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प्रीमेच्योर बच्चों को इलाज के लिए चाहिए मां की कोख

नवजात बच्चों और खासकर प्रीमेच्योर शिशुओं (9 माह से पहले पैदा हुए) के इलाज में कई तरह की सावधानी बरतनी चाहिए। नवजात के शरीर की हलचल से यह पता किया जा सकता है कि वह क्या चाहता है या फिर उसे कोई तकलीफ...

प्रीमेच्योर बच्चों को इलाज के लिए चाहिए मां की कोख
वरिष्ठ संवाददाता,बरेलीSun, 20 Oct 2019 12:05 PM
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नवजात बच्चों और खासकर प्रीमेच्योर शिशुओं (9 माह से पहले पैदा हुए) के इलाज में कई तरह की सावधानी बरतनी चाहिए। नवजात के शरीर की हलचल से यह पता किया जा सकता है कि वह क्या चाहता है या फिर उसे कोई तकलीफ तो नहीं है। कई अत्याधुनिक मशीनें भी आ गई हैं जिनकी मदद से नवजात बच्चों का इलाज बेहतर तरीके से हो सकता है। लेकिन सबसे जरूरी है, प्रीमेच्योर बच्चों को मां की कोख जैसा माहौल देना। चिकित्सा विज्ञान इस दिशा में तेजी से काम कर रहा है। शनिवार को आईएमए में एनएनएफ यूपी निओकान-2019 का आयोजन किया। डेवलपमेंटली सपोर्टिव केयर (डीएससी) फाउंडेशन फार न्यूबार्न एंड चिल्ड्रेन की दो दिवसीय कार्यशाला में डाक्टरों और स्टाफ को विशेषज्ञ डाक्टरों ने कई महत्वपूर्ण जानकारी दी।

डायरेक्टर अमिताव सेनगुप्ता ने बताया कि गर्भ में पल रहे बच्चे का रूटीन बिलकुल तय होता है और उसमें किसी प्रकार का व्यवधान नहीं होता। लेकिन जब बच्चा 7 या माह में, समय पूर्व पैदा हो जाता है तो स्थितियां बदल जाती है। ऐसे में जरूरी है कि इलाज के समय उसे मां की कोख जैसी स्थिति दी जाए जिसमें वह खुद को अधिक सहूलियत में पाता है। डीएससी की यही कोशिश है कि अस्पतालों में चल रहे एनबीएसयू को बच्चों के अनुकूल बनाया जा सके। इससे शिशु मृत्यु दर में काफी हद तक कमी आएगी। वर्कशाप में वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डा. अतुल अग्रवाल, डा. रवि खन्ना, डा. गिरीश अग्रवाल आदि का सहयोग रहा।

नवजात को बेहोश करने की जरूरत नहीं

डा. आशीष जैन ने बताया कि अब वेंटिलेटर मशीनों में भी आधुनिक तकनीकी आ गई है। पुरानी वेंटिलेटर मशीनें महंगी होने के साथ ही अधिक संख्या में प्रशिक्षित स्टाफ की जरूरत होती है। नई मशीनें न केवल कीमत में कम है, इनका उपयोग भी आसान है। नवजात को बेहोश करने की जरूरत नहीं है और नाक में एक छोटी सी पाइप के जरिये उसे आक्सीजन सप्लाई की जा सकती है। इस मशीन का फायदा सरकारी अस्पतालों के एसएनसीयू में हो सकता है जहां हर जगह वेंटिलेटर और आईसीयू की सुविधा नहीं है।

नवजात को चाहिए घोंसले जैसा बेड

डा. सुशील श्रीवास्तव ने नवजात की देखभाल के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि नवजात बच्चे खासकर प्रीमेच्योर शिशुओं को घोंसले जैसा बिस्तर मिलना चाहिए। उसके दोनों तरफ कोमल कपड़े या रूई की बाउंड्री जैसी बना दें और नीचे पैरों की तरफ भी ऐसा ही करें जिससे वह अंग्रेजी के यू अक्षर की तरह हो जाए। साथ ही नवजात को खेलने के लिए बेहद मुलायम रेशे वाले खिलौने जैसे आक्टोपस दें। प्रीमेच्योर शिशुओं के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए यह जरूरी है।

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