-खेलने-कूदने की उम्र में लगा लिया मौत को गले
ऐसा लगता है कि जिंदगी अपनी कशिश खोती जा रही है। सिर्फ बड़ी उम्र के लोग ही नहीं, कम उम्र के बालक-बालिकाएं भी मौत को गले लगा रहे...
ऐसा लगता है कि जिंदगी अपनी कशिश खोती जा रही है। सिर्फ बड़ी उम्र के लोग ही नहीं, कम उम्र के बालक-बालिकाएं भी मौत को गले लगा रहे हैं। जिस उम्र में बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेलने-कूदने पर ध्यान देते हैं, उस उम्र में बच्चे खुदकुशी जैसा गंभीर कदम उठा रहे हैं। मनोचिकित्सक इसे बच्चों में बढ़ता गुस्सा और तनाव को प्रमुख कारण मान रहे हैं।मंगलवार को नगर क्षेत्र के मोहल्ला साठा में 11 साल की बालिका द्वारा परिजनों की डांट-फटकार से नाराज होकर फांसी के फंदे पर लटककर जान दे दी। इस घटना ने सभी को स्तब्ध कर दिया है। परिजनों के साथ-साथ आसपास के लोग भी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि बालिका ने मामूली डांट-फटकार को इतनी गंभीरता से ले लिया और अपनी जान देने में भी गुरेज नहीं किया। बीते एक साल में यह पांचवा मामला सामने आया है, जिसमें नाबालिग बालक-बालिका ने खुदकुशी की है। 4 नवंबर 2019 को नगर क्षेत्र में एक शिक्षक के डांटने और स्कूल से नाम काट देने की धमकी से आहत 15वर्षीय छात्र ने फांसी लगाकर जान दे दी थी। जुलाई 2019 को कोतवाली देहात क्षेत्र के एक गांव में 12वर्षीय बालिका ने परिजनों से किसी बात पर नाराज होकर कीटनाशक पीकर जान दे दी। इससे पहले 23 मार्च 2019 को नगर के भूड क्षेत्र में 16वर्षीय युवक ने फांसी लगाकर जान दे दी। इससे पहले 6 अगस्त 2018 को नरौरा क्षेत्र के गांव उदयगढ़ी में कक्षा-4 की छात्रा ने अपनी झोपड़ी में बने कमरे में फांसी लगाकर जान दे दी। ऐसी घटनाओं के सामने आने से लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि जीवन का संघर्ष शुरू होने से पहले ही हार मानकर मौत को गले लगा लेने के पीछे क्या वजह है? अधिकांश मामले पुलिस तक पहुंचने की बजाय दबकर रह जाते हैं।बच्चों में बढ़ता तनाव और गुस्सा प्रमुख वजहमनोचिकित्सक डा.नवीन उपाध्याय का कहना है कि बच्चों की खुदकुशी के पीछे खासतौर से तनाव और गुस्सा प्रमुख वजह है। परिजनों को शुरू से ही बच्चों के व्यवहार को समझना चाहिए। बच्चों को अधिक डांटने-फटकारने की बजाय उन्हें उनकी गलतियां समझानी चाहिए। आत्मीयता और भावनात्मक रूप से जुड़कर ऐसी घटनाओं को टाला जा सकता है।