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सफर के बाद भी आसान नहीं है आगे की राह

कठिन और लंबे सफर के बाद भी हजारों प्रवासी श्रमिकों की राह आसान होती नहीं दिख रही। पिछले कुछ दिनों में जिले से ही बारह हजार से अधिक प्रवासी मजदूरों को प्रदेश के सबसे बड़े कलेक्शन सेंटर के जरिए अलग-अलग...

सफर के बाद भी आसान नहीं है आगे की राह
हिन्दुस्तान टीम,इटावा औरैयाSat, 23 May 2020 10:35 PM
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कठिन और लंबे सफर के बाद भी हजारों प्रवासी श्रमिकों की राह आसान होती नहीं दिख रही। पिछले कुछ दिनों में जिले से ही बारह हजार से अधिक प्रवासी मजदूरों को प्रदेश के सबसे बड़े कलेक्शन सेंटर के जरिए अलग-अलग जिलों व राज्यों में भेजा गया है। इंतजाम और मदद के हर आश्वासन के बावजूद इन प्रवासी श्रमिकों को चिंता सता रही है। एक ओर तो कोरोनावायरस के संक्रमण की आशंका है तो वहीं दूसरी ओर गांव पहुंचकर यदि लोगों ने विरोध किया तो निश्चित तौर पर उनके लिए बड़ी समस्या सामने आएगी। बिना किसी पैमाने के सामाजिक कलंक के रूप में कोरोना के कारण लोगों के साथ हो रहे बर्ताव और बाहर से लौटे लोगों के साथ हो रहा दुव्र्यवहार इन लोगों की चिंता का कारण है। बिना अखबार और टीवी चैनलों के सीमित सूचनाओं के बल पर अपनों से मिलने की आस लिए मजदूर गांव की ओर पलायन जरूर कर रहे हैं लेकिन निश्चित तौर पर इनकी दुश्वारियां कम होती नहीं दिख रही। एक ऐसे ही परिवार से जब हमने बात की उनकी आंखें भी नम हो गई कि अगर अपनों से मिलकर भी उन्हें सहारा न मिला तो निश्चित तौर पर उनके लिए मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा।

गांव जाकर भी न मिला सहारा तो होगा क्या ये भी चिंता

इटावा। लंबे और कठिन डगर के बाद भी अगर मंजिल दूर नजर आए तो बड़े-बड़े राहगीरों का हौसला टूटने लगता है। परिवार और गांव के 14 सदस्यों के साथ हरियाणा से निकले शंकर प्रतापगढ़ के कोहदऊ ब्लॉक के चंदौका के रहने वाले है। बहू केश कुमारी गांव के ही साथी पूरनमासी उनकी पत्नी मीरा तीन मासूम बच्चे अनिता, अर्चना और आयुष इसके अलावा उनके अन्य रिश्तेदार सियाराम, मनोज ,अक्षय भी उनके साथ हैं। सभी ने करनाल में मेडिकल चेकअप भी कराया उन्हें बकायदा सर्टिफिकेट भी दिया गया, लेकिन चिंता इस बात की सता रही है कि गांव पहुंच कर उन्हें अपनों के बीच जाकर मिलने वाली दुश्वारियां की अग्निपरीक्षा से भी गुजरना होगा। क्योंकि न तो परिवार वाले इस बात के लिए राजी हैं कि वह वापस आकर सीधे घर पहुंचे और न ही मोहल्ले और आस-पड़ोस के लोग इस जानकारी के बाद कि सभी लोग वापस लौट रहे हैं उन्हें चैन से जीने दे रहे। फोन पर हुई बातचीत के बाद शंकर का कहना था कि उन्हें परिवार की चिंता अधिक सता रही है क्योंकि अगर मोहल्ले और पड़ोस के लोगों ने साथ नहीं दिया तो उन्हें परिवार से मिलने के बावजूद दूर रहना होगा। फिलहाल वे इस बात के लिए राजी हो गए हैं कि प्रतापगढ़ पहुंचने के बाद वे सबसे पहले मेडिकल जांच कराएंगे। शटरिंग का बना बनाया व्यापार चौपट होने के बाद अब शंकर के सामने रोजी रोटी की जुगाड़ भी किसी मुसीबत से कम नहीं। बेटा अभी करनाल में है उसकी फिक्र भी उन्हें सता रही है।

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