गंगा घाटों पर उमड़ा लोगों का सैलाब, पुरखों को किया पिंडदान
पितृ विसर्जन पर्व बुधवार को जनपद में धूमधाम से मनाया गया। पतित पावनी मां गंगा, तालाबों, नदियों के घाटों पर भारी तादात में पहुंचे लोगों ने पुरखों को पिंडदान कर उनकी आत्मा की शांति व सुख समृद्धि की...
पितृ विसर्जन पर्व बुधवार को जनपद में धूमधाम से मनाया गया। पतित पावनी मां गंगा, तालाबों, नदियों के घाटों पर भारी तादात में पहुंचे लोगों ने पुरखों को पिंडदान कर उनकी आत्मा की शांति व सुख समृद्धि की कामना की। इसी के साथ ही एक पखवारे से चला आ रहा पितरपख का महीना समाप्त हो गया।
कालीन नगरी से गुजरी वरुणा, मोरवा नदी के घाटों धौरहरा, उमरी समेत तालाबों व जलाशयों पर बुधवार को सुबह पहुंचे लोगों ने स्नान, दान करने के बाद पिंडदान किया। इस दौरान पुरखों की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मणों व गरीबों में लोगों ने दान भी किया। इसी तरह गोपीगंज स्थित रामपुर, गुलौरी घाट, औराई क्षेत्र के भोगांव गंगा घाटों पर बहुतायत संख्या लोगों ने पहुंच कर पतित पावनी मां गंगा में स्नान आदि करने के बाद ब्राह्मणों से पूजा पाठ कराने के बाद धार्मिक कर्मकांड किया।
मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष महीने में मृत पुरखों को जल चढ़ाने के बाद पिंडदान करने से उनकी भटकती आत्मा को शांति मिलने के साथ ही स्वर्गलोक प्राप्त होता है। जबकि पुरखों के आशीष से पिंडदान करने वाले परिजनों की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
नाई व पंडित जी की रही डिमांड
पितृ पक्ष पर्व पर बुधवार को पिंडदान करने वालों को सिर मुंडन के लिए नाई जबकि पूजा पाठ के लिए पंडित प्राप्त करने में मोटी रकम खर्च करनी पड़ी। आलम यह रहा कि नाई व पंडित जी ढूढ़े से नहीं मिले। कई लोग सिर मुढ़ाने के लिए बाजार की ओर रुख किए और उसके बाद घाटों के किनारे पहुंच कर पिंडदान किया। दाड़ी व सिर मुड़वाने के सौ रुपये तक खर्च करने पड़े।
तिथियों के फेर में दो दिन मनाया गया पर्व
तिथियों व ग्रह, नक्षत्र के चाल के फेर में इस वर्ष पितृ विसर्जन का पर्व जनपद में दो दिन मंगलवार व बुधवार को मनाया गया। ब्राह्मणों के अनुसार मंगलवार को पितृ विसर्जन का शुभ मुर्हूत दिन में 11 बजे से शुरू हुआ, जो बुधवार को 11 बजे तक रहा। इसी के कारण कुछ लोगों ने मंगलवार को ही पिंडदान किया था, जबकि अधिकांश ने उदयातिथि को मानते हुए बुधवार को पर्व मनाया।