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बरेली की कैप्टन नम्रता के लिए देश सेवा ही है असली धर्म, महिलाओं के लिए दिया ये संदेश 

बरेली की नम्रता सिंह उन लड़कियों में से हैं जिन्होंने देश की सेवा को ही अपना सबसे बड़ा धर्म समझा है। एनसीसी कैडेट से सफर शुरू करने वालीं नम्रता ने कॅरियर के रूप में आर्मी को चुना। दो बार राजपथ पर परेड...

बरेली की कैप्टन नम्रता के लिए देश सेवा ही है असली धर्म, महिलाओं के लिए दिया ये संदेश 
वरिष्ठ संवाददाता,बरेलीSat, 05 Oct 2019 11:13 AM
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बरेली की नम्रता सिंह उन लड़कियों में से हैं जिन्होंने देश की सेवा को ही अपना सबसे बड़ा धर्म समझा है। एनसीसी कैडेट से सफर शुरू करने वालीं नम्रता ने कॅरियर के रूप में आर्मी को चुना। दो बार राजपथ पर परेड में शामिल हो चुकी नम्रता कहती हैं कि महिलाएं किसी से भी कम नहीं हैं। मूल रूप से सुल्तानपुर के कादीपुर निवासी मेजर नम्रता सिंह के पिता प्रो. एनपी सिंह रुहेलखंड विवि के शिक्षा एवं सहबद्ध विज्ञान संकाय में प्रोफेसर हैं।

नम्रता ने बताया कि वह बचपन से ही सेना में जाना चाहती थीं। इस सपने को साकार करने के लिए 2005 में एनसीसी ज्वाइन की। 2008 में एनसीसी सर्टिफिकेट हासिल किया। कैप्टन नम्रता सिंह 2007 में पहली बार एनसीसी कैडेट के रूप में परेड में शामिल हुई। उस वक्त मुख्य अतिथि रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन थे और दूसरी बार 2015 में राष्ट्रपति ओबामा के सामने परेड की तब वह आर्मी में कैप्टन बन चुकी थीं। साहू रामस्वरूप कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद मैनेजमेंट की पढ़ाई की। इसके बाद वे सेना में लेफ्टिनेंट बनीं और फिर वर्ष 2014 में कैप्टन।

सेना की तीनों विंग में महिलाओं का जलवा

नम्रता कहती हैं कि सेना की तीनों विंग में महिलाओं का जलवा है। एनसीसी के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लड़कियां सेना में जा रही हैं। उन्होंने बताया कि मेरे पिता ही मेरी प्रेरणा हैं। उनकी प्रेरणा से ही मैंने आर्मी ज्वाइन की थी। 

यूएनओ का पीस फेस बनीं नम्रता

मेजर नम्रता सिंह 2018 में यूएनओ के शांति अभियान में पीस फेस बनीं। गृहयुद्ध ग्रस्त अफ्रीकन देशों में हिंसा की शिकार महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ (यूएन) ने नम्रता सहित 28 देशों की महिला सैन्य अफसरों को विशेष प्रशिक्षण दिया था। यूएनओ की ओर से बीजिंग में फीमेल मिलिट्री ऑफिसर कोर्स के लिए नम्रता को भारत का प्रतिनिधित्व करने का गौरव मिला था। 20 दिन के प्रोग्राम के लिए 28 देशों से महिला मिलिट्री ऑफिसर चुनी गई थीं। 

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