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बेटे-बेटी की परवरिश में न करें कोई भेदभाव

कोरोना काल चल रहा है। प्रसूताओं के प्रति कोरोना काल में परिवारीजन व समाज के प्रति काफी स्नेह बढा़ है, जो भी बच्चा...

बेटे-बेटी की परवरिश में न करें कोई भेदभाव
हिन्दुस्तान टीम,बरेलीSat, 10 Oct 2020 11:30 PM
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कोरोना काल चल रहा है। प्रसूताओं के प्रति कोरोना काल में परिवारीजन व समाज के प्रति काफी स्नेह बढा़ है, जो भी बच्चा जन्मा। उसे बड़ा दुलार किया गया। लक्ष्मी जन्मी तो उसे माथे लगा लिया गया। लाकडाउन में सबकुछ बंद रहा। ज्यादातर लोग घरों पर ही मौजूद रहे। इस दौरान परिवार को समय न दे पाने वालों ने अपने बच्चों को खूब प्यार मिला। वह भी बच्चों के साथ बच्चे नजर आए। अब कोई भी बेटा और बेटी में भेदभाव नहीं करता है। लोग शिक्षित हो गए हैं। भेद खत्म हो गया है, तभी तो बेटियां आसमान छू रही हैं। परिवार का और अपने जिले का नाम रोशन कर रही हैं।

घर से होती है भेदभाव की शुरूआत

महिला कल्याण अधिकारी रेखा शर्मा ने बताया कि बेटा-बेटी में भेदभाव की शुरूआत घर से होती है। अगर मां-बाप ही बेटा और बेटी को बिना भेदभाव किए एक समान आगे बढ़ने का मौका देते हैं, तभी समाज में बेटियां आगे बढ़ सकेंगी। केवल बेटा-बेटी एक समान कहने मात्र से महिला सशक्तीकरण नहीं हो सकता। अब लोग शिक्षित हो गए हैं। भेदभाव खत्म हो गया है। तभी तो बेटियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। सरकारी नौकरियां भी कर रही हैं। पुलिस में भी बढ़ी संख्या में महिलाएं आगे आई हैं।

इसलिए मनाया जाता बालिका दिवस

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस हर साल 11 अक्टूबर को मनाया जाता है, ताकि बालिकाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और उनके अधिकारों के संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके। इसे बढ़ावा देने के लिए आयोजन किए जाते हैं, जिसके अंतर्गत लड़कियों की शिक्षा, पोषण, उनके कानूनी अधिकार, चिकित्सा देखभाल के प्रति उन्हें और समाज के लोगों को जागरूक किया जाता है। लड़कियों को सुरक्षा मुहैया कराना, उनके प्रति भेदभाव व हिंसा खत्म करना। बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाना भी इस दिन को मनाने के कारणों में शामिल है।

लोगों की बदली सोच और नजरिया

मेडिकल कालेज में बेटी को गोद में लिए बैठी सिंधौली की सुनीता से बालिका दिवस को लेकर बात की। सुनीता ने बताया कि जब ईश्वर बेटी देते हुए नहीं घबराया, तो मैं पालते हुए क्यों घबराऊं । सुनीता की इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है, कि लड़कियों के प्रति उसका नजरिया किस तरह का है। वहीं, शहर की नर्सिग से बताया कि आप पुराने जमाने की बात कर रहे हैं। जमाना बदल चुका है और लोगों की सोंच बदल चुकी है।

फैक्ट फाइल

= एक अप्रैल से 21 सितंबर अस्पताल में हुए जन्म तक

= कुल बच्चे जन्मे-2646

= बालकों की संख्या-1467

= बालिकाओं की संख्या-1291

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