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क्रांति की अमर गाथा का गवाह है यह बरगद का पेड़

उस वक्त बरगद का वह पेड़ भी युवा था, उन हजारों नौजवानों की तरह जो आजादी की खातिर सिर पर कफन बांधे शहादत की राह पर चल पड़े थे। शायद उस बरगद का मन भी तड़प उठा था गुलामी से। कमिश्नरी के इस बरगद के पेड़...

क्रांति की अमर गाथा का गवाह है यह बरगद का पेड़
हिन्दुस्तान टीम,बरेलीSun, 13 Aug 2017 05:26 PM
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उस वक्त बरगद का वह पेड़ भी युवा था, उन हजारों नौजवानों की तरह जो आजादी की खातिर सिर पर कफन बांधे शहादत की राह पर चल पड़े थे। शायद उस बरगद का मन भी तड़प उठा था गुलामी से। कमिश्नरी के इस बरगद के पेड़ ने क्रांति की मशाल थामे वीर सपूतों को अपनी छांव दी थी और हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में अमर हो गया। बरगद की इन्हीं शाखाओं पर ब्रितानिया हुकुमत ने 257 क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया था। आज भी वहां शहीद स्तंभ है जो उस शहादत को याद दिलाता है। आजादी की पहली लड़ाई में 1857 में बरेली समेत पूरा रुहेलखंड क्रांति की आग में सुलग गया था। नवाब खान बहादुर खान के साथ पं. शोभाराम समेत अन्य क्रांतिकारियों ने ब्रितानिया हुकुमत की नींव हिला दी थी और बरेली को कुछ समय के लिए आजादी दिला दी थी। करीब 10 माह तक बरेली अंग्रेजी हुकुमत से मुक्त रहा। लेकिन अंग्रेजों ने शहर में प्रवेश करने के साथ ही क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया था। खान बहादुर खान को कोतवाली के पास फांसी दी गई जबकि 257 क्रांतिकारियों को इस बरगद के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया गया था। क्रांति की अमिट छाप इस बरगद की हर शाख और पत्ते पर उकर आई थी। आज वह पेड़ तो नहीं रहा लेकिन उसकी जड़ों में खड़ा शहीद स्तंभ उस क्रांति की याद दिलाता है।

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