लॉकडाउन के दौरान वापस लौटे प्रवासियों ने एक बार फिर परदेस की राह पकड़नी शुरू कर दी है। करीब 30 फीसदी प्रवासी रोजगार के लिए दूसरे प्रांतों में जा चुके हैं। जिला प्रशासन ने मनरेगा से रोजगार उपलब्ध कराया था। लेकिन मौजूदा समय में बरसात के दौरान मनरेगा के भरोसे गरीबों का चूल्हा जलना मुश्किल हो गया। उधर, दूसरे प्रांतों से अच्छी पगार देने का वादा हुआ तो प्रवासी फिर जाने लगे हैं।
लॉकडाउन के दौरान बीते माह से प्रवासियों की वापसी शुरू हुई। सर्वाधिक प्रवासी अप्रैल, मई व जून माह में आए। जितना पैसा कमाया था, वह खर्च हो गया। इतना ही नहीं लॉकडाउन के दौरान वाहन बंद होने से प्रवासी हजारों मील पैदल चलकर घरों तक पहुंचे। इस संकट की वजह से प्रवासियों ने तय किया था कि अब वह लोग दोबारा परेदस नहीं जाएंगे। वापस आने पर जिला प्रशासन ने प्रवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मनरेगा से काम शुरू कराए। गांवों में मनरेगा के कार्यों में भीड़ जुटने लगी। सुबह से लेकर शाम तक परिवार चलाने के लिए लोग फावड़ा चलाने लगे। इस दौरान करीब 60 हजार लोग मनरेगा के कार्यों में काम कर रहे थे। इनमें लगभग 16 हजार प्रवासी ही शामिल रहे। अनलॉक में जब स्थितियां सामान्य हुई और रोजगार के साधन फिर से चालू हुए तो प्रवासियों को दिल्ली, मुंबई, सूरत, पूना, अहमदाबाद आदि से बुलाया जाने लगा। बारिश के दौरान मनरेगा के ज्यादातर कार्य भी ठप हो गए। बमुश्किल 19 हजार मजदूरों को ही काम मिल रहा है। इनमें करीब 10 हजार प्रवासियों की संख्या बताई जा रही है। इस तरह से चूल्हा जलना मुश्किल हो गया। उधर, विभिन्न फैक्ट्रियों से प्रवासियों को वापस बुलाने के लिए वेतन बढ़ाने की बात कही गई। फलस्वरूप प्रवासी एक बार फिर परदेसी होने के लिए निकल पड़े। जिले से अब तक करीब 30 फीसदी प्रवासी फिर से वापस हो चुके हैं। रोजाना सैकड़ो की संख्या में प्रवासी बाहर जा रहे हैं।