
धोखाधड़ी साबित होने तक दोषी नहीं ठहरा सकते, हाईकोर्ट का आदेश, टीचर की बर्खास्तगी रद्द
संक्षेप: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि कोई प्रमाणपत्र विभागीय गलती से जारी हो और उसमें लाभार्थी की कोई भूमिका न हो तो इसे अनियमितता ही कहेंगे। ऐसे में जब तक धोखाधड़ी साबित न हो जाए, किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि जब तक धोखाधड़ी साबित न हो जाए, किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि कोई प्रमाणपत्र विभागीय गलती से जारी हो और उसमें लाभार्थी की कोई भूमिका न हो तो इसे अनियमितता ही कहेंगे। कोर्ट ने कहा कि याची के बाबा (पितामह) स्वतंत्रता सेनानी थे। जब याची 16 साल का था तो स्वतंत्रता सेनानी आश्रित प्रमाणपत्र जारी किया गया था लेकिन रजिस्टर में दर्ज नहीं किया गया। बाद में 31 साल की आयु में दोबारा प्रमाणपत्र जारी किया गया। उसे दोहरे प्रमाणपत्र व फ्राड करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया, जिसे याचिका में चुनौती दी गई थी।

कोर्ट ने कहा कि प्रमाणपत्र जारी कराने में याची की कोई भूमिका नहीं है। प्रमाणपत्र धोखाधड़ी से हासिल किया है, इसे साबित नहीं किया गया है। ऐसे में विभागीय गलती के लिए याची को दंडित नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने नवतेज कुमार सिंह की याचिका स्वीकार करते हुए बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी बलिया को तत्काल याची को सहायक अध्यापक पद पर बहाल कर काम करने देने का निर्देश दिया है।
याचिका के अनुसार याची 2021 की सहायक अध्यापक भर्ती में स्वतंत्रता सेनानी आश्रित कोटे में चयनित हुआ और जूनियर बेसिक स्कूल यादव बस्ती, बलिया में नियुक्त किया गया। दस्तावेज सत्यापन में पता चला कि जिस क्रमांक पर याची को को प्रमाणपत्र दिया गया है, डीएम कार्यालय के रजिस्टर में उस पर दूसरे व्यक्ति (हरमीत सिंह) का नाम दर्ज है।
कोर्ट ने कहा कि निर्विवाद रूप से याची स्वतंत्रता सेनानी आश्रित है। उसने एक अप्रैल 2021 को प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया। डीएम कार्यालय के रजिस्टर में संबंधित क्रमांक पर याची का नाम दर्ज न करना लिपिकीय त्रुटि है, इसके लिए याची को धोखाधड़ी का दोषी नहीं माना सकते। उसने नियुक्ति पाने में कोई धोखाधड़ी नहीं की है।

लेखक के बारे में
Yogesh Yadavयोगेश यादव हिन्दुस्तान में डिप्टी न्यूज एडिटर के पद पर हैं।
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