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ला मैं तेरा वेद पढ़ूं, तू मेरी कुरान समझ...

तल्ख हवाएं जब भी चलती हैं, अपनी कलुषिता को सांस बनाकर दिलों में गुबार बनने की कोशिश करती हैं, तब, हर बार और हमेशा ऐसी ही सुखद बूंदे उनके आवेग को ठंडा कर देती हैं। सियासत के चूल्हे पर गंगा-जमुनी तहजीब...

ला मैं तेरा वेद पढ़ूं, तू मेरी कुरान समझ...
वरिष्ठ संवाददाता,बरेलीTue, 08 Oct 2019 02:53 PM
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तल्ख हवाएं जब भी चलती हैं, अपनी कलुषिता को सांस बनाकर दिलों में गुबार बनने की कोशिश करती हैं, तब, हर बार और हमेशा ऐसी ही सुखद बूंदे उनके आवेग को ठंडा कर देती हैं। सियासत के चूल्हे पर गंगा-जमुनी तहजीब को जब भी परखा गया, हमेशा कुछ ऐसा जरूर हुआ जिसने उस आग को बुझा दिया। माडल टाउन दशहरा मेला ग्राउंड में बेहद तल्लीनता से मुस्लिम परिवार रावण के कुनबे का पुतला बना रहा है और साथ ही गढ़ रहा है आपसी सौहार्द की तस्वीर।

यही खूबसूरती है गंगा-जमुनी तहजीब की। 45 बरस से अधिक का वक्त बीता, तीन पीढ़ियां साझीदार बनीं। मुस्लिम बाबू पहलवान का परिवार उसी तल्लीनता, लगन से हर साल दशानन के पुतले बनाता है, जल जाने के लिए। इस बार भी माडल टाउन दशहरा मेला ग्राउंड पर परिवार आ गया है। कई दिनों से रावण के पुतले को आकर्षक रूप दिया जा रहा है। साथ ही नाती फैसल और मोहम्मद कैफ मदद कर रहे हैं। 

ईद की तैयारी जैसा ही जोश है इस परिवार में, पुतले में कोई कमी न रह जाए, पिछली बार से भी शानदार बने और दशहरा पर्व का उल्लास कई गुना बढ़ जाए, यही कोशिश जारी है। सियासी समझ जरा कम ही सही, सामाजिक साझीदारी की समझ बहुत है। बाबू पहलवान कहते हैं, किसे अपना त्योहार खुशी से मनाना अच्छा नहीं लगता। हर साल आते हैं और पूरी कोशिश करते हैं अपना सबसे बेहतर काम करने की। यहां के लोग भी पूरा सम्मान करते हैं। कहने को तो यह महज पुतला भर है, लेकिन संदेश बड़ा है। मजहब आपसी सौहार्द बढ़ाने की सीख देता है, साझीदार बनने संदेश देता है। कभी नफरतों की पैरोकारी नहीं करता।

इनसे चाहिए मुक्ति

नशा भ्रष्टाचार बढ़ती जनसंख्या निरक्षरता भ्रूण हत्या
सामाजिक, आर्थिक, मानसिक और शारीरिक रूप से घातक नशा बड़ी बुराई है। अब युवा पीढ़ी भी बुरी तरह से इसकी चपेट में आ रही है। शहर में हुक्काबार में खुलेआम सिगरेट, तंबाकू का सेवन हो रहा है। स्कूलों के पास भी पान के खोखो पर बच्चों में भी नशे की लत डाली जा रही है। पुलिस इन पर समय-समय पर कार्रवाई भी करती है। बावजूद, लगाम नहीं लग पा रहा है। सड़क हादसों की बड़ी वजह भी नशा है। नशे की लत में लोगों के घर भी टूट जाते हैं। इस विजयदशमी सामाजिक बुराई नशे से मुक्ति का संकल्प लें। बात चाहे सरकारी सिस्टम की हो या फिर निजी क्षेत्र की, भ्रष्टाचार एक घुन की तरह व्यवस्था को कमजोर कर रहा है। सरकारी विभागों में तो बिना ‘चढ़ावा’ जायज काम कराना मुश्किल हो गया है। सरकारी योजनाओं का लाभ भ्रष्टाचार की वजह से ही आम आदमी तक नहीं पहुंचता। यह मानसिकता अब बदलनी चाहिए और होना चाहिए भ्रष्टाचार का अंत। प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं। संसाधनों के समुचित उपयोग के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण जरूरी है। लगातार बढ़ रही जनसंख्या कई समस्याओं की जननी है और इसका अंत जरूरी है। सीमित परिवार सुखों का आधार कहा जाता है। परिवार नियोजन का संकल्प लें इस विजयदशमी पर। निरक्षता बड़ी सामाजिक बुराई है जिसका अंत होना समाज के हित के लिए जरूरी है। जब तक समाज शिक्षित नहीं होगा, सभ्य समाज की कल्पना को मूर्त रूप नहीं दिया जा सकता। ग्लोबल विलेज के युग में कदमताल मिलाने के लिए साक्षरता मूलभूत जरूरत है। डिजिटल इंडिया की धारणा भी बेमानी है। आइए अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाएं और ज्ञान की रौशनी की ओर चलें।  जिस देश-समाज में कन्या साक्षात देवी का अवतार मानी जाती हैं और नवरात्र जैसे पर्व पर उनका पूजन होता है, वहां अभी भी भ्रूण हत्या एक सामाजिक बुराई के रूप में जीवित है। बेटियां आज किसी भी क्षेत्र में बेटों से कम नहीं मगर गर्भ में ही लिंग पता करने की प्रवृत्ति खत्म नहीं हुई है। इस बुराई का संहार करने का संकल्प लें। 
अतिक्रमण

पॉलीथिन

गंदगी प्रदूषण दहेज प्रथा

सड़क तक सामान फैलाए दुकानदारों के चलते बाजारों में चलना मुश्किल है। अब कस्बों में यह बुराई अपनी जड़ें जमा चुकी है। अतिक्रमण के चलते सड़कें सिकुड़ जाती हैं और कई बार हादसे भी होते हैं। इस विजयदशमी अतिक्रमण को जड़ से मिटानें का संकल्प लें जिससे बेहतर यातायात की सुविधा मिले।

करोड़ों साल तक खत्म न होने वाली पॉलीथीन पर्यावरण के लिए बेहद घातक है। नाली-नाले चोक होने का पॉलीथिन बड़ा कारण है। आइए इस विजयदशमी पर पॉलीथीन का इस्तेमाल न करने का संकल्प लें।  सेहत की सबसे बड़ी शत्रु है गंदगी। साफ-स्वच्छ माहौल में रहकर कई बीमारियों से दूर रहा जा सकता है। खुद के साथ आसपास के लोगों को भी स्वच्छता को जागरूक करने की जरूरत है। आइए इस विजयदशमी को गंदगी के खात्मे का संकल्प लें।  हमारा पर्यावरण जीवन का आधार है। बावजूद मानवीय क्रियाकलापों से पर्यावरण दूषित होता जा रहा है। अफसोस की बात है कि इसके प्रति लोगों में जागरूकता की कमी है। इस विजयदशमी पर्व पर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेकर इसे यादगार बनाएं। प्रगतिवादी दौर में भी दहेज प्रथा नासूर की तरह समाज में मौजूद है। दहेज लेना कानूनन अपराध है। बावजूद इसका अंत न होना दुखद है इस विजयदशमी पर्व पर दहेज प्रथा के खात्मे का संकल्प लें। शादी आयोजन में फिजूल खर्च पर भी लगाम हो।  

 

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