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इस्लाम में ताजिया बनाना और फूल चढ़ाना नाजायज

मोहर्रम में ताजियादारी पर एक बार फिर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर आला हजरत के फतवे और उलेमा की तकरीर के वीडियो भी वायरल किए जा रहे हैं। मुखालफत में तर्क यह है कि मौत पर मातम हराम है।...

इस्लाम में ताजिया बनाना और फूल चढ़ाना नाजायज
हिन्दुस्तान टीम,बरेलीThu, 13 Sep 2018 08:17 PM
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मोहर्रम में ताजियादारी पर एक बार फिर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर आला हजरत के फतवे और उलेमा की तकरीर के वीडियो भी वायरल किए जा रहे हैं। मुखालफत में तर्क यह है कि मौत पर मातम हराम है। लिहाजा ढोल-नगाड़े बजाकर या तख्त-ताजिये उठाकर मातम करना, ताजिये बनाना, फूल चढ़ाना सब नाजायज है।

मोहर्रम का महीना शुरू होते ही ताजिये को लेकर बहस शुरू हो गई है। मस्जिदों में मोहर्रम की अहमियत पर रोशनी डाली जा रही है। फाजिले बरेलवी इमाम अहमद रजा खां (आला हजरत) के लिखे फतवे को भी आम किया जा रहा है। ताजियेदारी से बचने की अपील हो रही है। इस मसले पर व्हाट्सएप के जरिये भी एक-दूसरे को मैसेज भेजे जा रहे हैं। ज्यादातर मैसेज में ताजियेदारी को हराम बताया जा रहा है। बरेलवी मसलक के उलेमा ने भी सुन्नी मुसलमानों को जुलूस में ढोल-नगाड़ा बजाने और ताजिया निकालने से बचने की हिदायत दी है। उलेमा ने कहा कि ताजिये पर मन्नत मांगना, मेहंदी चढ़ाना और चढ़ा हुआ खाना भी खाना नाजायज है। उलेमा ने कहा कि मोहर्रम में मातम करना भी इस्लाम में जायज नहीं है।

यजीदियों का काम है ढोल बजाना

मुफ्ती दरगाह आला हजरत के मुफ्ती मुहम्मद गुलाम मुस्तफा रजवी ने बताया कि शरीयत में ताजियेदारी को नाजायज करार दिया गया है। ढोल-ताशे से खुशी जाहिर होती है। इस्लाम में इसे भी मना फरमाया गया है। आला हजरत ने फतवा जारी करके ताजियेदारी को हराम करार दिया था। मोहर्रम में सही तरीका यह है कि रोजा रखें, फातिहा दिलाए, इमाम हुसैन को याद करें और गरीबों की मदद करें।

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