लोकसभा चुनाव 2019 : रुहेलखंड में नहीं चमक पाई बाहुबलियों की राजनीति
राजनीति में बिहार से लेकर पूर्वांचल तक बाहुबलियों ने खूब बल दिखाया है। मगर रुहेलखंड में उनका बल काम नहीं आया। यही कारण है कि जिला जेल में बंद अतीक अहमद ने अंतिम समय में बरेली से चुनाव लड़ना सही नहीं...
राजनीति में बिहार से लेकर पूर्वांचल तक बाहुबलियों ने खूब बल दिखाया है। मगर रुहेलखंड में उनका बल काम नहीं आया। यही कारण है कि जिला जेल में बंद अतीक अहमद ने अंतिम समय में बरेली से चुनाव लड़ना सही नहीं समझा। पप्पू गिरधारी ने बरेली से मेयर का चुनाव लड़ा। जनता ने उनमें विश्वास नहीं दिखाया। पप्पू तीसरे नम्बर पर रहे। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बहेड़ी से पप्पू की पत्नी बैजयंती माला ने महान दल से चुनाव लड़ा। वहां भी हार ही मिली। इसके अलावा निगोही से चंद्रसेन, उसकी पत्नी हीराकली को भी जीत नहीं मिली। वहीं बदायूं से सुरेश प्रधान और सेंट्रल जेल में बंद डॉन बबलू श्रीवास्तव को भी निराश ही हाथ लगी। इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण यही माना जाता है कि बाहुबली नेता को कभी भी रुहेलखंड के लोगों ने पसंद ही नहीं किया।
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सुरेश-राजू को भी नहीं मिला साथ
बदायूं में सुरेश प्रधान ने राजनीति चमकाने का खूब प्रयास किया। सुरेश ने महान दल से विधानसभा का चुनाव भी लड़ा। बरेली के हिस्ट्रीशीटर राजू शमीम ने पत्नी सरोज किन्नर को चुनावी समर में उतारा। सरोज ने मेयर और विधानसभा का चुनाव भी लड़ा। दोनों बार जनता ने उसे नकार दिया।
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डॉन बबलू भी रह गया खाली हाथ
सेंट्रल जेल में बंद डॉन ओमप्रकाश श्रीवास्तव उर्फ बबलू का मन विधायक-सांसद बनने को बेताब रहा है। बबलू ने बरेली और बदायूं के साथ ही आजमगढ़ में भी हाथ पैर मारे। उम्मीद थी कि कोई पार्टी उन्हें टिकट दे देगी। जब बात नहीं बनी तो बबलू ने सीतापुर लोकसभा क्षेत्र से अपना दल के टिकट पर ताल ठोकी लेकिन हार गए। पिछले विधानसभा चुनाव में भी बबलू ने टिकट के लिए हाथ पैर मारे थे।
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अतीक ने मन बनाया पर टिकट नहीं मिला
पूर्व सांसद अतीक अहमद चुनावी माहौल में ही बरेली की जिला जेल में शिफ्ट किये गए थे। अतीक के बरेली आते ही उनके खास सिपाहसलारों ने भी बरेली में डेरा डाल लिया। जातीय आकंड़ों का ध्यान रखते हुए अतीक ने बरेली से चुनाव लड़ने का मन बनाया। जनसत्ता पार्टी के नेता अक्षय प्रताप सिंह भी अतीक से मिलने जेल आये। मगर किसी पार्टी ने अतीक को बरेली से टिकट नहीं दिया। इसका बड़ा कारण बरेली की जनता भी रही, जिसने आपराधिक छवि के लोगों को कभी सत्ता सुख नहीं भोगने दिया।
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न चंद्रसेन जीता और न हीराकली
शाहजहांपुर के चंद्रसेन ने पूरे मण्डल में किडनैपिंग किंग के रूप में अपनी पहचान बनाई थी। एक वक्त था जब चंद्रसेन नेताओं के लिए वोटों का इंतजाम करता था। सफेदपोशी की समझ आने पर चंद्रसेन ने निगोही विधानसभा से नामांकन करा दिया। जातीय समीकरण उसके पक्ष में था। मगर शहीदों के जिले शाहजहांपुर ने चंद्रसेन को जीतने नहीं दिया। चंद्रसेन ने जेल में रहने के दौरान अपनी पत्नी हीराकली को 2007 के विधानसभा चुनाव में निगोही से उतारा। जनमत इस बार भी चंद्रसेन परिवार से दूर ही रहा। बाद में चंद्रसेन पुलिस नकाउंटर के दौरान लखनऊ में मारा गया।