एक गांव ऐसा जहां प्रधान के बच्चे तक निरक्षर
जहां सूबे की सरकार पढ़ाई को लेकर पानी की तरह पैसा बहा रही हैं वहीं जिले में एक ऐसी ग्राम पंचायत भी है कि ग्राम प्रधान के बच्चे तक निरक्षर...
जहां सूबे की सरकार पढ़ाई को लेकर पानी की तरह पैसा बहा रही हैं वहीं जिले में एक ऐसी ग्राम पंचायत भी है कि ग्राम प्रधान के बच्चे तक निरक्षर हैं। ग्राम प्रधान भी सिर्फ हस्ताक्षर बनाने तक ही सीमित हैं। ग्राम प्रधान के पिता जी लगातार तीन बार प्रधान रह चुके हैं। अब बेटा प्रधान है।
सरकारे आयी और गयी, लेकिन इस ग्राम पंचायत का किसी ने ध्यान तक नहीं दिया। यह गांव आदिवासीयों की तरह जीवन यापन करता हैं।
अखबारों में खबर प्रकाशित होने पर शिक्षा विभाग ने फजीहत से बचने को हवाई स्कूल इस ग्राम पंचायत में तो दे दिया। लेकिन शिक्षक सप्ताह में एक दो दिन जागकर अपने काम को इति श्री दे देते हैं।
मौहम्मदपुर देवमल विकास खंड़ की ग्राम पंचायत इच्छवाला 274 मतदाताओं की ग्राम पंचायत हैं।इस गांव की आबादी छ:सौ के करीब हैं। वर्तमान प्रधान गुलशनव्वर उर्फ लस्कर के निरक्षर आठ लड़के व एक बेटी इस ग्राम पंचायत की कथा को उजागर करते हैं।
ग्राम प्रधान के पिता मौहम्मद अख्तर पूर्व के वर्षो में तीन बार लगातार प्रधान रह चुके हैं। उनका कहना है कि ग्राम पंचायत का किसी सरकार ने भला नहीं किया हैं। हम तो अपने हान पर जी रहे हैं। गांव में पक्के मकान,पक्का रास्ता, सरकारी सिविघाओं से भी वंचित हैं।
प्रशासन हमेशा उनसे सौतेला व्यवहार करता आ रहा है। गांव में शौचालय तक नहीं हैं।ग्राम प्रधान के बेटे हैदर अली सद्दाम ने बताया कि उन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिला क्योकिं उनके गांव में पढ़ने के लिये कोई व्यवस्था सरकार नही करा पायी। पूरे गांव में एक बच्चा शाहिद पुत्र लताफत दसवीं कक्षा तक पढ़ा वो भी उत्तराखंड़ में अपने रिश्तेदारी में रहकर। खबर प्रकाशित होने पर शिक्षा विभाग ने हवाई स्कूल इस गांव में स्थापित कराया। लेकिन शिक्षक पुष्पेन्द्र व जय सिंह पर ग्रामीणो का आरोप है कि ये शिक्षक कभी कभी आते हैं।
ग्रामीणो के इस आरोप की सत्यता को पांचवी कक्षा का छात्र श्याम अली पुत्र अहमद मियां का कहना है कि वह नाम तक नही लिख पाता है क्योकि उसे गुरुजी ने सिखाया नही हैं। ये लोग झोपड़ियो में टपकती ओंसों के बीच ठिठुरती जिदगी व्यतीत कर रहे हैं। गांव में सरकारी सुविधा के नाम पर दो सरकारी नल हैं, लेकिन एक नल काफी समय से खराब हैं। कुल मिलाकर यह ग्राम पंचायत सरकारी दावों को आईना दिखा रही हैं ।
जियो तो जिये कैसे?ग्रामीणों का कहना है कि सरकार के नुमाइदे हमें कुछ नही समझते। सरकार के नुमाइदे हमे हडकाने के अलावा हमारी मदद तक नहीं करते।
मीड़िया को अपनी समस्या बताने पर हमे उलटा हड़काते हैं।झोंपड़ियो में रहती हैं जिंदगीसरकार पक्के मकान के दावे करती है, लेकिन सरकार की पोल खोलती ये ग्राम पंचायत सरकार व प्रशासनिक कार्यशैली पर सवलिया निशान लगाती है। यहां के ग्रामीण झोंपड़ियों में ही जिंदगी बसर करते हैं।