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सबसे पहले पिता को करें पिंडदान, जानिए क्या है वजह

श्राद्ध और पिंडदान पर धार्मिक ग्रन्थों में कई वर्णन मिलते हैं। महाभारत में कई जगह पिंडदान के बारे में प्रसंग मिलते हैं। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं. राजीव शर्मा बताते हैं कि शास्त्र में पिंडदान का...

सबसे पहले पिता को करें पिंडदान, जानिए क्या है वजह
हिन्दुस्तान टीम,बरेलीTue, 05 Sep 2017 12:18 PM
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श्राद्ध और पिंडदान पर धार्मिक ग्रन्थों में कई वर्णन मिलते हैं। महाभारत में कई जगह पिंडदान के बारे में प्रसंग मिलते हैं। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं. राजीव शर्मा बताते हैं कि शास्त्र में पिंडदान का जो विधिविधान है, उसके मुताबिक सबसे पहले पिता को पिंड देना चाहिए। उसके बाद दादा और फिर परदादा को पिंडदान करना चाहिए। पं. राजीव शर्मा बताते हैं कि पिंडदान में अग्निदेव की महती भूमिका होती है। महाभारत में वर्णित है कि अग्नि में हवन के बाद जो पितरों के लिए पिंडदान किया जाता है, उसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित करने का साहस नहीं जुटा पाते। अग्निदेव की मौजूदगी मात्र से असुर, राक्षस भयभीत हो जाते हैं और वहां आने का साहस नहीं करते। सबसे पहले पिता को पिंडदान करना चाहिए और यही श्राद्ध की विधि है। पिंड देते समय मन सांसारिक बातों में नहीं लगाना चाहिए और गायत्री मंत्र करा जाप और सोमाय पितृमये स्वाहा का उच्चारण करना चाहिए। इसलिए रखना चाहिए पितरों को प्रसन्न पितरों की भक्ति से मनुष्य को पुष्टि, आयु, वीर्य और धन की प्राप्ति होती है। ब्रह्माजी, पुलस्त्य, वसिष्ठ, पुलह, अंगिरा, क्त्रतु और महर्षि कश्यप-ये सात ऋषि महान योगेश्वर और पितर माने गए हैं। मरे हुए मनुष्य अपने वंशजों द्वारा पिंडदान पाकर प्रेतत्व के कष्ट से छुटकारा पा जाते हैं।   ऐसे करना चाहिए पिंडदान महाभारत में श्राद्ध का विधान वर्णित है। पं. राजीव शर्मा बताते हैं कि श्राद्ध विधिविधान से संपूर्ण करना ही सफल होता है। श्राद्ध में तीन पिंडों का विधान है, उनमें पहला जल में डाल देना चाहिए। दूसरा पिंड श्राद्धकर्ता की पत्नी को खिला देना चाहिए और तीसरे पिंड की अग्नि में छोड़ देना चाहिए, यही श्राद्ध का विधान है। मान्यता है कि पहला पिंड जो पानी के भीतर चला जाता है, वह चंद्रमा को तृप्त करता है और चंद्रमा स्वयं देवता तथा पितरों को संतुष्ट करते हैं। इसी प्रकार पत्नी गुरुजनों की आज्ञा से जो दूसरा पिंड खाती है, उससे प्रसन्न होकर पितर पुत्र की कामना वाले पुरुष को पुत्र प्रदान करते हैं। तीसरा पिंड अग्नि में डाला जाता है, उससे तृप्त होकर पितर मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण करते हैं।

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