भारतीय किचन के मसाले डायरिया की रोकथाम में एंटीबायोटिक से बेहतर
भारतीय किचन के प्रमुख मसालों में शामिल अजवायन, दालचीनी और तुलसी डायरिया करने वाले बैक्टिरिया को मारने में कई प्रमुख एंटीबायोटिक से ज्यादा असरदार पाई है। शोधकर्ता का कहना है कि यह रिसर्च जीवाणुओं में...
भारतीय किचन के प्रमुख मसालों में शामिल अजवायन, दालचीनी और तुलसी डायरिया करने वाले बैक्टिरिया को मारने में कई प्रमुख एंटीबायोटिक से ज्यादा असरदार पाई है। शोधकर्ता का कहना है कि यह रिसर्च जीवाणुओं में एंटीबायोटिक प्रतिरोध की वैश्विक समस्या से जूझ रहे वैज्ञानिकों के लिए यह शोध एक आशा की किरण जैसी है। हर्बल औषधियों पर 9 साल की रिसर्च के दौरान करीब 200 नमूनों के अध्ययन में यह बात निकलकर सामने आई है डायरिया करने वाले बैक्टिरिया पर यह हर्बल औषधियां ज्यादा प्रभावी पाई गई।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के प्रधान वैज्ञानिक और जीवाणु विज्ञानी डा. भोजराज सिंह ने बताया कि जीवाणुओं का एंटीबायोटिक प्रतिरोधी होना मानव स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है। एंटीबायोटिक बेअसर होने के बढ़ते मामलों को देखकर डा. भोजराज और उनकी टीम ने टीम ने हर्बल औषधियों पर शोध शुरू किया। इसमें अजवायन, दालचीनी, तुलसी, लेमन ग्रास जैसे कई पौधे शामिल थे। प्रयोगशाला में शोध के दौरान पाया कि इन हर्बल पौधों का तेल उन जीवाणुओं से लड़ने में कामयाब रहा जो साधाराण एंटीबायोटिक से प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर चुके थे। आईवीआरआई विशेषज्ञों का सुझाव है कि अजवेन के एक फंकी (5-10 ग्राम) को दिन में दो बार पुरानी दस्त से पीड़ित जानवरों के लिए संस्तुत किया गया है। यह खुराक बीमार जानवरों को अपनी सामान्य दवाओं के साथ दिया जा सकता है।
बछड़ों के लिए सबसे खतरनाक है डायरिया
प्रधान वैज्ञानिक डा. भोजराज सिंह ने बताया कि उनकी रिसर्च का मकसद एंटीबायोटिक दवाओं पर निर्भर होने के बजाय जीवाणु के विकास को रोकने के लिए वैकल्पिक दवाइयों की तलाश करना था। इसमें सबसे महत्वपूण था डायरिया, जिसका तत्काल इलाज न होने पर यह जीवन के लिए खतरनाक हो जाता। डा. सिंह ने कहा कि काफ डायरिया जानवरों के बछड़ों की मौत का एक बड़ा कारण है और उनके मरने से किसानों को आर्थिक रुप से नुकसान उठाना पड़ता है। इस शोध को अंतर्राष्ट्रीय जरनल ने प्रकाशित भी किया है।
डायरिया के 199 नमूनों की जांच में दिखी उम्मीद
डा. भोजराज सिंह की अगुआई में अनुसंधान टीम ने विभिन्न स्रोतों से 199 डायरिया पैदा करने वाले बैक्टीरियल नस्लों को इकट्ठा किया। इसमें भैंस, मवेशी, सुअर, बकरी, पपी और इंसानों के बैक्टिरिया नमूने शामिल हैं। इसका 25 तरह की एंटीबायोटिक और आठ हर्बल औषधीय तेलों के साथ बैचों में परीक्षण किया। शोध में पाया गया कि 60 फीसदी बैक्टिरिया के स्ट्रेन इंपीपीनम, जेनेमिसिन और कॉलिस्टिन सहित पारंपरिक एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी पाए गए पर औषधीय तेलों ने सभी स्तरों के बैक्टिरिया के विकास को रोका।
अजवायन का तेल सबसे ज्यादा प्रभावी
शोध में अजवायन का तेल सबसे ज्यादा कारगर पाया गया है। यह सभी 199 बैक्टिरिया स्ट्रेन की वृद्धि को रोकने में कामयाब रहा। इसके बाद दालचीनी तेल ने 96 फीसदी बैक्टिरिया स्ट्रेन और फिर तुलसी (तुलसी) का का तेल रहा 9 5.3 फीसदी मामलों में असरदार रहा। अजवायन के फूल का तेल 87.1 प्रतिशत प्रभावी मिला। टीम ने आवश्यक तेल के एक मिलीग्राम मात्रा का का उपयोग किया। साथ ही अब वैज्ञानिक ने आवश्यक तेलों की मात्रा पर अध्ययन का सुझाव दिया है ताकि जानवर में बिना किसी विशेष दुष्प्रभाव के बिना रोगों का इलाज किया जा सके। डा. भोजराज ने कहा कि एंटीबायोटिक में तो दवा की मात्रा तय है ताकि इसका दुष्प्रभाव न पड़े पर हर्बल तेलों के लिए मात्रात्मक डेटा उपलब्ध नहीं है।
एंटीबायोटिक हुई फेल तो अजवायन ने बचाई बछड़े की जान
डा. भोजराज सिंह ने बताया कि पिछले साल, एक स्थानीय पशु फार्म के मालिक ने मदद के लिए आईवीआरआई से संपर्क किया। पशुपालक के कई बछड़े उल्टी दस्त का शिकार थे और एंटीबायोटिक दवाओं के निर्धारित खुराक के बाद भी सही नहीं हो रहे थे। आईवीआरआई विशेषज्ञों ने किसान को एंटीबायोटिक खुराक पर कटौती करने और अजवायन बछड़ों को खिलाया और चौंकाने वाला परिणाम आया। जो बछड़ा एंटीबायोटिक से सही नहीं हो रहा था वह अजवाइन की खुराक से सही हो गया।