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पहले से गैरइस्लामी अमल था एक साथ तीन तलाक: डा. फुरकान

चांदपुर रोड स्थित मदरसा जामिअतुल कुरआन वस्सुन्नाह अलखैयरिया बिजनौर में तीन तलाक के मुद्दे पर एक भव्य कान्फ्रेंस का आयोजन हुआ। इसमें दूरदराज से आए सैकड़ों आलिमों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम में वक्ताओं...

पहले से गैरइस्लामी अमल था एक साथ तीन तलाक: डा. फुरकान
हिन्दुस्तान टीम,बिजनौरMon, 09 Oct 2017 09:52 PM
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चांदपुर रोड स्थित मदरसा जामिअतुल कुरआन वस्सुन्नाह अलखैयरिया बिजनौर में तीन तलाक के मुद्दे पर एक भव्य कान्फ्रेंस का आयोजन हुआ। इसमें दूरदराज से आए सैकड़ों आलिमों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम में वक्ताओं ने एक मजलिस की तीन तलाक को एक ही तलाके रजई साबित होना बताया। और मुस्लिम समाज में महिलाओं पर तलाके बिदअत और हलाला जैसे संगीन जुर्म का जिम्मेदार शिक्षा का अभाव होना बताया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. फुरकान अली ने कहा कि एक मजलिस की तीन तलाक एक ही तलाके रजई साबित होती है और सबसे पहले इसका फतवा अल्लाह के रसूल मोहम्मद स.अ. वस. ने दिया है और इसी फतवे के मुताबिक उलेमा-ए-हिन्द फतवा देते चले आये हैं और बहुत से मुल्क़ों ने इसी को अपना क़ानून बना लिया है। यह बड़ी खुशी की बात है कि बीती 22 अगस्त उच्चतम न्यायालय भारत ने भी इसी के मुताबिक अपना फैसला सुनाया है कि एक साथ तीन तलाक देना बातिल है, जुल्म है। इसलिए अब एक साथ तीन तलाक़ देना जो पहले से गै़र इस्लामी अमल था अब गै़रकानूनी भी हो गया है। डॉ. मदनी ने कहा कि कुरआन व हदीस को मानने वाले मुसलमानों को बिना किसी झिझक, डर, खौफ़ के पूरे यकी़न के साथ इस पर अमल करना चाहिए। अपने दीन पर अमल करने के बारे में किसी भी आलोचना करने वाले की हरगिज़ परवाह नहीं करनी चाहिए। दीनी अहकाम पर अमल के मामले में सिर्फ अल्लाह से डरना चाहिए और किसी से नहीं। ये भी सभी को मालूम है कि कोर्ट का ये ऐतिहासिक फैसला मौजूदा केन्द्र सरकार की भरपूर कोशिशों का नतीजा है, विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी की मुसलमान मज़लूम औरतों की हिमायत, मदद की कोशिशों का नतीजा है। इसलिए हम प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले पर धन्यवाद करते हैं। यह फैसला शरीयत में कोई हस्तक्षेप नहीं करता है बल्कि शरीअत के मुताबिक और मुआफिक़ है। कार्यक्रम कारी जुनैद की तिलावते कुरआन से प्रारम्भ हुआ। संचालन मौलाना इलयास कासमी एवं अध्यक्षता पैगाम-ए-अमन कमेटी के संरक्षक डा. फुरकान मेहरबान अली अल-मदनी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में जमाअते उलेमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सुहैब कासमी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में मुफ़्ती आसिफ नदवी, डा. असलम क़ासमी, मौलाना अब्दुल कय्यूम, मौलाना शौकीन, मौलाना मुजाहिद मदनी, मौलाना कासिम मदनी, मौलाना आमिर, डॉ. अब्दुल्ला साबिर जौनपुरी, मौलाना अन्ज़र का़समी, मौलाना मेराज, मौलाना शाहनवाज़, मौलाना शहज़ाद, मौलाना मौहम्मद मुजाहिद, क़ारी फै़सल मुजाहिद, मौलाना अयाज़, हाफ़िज़ अफ़जाल मीरापुर, मुफ्ती इकराम, का़री मुज़फ्फर, मौलाना रिज़वान नदवी, पैगाम अमन कमेटी के अध्यक्ष शहबाज़ अंसारी, खान जफ़र सुल्तान आदि बुद्धिजीवियों ने अपने विचार रखे।

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