दी गई कि याची नाबालिग है इसलिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत उसके विरुद्ध कोई अर्जी नहीं दाखिल की जा सकती। यह केवल उसके अभिभावक के माध्यम से ही किया जा सकता है।
यह भी कहा गया कि पत्नी ने बिना किसी उचित कारण याची के साथ रहने से इनकार कर दिया था इसलिए वह सीआरपीसी की धारा 125(4) के अनुसार भरण पोषण पाने की हकदार नहीं है। कोर्ट ने पाया कि सीआरपीसी के अध्याय नौ में यह प्रावधान नहीं है कि नाबालिगों के विरुद्ध अर्जी उनके अभिभावकों के माध्यम से ही दाखिल करना जरूरी है। सीआरपीसी की धारा 125 के अनुसार कोई भी सक्षम व्यक्ति अपनी पत्नी या बच्चे (वैध/अवैध) का भरण पोषण करने से इनकार करता है तो वह मजिस्ट्रेट के समक्ष अर्जी दे सकता है, जो तथ्यों पर विचार करने के बाद एक निश्चित राशि प्रदान करेगा। कोर्ट ने कहा कि याची का हाईस्कूल प्रमाणपत्र फैमिली कोर्ट में उपलब्ध नहीं था।
अर्जी दाखिल होने की तिथि पर वह नाबालिग था लेकिन निर्णय की तिथि तक वयस्क हो चुका था। कोर्ट ने परिवार न्यायालय के निष्कर्षों को बरकरार रखते हुए कहा कि यह मानते हुए कि बालिग होने के बाद पति मजदूर था और उसकी मासिक आय 18 हजार रुपये होगी। इसलिए भरण पोषण राशि घटाकर पत्नी के लिए ढाई हजार रुपये और बच्चे के लिए दो हजार रुपये कर दी। यह कुल साढ़े चार हजार रुपये है, जो पति की आय का 25 प्रतिशत है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि यदि कोई बकाया राशि है तो उसकी गणना उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित राशि के आधार पर की जाएगी।
विवाह अमान्य होने योग्य के आधार पर गुजारा भत्ता से इनकार अनुचित
वहीं एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी पत्नी को केवल इस काल्पनिक आधार पर सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसकी शादी अमान्य होने योग्य है। यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव लोचन शुक्ल ने श्वेता जायसवाल की पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है। इसी के साथ कोर्ट ने प्रधान परिवार न्यायालय चंदौली के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें एक पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के तर्क को विकृत और स्पष्ट रूप से अवैध करार दिया और पत्नी के दावे पर नए सिरे से निर्णय के लिए मामले को वापस भेज दिया।





